भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश बने जस्टिस संजीव खन्ना, राष्ट्रपति भवन में ली शपथ


के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा  2024-11-12 06:05:14



 

राष्ट्रपति भवन में एक ऐतिहासिक समारोह के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में जस्टिस संजीव खन्ना ने भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। इस अवसर ने न्यायिक व्यवस्था में खन्ना की यात्रा और उनके गहन योगदान को रेखांकित किया। आइए जानते हैं न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की जीवनी और उनके अब तक के महत्वपूर्ण फैसलों की कहानी।

शपथ ग्रहण समारोह

राष्ट्रपति भवन में 11 नवंबर, 2024 को आयोजित इस ऐतिहासिक समारोह में जस्टिस संजीव खन्ना ने भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। इस विशेष कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित अन्य कई गणमान्य हस्तियां उपस्थित थीं। इस महत्वपूर्ण अवसर पर पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने भी न्यायपालिका की भूमिका और आगामी बदलावों पर अपने विचार साझा किए।

संजीव खन्ना: एक परिचय

1959 में जन्मे संजीव खन्ना दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स के पूर्व छात्र हैं। कानून की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने 1983 में वकील के तौर पर अपना करियर शुरू किया, और धीरे-धीरे न्यायपालिका में एक प्रमुख नाम बन गए। उनके चाचा, स्वर्गीय न्यायमूर्ति हंसराज खन्ना, आपातकालीन दौर में अपने ऐतिहासिक फैसलों के लिए जाने जाते हैं, जिनसे संजीव खन्ना को भी प्रेरणा मिली। दिल्ली हाईकोर्ट में 2005 में नियुक्ति के बाद, खन्ना ने कई महत्वपूर्ण फैसले दिए और 2019 में सुप्रीम कोर्ट में जज बने।

जस्टिस खन्ना का न्यायिक योगदान

जस्टिस संजीव खन्ना को सुप्रीम कोर्ट में कुछ महत्वपूर्ण फैसलों के लिए जाना जाता है। उन्होंने कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद 370 के प्रावधान को समाप्त करने और विवादित चुनावी बांड योजना को चुनौती देने वाले मामलों में ऐतिहासिक निर्णय दिए। इसके अलावा उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 142 का प्रयोग करते हुए वैवाहिक मामलों में विवाह के अपूरणीय टूट को तलाक का आधार स्वीकार करने का ऐतिहासिक फैसला भी सुनाया।

चुनौतीपूर्ण मामलों में भूमिका

जस्टिस खन्ना ने अपने करियर में कई विवादास्पद मुद्दों पर फैसले दिए, जिनमें से एक प्रमुख मामला था VVPAT पर्चियों की गिनती के लिए सभी वोटों का मिलान करने की याचिका, जिसे उन्होंने खारिज कर दिया था। इसके अतिरिक्त, उन्होंने नए चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर रोक लगाने की याचिका का भी निपटारा किया और दिल्ली आबकारी नीति मामले में अरविंद केजरीवाल और संजय सिंह को जमानत दी।

न्यायपालिका में सुधार के पक्षधर

जस्टिस खन्ना के अनुसार न्यायपालिका का मुख्य उद्देश्य कानून की रक्षा करना और न्याय के सिद्धांतों को बनाए रखना है। उन्होंने अपने कार्यकाल में न्यायिक सुधारों की आवश्यकता पर जोर दिया, विशेषकर मामलों के निपटान में देरी और उच्च विधिक शुल्क जैसे मुद्दों पर। उनका मानना है कि कानून में बदलाव न्यायिक उत्साह से नहीं बल्कि संतुलन से होना चाहिए।

राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की सराहना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर न्यायमूर्ति खन्ना की नियुक्ति को न्यायपालिका के प्रति उनके समर्पण और कानून के प्रति उनकी गहरी समझ का प्रतीक बताया। वहीं, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी उन्हें इस नई भूमिका के लिए शुभकामनाएं दीं और कहा कि उनका अनुभव और ज्ञान भारत की न्यायिक व्यवस्था में एक नया अध्याय जोड़ेंगे।

संक्षिप्त कार्यकाल, गहरा प्रभाव

जस्टिस खन्ना का कार्यकाल हालांकि 183 दिनों का है, लेकिन उनके पूर्व के योगदान और फैसलों ने भारतीय न्याय व्यवस्था पर गहरा प्रभाव छोड़ा है। उनका यह कार्यकाल मई 2025 में समाप्त होगा, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि न्यायपालिका में उनके सुधारात्मक विचार और संतुलित दृष्टिकोण आने वाले वर्षों तक याद किए जाएंगे।


global news ADglobal news ADglobal news AD