सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने यूपी मदरसा बोर्ड के क़ामिल और फ़ज़िल डिग्री को किया असंवैधानिक, 25,000 छात्रों का भविष्य दांव पर
के कुमार आहूजा 2024-11-11 07:56:26
उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड द्वारा प्रदान की जाने वाली क़ामिल और फ़ज़िल डिग्रियाँ अब असंवैधानिक घोषित हो गई हैं, और इससे करीब 25,000 छात्रों का भविष्य अंधेरे में दिख रहा है। सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले ने राज्य के मदरसों में चल रहे उच्च शिक्षा कार्यक्रमों को गंभीर चुनौती दी है, जिससे छात्रों के लिए नया रास्ता खोजना आवश्यक हो गया है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
5 नवंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड की क़ामिल और फ़ज़िल डिग्रियों को असंवैधानिक घोषित कर दिया। कोर्ट ने यह निर्णय लिया कि ये डिग्रियाँ विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) अधिनियम के खिलाफ हैं। क़ामिल डिग्री को स्नातक और फ़ज़िल डिग्री को स्नातकोत्तर के समकक्ष माना जाता था, लेकिन अब इन्हें मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों से प्रदान की जाने वाली डिग्रियों से तुलना नहीं की जा सकती है। (See on page No. 69, Point No. 104(d) in decision.)
छात्रों की चिंता
इस फैसले के बाद, जिन छात्रों ने क़ामिल और फ़ज़िल कोर्स किए हैं, उनके लिए भविष्य में नौकरी और शिक्षा के अवसर सवालों के घेरे में हैं। मदरसा शिक्षक संघ के महासचिव ज़माँ खान ने बताया कि यह निर्णय छात्रों के लिए कठिन परिस्थिति पैदा कर रहा है, क्योंकि अब ये छात्र परीक्षाएँ नहीं दे पाएंगे। उन्होंने सरकार से अपील की कि छात्रों के भविष्य को अंधेरे में जाने से बचाने के लिए कोई समाधान निकाला जाए।
सरकार का रुख
माइनॉरिटी वेलफेयर मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अध्ययन करेगी और इसके बाद कोई ठोस कदम उठाया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि यह सवाल अभी विचाराधीन है कि इन छात्रों को किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से जोड़ा जाएगा या नहीं।
क़ामिल और फ़ज़िल डिग्री का ऐतिहासिक संदर्भ
फ़ज़िल और क़ामिल डिग्री पहले से ही प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने के लिए मान्यता प्राप्त नहीं थीं। इन डिग्रियों के धारकों को केवल मदरसों में ही नौकरी मिलती थी, और अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, इन डिग्रियों का कोई औचित्य नहीं बचा। पूर्व मदरसा बोर्ड सदस्य क़मर अली ने बताया कि पहले भी इन डिग्रियों को सरकारी नौकरी के लिए स्वीकार नहीं किया जाता था, लेकिन अब यह स्थिति और भी जटिल हो गई है।
आगे की राह
अब सरकार के सामने बड़ी चुनौती है कि इन छात्रों के भविष्य को सुरक्षित किया जाए और उन्हें एक मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से जुड़ा जाए। सरकार ने पहले भी लखनऊ स्थित 'ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती उर्दू-अरबी-पारसी विश्वविद्यालय' में इन छात्रों को समायोजित करने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन इस पर कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मदरसा शिक्षा प्रणाली के लिए एक नया मोड़ लेकर आया है, और इससे जुड़ी हर एक दिशा में सरकार को सटीक कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि छात्रों को किसी प्रकार की असुविधा न हो।
डाउनलोड लिंक : https://api.sci.gov.in/supremecourt/2024/14432/14432_2024_1_1502_56834_Judgement_05-Nov-2024.pdf