45 साल बाद सुलझा कोर्ट का केस: मद्रास हाई कोर्ट ने ऐतिहासिक लंबित मामले में किया समाधान


के कुमार आहूजा  2024-11-15 05:40:15



 

मद्रास हाई कोर्ट में 1979 से लंबित एक सिविल मुकदमे का हाल ही में निपटारा हुआ। 45 साल बाद इस मामले को अंतिम रूप देते हुए कोर्ट ने इसे खत्म कर दिया, जब पक्षों ने आपसी समझौते पर सहमति जताई। न्यायमूर्ति डी. भारथ चक्रवर्ती ने इस केस का फ़ैसला सुनाने से ठीक पहले समझौते को स्वीकार कर लिया और इस मामले का पूरा विवरण एक सील किए हुए कवर में ही बंद रह गया, जिसे कभी नहीं खोला जाएगा।

केस का इतिहास:

1979 में तमिलनाडु के विरुधुनगर जिले में एक मकान मालिक ने अपने किरायेदार को बेदखल करने के लिए यह मुकदमा दायर किया था। यह मामला स्थानीय कोर्ट में लंबित था और तमिलनाडु सिटी टेनेन्ट्स प्रोटेक्शन एक्ट, 1921 के तहत सुनवाई का विषय था। लेकिन सालों के गुजरने के बाद भी इसे निपटाया नहीं जा सका। न्यायमूर्ति चक्रवर्ती ने इस साल जुलाई में एक ऐतिहासिक निर्णय लिया और इस मामले को निचली अदालत से हटाकर खुद सुनवाई के लिए मद्रास हाई कोर्ट में स्थानांतरित कर लिया​।

समाधान की प्रक्रिया:

जुलाई में हाई कोर्ट ने इस मामले को खुद संभालते हुए, प्रक्रिया में तेजी लाई और दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं की सहमति से इसका परीक्षण दो महीने के भीतर पूरा कर दिया। न्यायालय ने पाया कि इसमें बस तीन मुख्य प्रश्नों पर विचार करने की आवश्यकता थी: क्या किरायेदारी खत्म कर दी गई थी, क्या किरायेदार को संपत्ति खरीदने का अधिकार दिया जा सकता है, और अगर वह निकाला जाता है तो कितनी मुआवज़ा राशि दी जाएगी​।

समझौता और कोर्ट की अंतिम सलाह:

29 अक्टूबर को हाई कोर्ट ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था लेकिन समझौते की संभावना को देखते हुए फ़ैसले पर रोक लगा दी। अंततः 5 नवंबर को दोनों पक्षों ने समझौते पर सहमति व्यक्त की, जिसके तहत किरायेदार के कानूनी उत्तराधिकारियों ने जगह खाली करने का निर्णय लिया और मकान मालिक ने उन्हें 26 लाख रुपये मुआवजा देने की सहमति दी। इसके साथ ही कोर्ट ने सभी अदालतों को सलाह दी कि पुराने मामलों को लंबित न रखें और जितनी जल्दी हो सके निष्कर्ष तक पहुंचाएं​।

कोर्ट का भावुक संदेश:

मद्रास हाई कोर्ट ने इस मामले के निपटारे के बाद सभी अदालतों को लंबित मामलों में अधिक संवेदनशील और प्रभावी होने की सलाह दी। न्यायमूर्ति चक्रवर्ती ने कहा कि लंबे समय से लंबित मामलों में जल्दबाजी से काम लेना और उन्हें अधूरा छोड़ देना या बार-बार सुनवाई स्थगित करना दोनों ही अनुचित हैं। अदालत को गहराई से यह समझना चाहिए कि मामला क्यों अटका है और किस तरह इसे कानूनी नतीजे तक पहुंचाया जा सकता है। कोर्ट ने इस मामले को “मिश्रित भावनाओं के साथ” छोड़ने का उल्लेख किया, क्योंकि इसने न्यायिक प्रणाली में सुधार की आवश्यकता को भी दर्शाया है​

इस ऐतिहासिक निपटारे ने यह संदेश दिया है कि न्याय व्यवस्था में समय की पाबंदी और प्रभावशीलता बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से पुराने मामलों में, ताकि किसी भी पक्ष को अन्याय का सामना न करना पड़े।


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