मारा मारा......मर्डर केस में केवल मारा मारा शब्द से नहीं बनता हत्या का इरादा, कोर्ट का अहम फैसला(अल सवेरे समा चार सम्माननीय काले  कोट के फैसले की) 


के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा  2024-11-16 06:25:16



बॉम्बे हाईकोर्ट ने हत्या के आरोप में तीन परिवारिक सदस्यों को बरी किया, केवल एक दोषी पाया

बॉम्बे हाईकोर्ट के नागपुर बेंच ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया कि महज हत्या की जगह पर होना और "मारा मारा" जैसे शब्दों का उच्चारण करना, हत्या के इरादे को स्थापित नहीं करता है। कोर्ट ने तीन परिवारिक सदस्यों को बरी कर दिया जबकि एक दोषी को सजा दी।

क्या था मामला?

यह मामला 2015 में पुसीद में एक महिला, सुनंदा की हत्या से जुड़ा है। सुनंदा, जो जयनंद धबाले के भाई विजय की विधवा थीं, उनकी हत्या का आरोप उनके परिवार के चार सदस्य - जयनंद धबाले, उनकी पत्नी अशाबाई और उनके दो बेटे निरंजन और किरण पर था। परिवार के सदस्य सुनंदा पर काले जादू का आरोप लगा रहे थे, जिसके चलते उनके घर में बीमारियां और दुर्भाग्य फैला था।

कोर्ट ने क्यों बरी किया तीन आरोपियों को?

कोर्ट ने पाया कि आरोपियों द्वारा "मारा मारा" शब्दों का उच्चारण हत्या के इरादे से नहीं था, बल्कि यह केवल सुनंदा को मारने की धमकी देने के रूप में था। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में किसी प्रकार की पूर्व योजना का कोई ठोस प्रमाण नहीं था। इस कारण, जयनंद और उसके परिवार के तीन अन्य सदस्य अशाबाई, निरंजन और किरण पर हत्या का आरोप साबित नहीं हुआ।

प्रोसीक्यूशन का दावा और बचाव पक्ष का तर्क

प्रोसीक्यूशन ने यह दावा किया था कि यह एक योजनाबद्ध हत्या थी और पूरे परिवार का इरादा सुनंदा को मारने का था। लेकिन बचाव पक्ष ने इसे खारिज किया और कहा कि अशाबाई का "मारा मारा" कहने का मतलब केवल पति को सुनंदा की पिटाई के लिए उत्तेजित करना था, न कि हत्या के लिए। इसके अलावा, यह भी कहा गया कि निरंजन और किरण ने कोई योजना नहीं बनाई थी।

कोर्ट का निर्णय: जयनंद दोषी, बाकी सभी बरी

कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि मारा मारा जैसे शब्दों से हत्या के इरादे का कोई सिद्धांत नहीं बनता। इसलिए, तीन आरोपियों को हत्या के आरोप से बरी कर दिया गया। हालांकि, जयनंद धबाले की हत्या की सजा को बरकरार रखते हुए उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

न्यायिक दृष्टिकोण: समान इरादा नहीं, तो हत्या नहीं

कोर्ट ने आईपीसी की धारा 34 के तहत हत्या के इरादे को साझा करने का सिद्धांत लागू किया, लेकिन पाया कि इस मामले में कोई साझा इरादा नहीं था। कोर्ट ने कहा कि हत्या का आरोप तब तक नहीं लगाया जा सकता, जब तक यह साबित न हो कि आरोपियों का इरादा एक जैसा था।


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