पति की नौकरी तक पत्नी को नौकरी छोड़ने के दबाव को कोर्ट ने माना क्रूरता, विवाह-विच्छेद की याचिका मंजूर
के कुमार आहूजा 2024-11-18 06:21:14
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बेंच ने एक पत्नी की ओर से दायर तलाक की याचिका पर अहम फैसला सुनाते हुए पति द्वारा अपनी पत्नी को नौकरी छोड़ने के दबाव को मानसिक क्रूरता माना है। कोर्ट ने इस निर्णय में स्पष्ट किया कि एक पति या पत्नी अपने साथी पर नौकरी को लेकर किसी भी तरह की शर्त या दबाव नहीं डाल सकते।
तलाक की याचिका पर पति का बर्ताव बना आधार
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बेंच में न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति सुष्रुत धर्माधिकारी की खंडपीठ ने उस महिला की तलाक की याचिका को मंजूरी दे दी, जो अपने पति द्वारा नौकरी छोड़ने के दबाव के चलते तलाक चाहती थी। महिला ने दावा किया कि उसके पति का ऐसा बर्ताव मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है।
शादी के बाद पति का नौकरी छोड़ने का दबाव
कोर्ट में दिए गए बयानों के मुताबिक, महिला की शादी अप्रैल 2014 में हुई थी और दोनों शादी से पहले से ही एक-दूसरे को जानते थे। 2017 में महिला को एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड में सहायक प्रबंधक के रूप में नियुक्ति मिली, जबकि उस समय पति के पास कोई रोजगार नहीं था। पति ने उस पर दबाव डाला कि जब तक उसे नौकरी नहीं मिल जाती, तब तक पत्नी अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दे। कोर्ट ने इसे मानसिक क्रूरता मानते हुए तलाक को स्वीकृति दी।
पति की मनमर्जी के मुताबिक जीने का दबाव
महिला ने बताया कि उसके पति ने केवल नौकरी छोड़ने का ही नहीं, बल्कि उसके जीने के तरीके को भी अपने अनुसार ढालने का प्रयास किया। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पति-पत्नी का एक साथ रहना उनकी इच्छा पर निर्भर है, लेकिन दोनों में से कोई भी अपने साथी पर नौकरी या जीवनशैली को लेकर किसी तरह का दबाव नहीं बना सकता।
परिवार न्यायालय का निर्णय और हाईकोर्ट का निष्कर्ष
यह मामला पहले परिवार न्यायालय में आया था, जहाँ पत्नी की तलाक की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया था कि उसने कभी पुलिस में क्रूरता की शिकायत दर्ज नहीं कराई और उसके पास इस बात का कोई स्वतंत्र गवाह नहीं था। लेकिन हाईकोर्ट ने यह तर्क दिया कि परिवार न्यायालय ने महिला के इस दावे को नज़रअंदाज़ कर दिया कि पति का दबाव और उनकी जीवनशैली में मतभेद तलाक के आधार थे।
उच्च न्यायालय का निर्णय
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि महिला ने केवल नौकरी को लेकर ही तलाक नहीं चाहा, बल्कि उनके बीच अनुकूलता की कमी भी तलाक का आधार थी। कोर्ट ने पाया कि पति का यह रवैया कि वह तलाक नहीं चाहता, स्वयं एक प्रकार की क्रूरता थी। न्यायमूर्ति कैत और न्यायमूर्ति धर्माधिकारी ने स्पष्ट रूप से कहा कि “पति का यह व्यवहार कि वह तलाक को स्वीकार नहीं कर रहा, स्वयं मानसिक क्रूरता का संकेत है।”
विवाह-विच्छेद के फैसले को अंतिम रूप
सुनवाई के बाद, हाईकोर्ट ने परिवार न्यायालय के फैसले को पलटते हुए महिला के पक्ष में निर्णय दिया और उनके विवाह को समाप्त कर दिया।