सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख: अपराधियों के मकान पर बुलडोजर चलाना अब गैरकानूनी, अधिकारियों को सख्त निर्देश ( 14  ऐतिहासिक फैसला पढ़ते रहिए बीकानेर फ्रंटियर) 


के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा  2024-11-16 06:47:31



 

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक निर्णय में राज्यों द्वारा अपराधियों के आवासीय ढांचे पर बिना किसी न्यायिक प्रक्रिया के बुलडोजर चलाने को अवैध करार दिया है। न्यायालय ने इसे "बुलडोजर न्याय" करार देते हुए स्पष्ट निर्देश दिए कि किसी व्यक्ति पर केवल आरोप लगने मात्र से उसके घर को ध्वस्त नहीं किया जा सकता है। यह कदम नागरिक अधिकारों के उल्लंघन को रोकने और कानून की प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए उठाया गया है।

निर्णय का संदर्भ

जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस के. वी. विश्वनाथन की खंडपीठ ने इस फैसले में अपने संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट के अनुच्छेद 142 के तहत यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि किसी भी संरचना को ध्वस्त करने से पहले नोटिस देना अनिवार्य है और यदि ऐसा नहीं होता है तो संबंधित अधिकारी पर अदालत की अवमानना का मामला चलाया जाएगा और संपत्ति बहाल करने का खर्च उन्हीं से वसूला जाएगा। कोर्ट का मानना है कि इस प्रकार के कदम केवल एक समुदाय विशेष के लिए नहीं बल्कि देश भर में समान रूप से लागू होंगे​।

निर्देश और प्रक्रियाएं

सुप्रीम कोर्ट ने इस दिशा में स्पष्ट और कठोर निर्देश जारी किए हैं। ये निर्देश विशेष रूप से न्याय प्रक्रिया के प्रति प्रशासनिक अधिकारियों को जिम्मेदार बनाने के लिए बनाए गए हैं। निर्देशों के अनुसार:

1 ध्वस्तीकरण के किसी भी आदेश को लागू करने से पहले उचित समय देकर संबंधित व्यक्ति को अपील का मौका देना होगा।

2 बुलडोजर चलाने से कम से कम 15 दिन पूर्व नोटिस भेजना अनिवार्य होगा, जिसमें अपराध या नियम उल्लंघन के कारणों का उल्लेख और सुनवाई की तिथि एवं स्थान की जानकारी होनी चाहिए।

3 सभी प्रक्रियाओं को रिकॉर्ड और डिजिटल पोर्टल पर अपलोड करना आवश्यक होगा।

4 किसी भी अपील लंबित होने पर तुरंत ध्वस्तीकरण प्रक्रिया नहीं की जा सकेगी।

मानवाधिकारों का संरक्षण और अंतरिम आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने मानवाधिकार उल्लंघनों को रोकने के लिए एक अतिरिक्त अंतरिम आदेश में राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे पहले से मंजूरी लिए बिना किसी भी ढांचे को न गिराएँ। न्यायालय के अनुसार, जब तक अदालत से अनुमति प्राप्त नहीं होती, किसी भी आरोपी की संपत्ति पर बुलडोजर नहीं चलाया जा सकता। संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि वृंदा ग्रोवर की ओर से इस संबंध में एक आवेदन दायर किया गया था जिसमें गरीब, अल्पसंख्यक और कमजोर वर्गों के अधिकारों की सुरक्षा की मांग की गई थी।

सरकारों की दलीलें और न्यायालय का दृष्टिकोण

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह तर्क रखा कि राज्यों में हो रहे ध्वस्तीकरण के बारे में एक "नैरेटिव" या कथा रची जा रही है, लेकिन कोर्ट ने इस पर रोक लगाते हुए निष्पक्षता पर जोर दिया। कोर्ट का मानना था कि "बाहरी शोर" या राजनीतिक प्रभाव के कारण अदालत का निर्णय प्रभावित नहीं होना चाहिए। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि धर्म, जाति या समुदाय का फर्क किए बिना यह दिशा-निर्देश सभी राज्यों पर लागू होंगे​।

अवैध संरचनाओं पर स्पष्टता

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह आदेश केवल उन ढांचों पर लागू होगा जो वैध हैं, जबकि सड़कों, नदियों के किनारे या सार्वजनिक भूमि पर बने अवैध ढांचों के लिए यह आदेश लागू नहीं है। ऐसे अवैध निर्माणों के खिलाफ कार्रवाई जारी रहेगी, लेकिन न्यायिक प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य होगा​

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय नागरिक अधिकारों और न्याय की प्रक्रिया के प्रति एक मजबूत संदेश है। इसके साथ ही यह आदेश प्रशासनिक अधिकारियों को जिम्मेदार और कानून की प्रतिष्ठा के प्रति सजग बनाएगा। इस ऐतिहासिक फैसले से न्यायालय ने साबित किया है कि कानून का पालन सर्वोच्च है और केवल आरोपों के आधार पर किसी भी नागरिक की संपत्ति पर बुलडोजर चलाना संविधान के खिलाफ है।


global news ADglobal news ADglobal news AD