नौ साल जेल में बिताने के बाद निर्दोष साबित: लद्दाख में गिरफ्तार नेपाली नागरिक को जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने किया रिहा
के कुमार आहूजा 2024-11-12 06:32:19
नौ साल जेल में बिताने के बाद निर्दोष साबित: लद्दाख में गिरफ्तार नेपाली नागरिक को जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने किया रिहा
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में 2014 में लद्दाख में चरस रखने के आरोप में गिरफ्तार किए गए नेपाली नागरिक को नौ साल बाद रिहा किया। हाईकोर्ट ने मामले में सबूतों की कमी के आधार पर उसे निर्दोष पाया और ट्रायल कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया।
मामले की पृष्ठभूमि:
2014 में, नेपाली नागरिक प्रेम कुमार को मनाली होते हुए लेह पहुंचने पर चरस रखने के आरोप में जम्मू-कश्मीर पुलिस ने गिरफ्तार किया था। पुलिस का दावा था कि उनके पास एक नीले बैग में चरस था। इसके आधार पर 2016 में ट्रायल कोर्ट ने उन्हें 11 साल की सजा सुनाई थी।
हाईकोर्ट में अपील:
कुमार के वकील, एडवोकेट मेहरबान सिंह ने हाईकोर्ट में दलील दी कि ट्रायल कोर्ट में सबूतों की गलत विवेचना हुई। उन्होंने बताया कि पुलिस द्वारा तलाशी और जब्ती की प्रक्रिया में कई विसंगतियां थीं, जिससे अभियोजन पक्ष का मामला कमजोर हुआ।
गवाहों के बयान में विसंगतियां:
जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस संजय धर की खंडपीठ ने पाया कि अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों में कई विरोधाभास थे। इससे संदिग्ध पदार्थ की सुरक्षित कस्टडी पर सवाल खड़ा हुआ। हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि इन विरोधाभासों का लाभ आरोपी को मिलना चाहिए।
अभियोजन की विफलता:
हाईकोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष प्रेम कुमार के खिलाफ आरोप को उचित संदेह से परे साबित नहीं कर पाया। इसके आधार पर, ट्रायल कोर्ट का निर्णय खारिज कर दिया गया और आरोपी को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया गया।
अदालत का निर्णय:
फैसले में कहा गया, "अभियोजन पक्ष द्वारा उचित संदेह से परे आरोप सिद्ध न कर पाने के कारण, आरोपी को तत्काल रिहा किया जाए।" प्रेम कुमार को अब अन्य किसी मामले में जरूरत न होने पर जेल से छोड़ा जाएगा।
सरकारी पक्ष की दलीलें:
मामले में केंद्र सरकार की ओर से स्टैंडिंग काउंसल रोहन नंदा ने अदालत के सामने अपना पक्ष रखा, लेकिन कोर्ट ने अभियोजन पक्ष के दावों को पर्याप्त ठहराने से इंकार कर दिया।
यह मामला न्यायिक प्रक्रिया में त्रुटियों का एक उदाहरण है, जहां न्यायालय ने अभियोजन पक्ष की कमी को देखते हुए आरोपी को राहत दी। यह न्याय के प्रति अदालत की संजीदगी को दर्शाता है।