(भंगी, नीच, भिखारी जैसे शब्द जाती सूचक नहीं! )इनका इस्तेमाल SC/ST एक्ट के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं -राजस्थान हाई कोर्ट (सम्माननीय न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले) बीकानेर फ्रंटियर
के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा 2024-11-16 06:13:29
राजस्थान उच्च न्यायालय ने हाल ही में यह स्पष्ट किया कि भंगी,,नीच,,भिखारी,,जैसे शब्दों का प्रयोग जाति-आधारित नहीं माना जा सकता है, और इसलिए इनका इस्तेमाल SC/ST एक्ट के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं आता। जस्टिस बीरेंद्र कुमार ने इस मामले में चार लोगों के खिलाफ लगे SC/ST एक्ट के आरोपों को खारिज कर दिया, यह मानते हुए कि उक्त शब्दों में जाति-विशेष की ओर कोई संकेत नहीं है।
घटना की पृष्ठभूमि
यह मामला जनवरी 2011 की एक घटना से जुड़ा है, जब सरकारी अधिकारी जैसलमेर में एक सार्वजनिक भूमि पर हुए कथित अतिक्रमण की जांच करने गए थे। इस दौरान, अभियुक्तों ने अधिकारियों को हटाने का विरोध किया और कुछ अभद्र शब्दों का प्रयोग किया, जिस पर उनके खिलाफ पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 353, 332, 34 और SC/ST एक्ट की धारा 3(1)(X) के तहत मामला दर्ज किया।
पुलिस जांच और बाद का घटनाक्रम
शुरुआती जांच में पुलिस ने आरोपों को आधारहीन मानते हुए एक नकारात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। इसके बाद एक विरोध याचिका के कारण निचली अदालत ने SC/ST एक्ट के तहत आरोप तय किए। अभियुक्तों ने इसके खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील की।
उच्च न्यायालय का विश्लेषण
अधिवक्ता लीला धर खत्री ने अदालत में तर्क दिया कि आरोपों में SC/ST एक्ट के तहत मामला चलाने का कोई ठोस आधार नहीं है। उन्होंने कहा कि अभियुक्तों को शिकायतकर्ता की जाति की जानकारी नहीं थी और घटना के दौरान कोई स्वतंत्र गवाह मौजूद नहीं था।
न्यायालय का फैसला
न्यायालय ने माना कि घटना सार्वजनिक रूप से नहीं घटी थी और न ही आरोपियों ने जाति के आधार पर अपमान करने का इरादा दिखाया। अदालत ने SC/ST एक्ट के तहत आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि केवल सरकारी अधिकारी और उनके सहयोगी ही इस घटना के गवाह हैं, जबकि कोई अन्य स्वतंत्र गवाह नहीं है।
IPC की धाराओं के तहत आरोप यथावत
हालांकि, न्यायालय ने IPC की धाराओं 353 और 332 के तहत आरोपों को बरकरार रखा, यह कहते हुए कि अभियुक्तों द्वारा अधिकारियों के कार्य में बाधा उत्पन्न करने के पर्याप्त सबूत हैं और इस आधार पर उनके खिलाफ मुकदमा चलाया जाएगा।
संबंधित अधिवक्ताओं का पक्ष
अभियुक्तों का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता लीला धर खत्री ने किया, जबकि राज्य की ओर से लोक अभियोजक सुरेंद्र बिश्नोई ने अदालत में पक्ष रखा।