मुस्लिम ससुर नहीं हैं बहू के भरण-पोषण के लिए बाध्य: MP हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला


के कुमार आहूजा  2024-11-15 05:15:02



 

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का हालिया फैसला विधिक और सामाजिक दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय बन गया है। कोर्ट ने कहा कि एक मुस्लिम ससुर अपनी विधवा बहू को गुजारा भत्ता देने के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं है, चाहे वह घरेलू हिंसा कानून हो या मुस्लिम व्यक्तिगत कानून। इस फैसले ने कई परिवारिक मामलों में कानूनी दिशा की नई तस्वीर प्रस्तुत की है।

मामले की पृष्ठभूमि

इस मामले की शुरुआत 2011 में हुई, जब याचिकाकर्ता के बेटे की शादी प्रतिवादी बहू से हुई थी। दुर्भाग्य से, 2015 में बेटे का निधन हो गया, जिससे बहू विधवा हो गई। इसके बाद, बहू ने घरेलू हिंसा का मामला अपने ससुराल के खिलाफ दर्ज किया और भरण-पोषण के लिए 40,000 रुपये प्रतिमाह की मांग की।

निचली अदालत का आदेश

इस मामले में निचली अदालत ने ससुर (याचिकाकर्ता) को प्रतिवादी बहू को प्रति माह 3,000 रुपये गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था। याचिकाकर्ता ने इस आदेश का विरोध किया, लेकिन फिर भी अदालत ने उन्हें भरण-पोषण देने का आदेश जारी रखा।

उच्च न्यायालय में पुनरीक्षण याचिका

ससुर ने निचली अदालत के आदेश के खिलाफ सत्र न्यायालय में अपील की, लेकिन अपील खारिज होने के बाद उन्होंने हाई कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की। याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि मुस्लिम व्यक्तिगत कानून के तहत ससुर अपनी विधवा बहू को गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य नहीं है। साथ ही, घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत भी ऐसी कोई बाध्यता नहीं है।

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का फैसला

न्यायमूर्ति हिर्देश ने याचिकाकर्ता के पक्ष में निर्णय देते हुए कहा कि मुस्लिम व्यक्तिगत कानून और घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत बहू को गुजारा भत्ता देने की बाध्यता नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि निचली अदालत ने इस मामले में गलत आदेश दिया और इस आदेश को रद्द किया जाता है।

कानूनी दृष्टिकोण और निष्कर्ष

इस फैसले में हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मुस्लिम कानून में ससुर को अपनी विधवा बहू के भरण-पोषण का जिम्मा नहीं दिया गया है। साथ ही, घरेलू हिंसा अधिनियम भी इस पर कोई बाध्यता नहीं डालता। इसके अलावा, अदालत ने यह भी ध्यान में रखा कि बहू अपने पति के जीवनकाल में भी अपने ससुराल से अलग रह रही थी।

वकीलों की भूमिका

याचिकाकर्ता के लिए अधिवक्ता अक्षत कुमार जैन और प्रतिवादी के लिए अधिवक्ता रोमेश प्रताप सिंह ने कोर्ट में अपने-अपने पक्ष रखे।


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