यूपी सरकार को सुप्रीम कोर्ट की फटकार: अवैध तरीके से घर गिराने पर ₹25 लाख मुआवज़े का आदेश 


के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा  2024-11-08 04:38:10



 

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के अवैध तरीके से एक घर गिराने के मामले में कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार बिना नोटिस और उचित प्रक्रिया अपनाए किसी का घर नहीं गिरा सकती है। इस निर्णय से यूपी सरकार की प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर सवाल उठते हैं, और कोर्ट ने मुआवज़े के साथ-साथ जवाबदेह अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का आदेश दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उत्तर प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए एक घर को अवैध रूप से गिराने पर ₹25 लाख का मुआवज़ा देने का आदेश दिया। यह आदेश चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने जारी किया। कोर्ट ने कहा कि यह कार्रवाई अत्यधिक दबाव में की गई और इसे कानून के आधार पर सही नहीं ठहराया जा सकता।

कोर्ट ने यूपी सरकार से सवाल किया कि कैसे वह बिना कानूनी प्रक्रिया और बिना किसी नोटिस के किसी का घर गिरा सकती है। कोर्ट ने पाया कि इस कार्रवाई में कानून का उल्लंघन हुआ, और कहा कि किसी भी निजी संपत्ति पर कार्रवाई से पहले कानून का पालन किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यूपी सरकार द्वारा कार्रवाई के तौर-तरीकों पर सवाल उठाए और इसे ‘अधिकार का दुरुपयोग’ करार दिया।

याचिकाकर्ता के अनुसार, उनके घर को अवैध अतिक्रमण बताकर गिरा दिया गया था। याचिकाकर्ता का यह भी दावा है कि यह कार्रवाई उस वक्त हुई, जब उन्होंने एक सड़क निर्माण परियोजना में अनियमितताओं की रिपोर्ट एक समाचार पत्र में प्रकाशित की थी। उनकी मानें तो यह तोड़फोड़ एक प्रतिशोधात्मक कदम था।

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिया कि यह कार्यवाही गैर-कानूनी थी, इसलिए यूपी सरकार को ₹25 लाख का दंडात्मक मुआवज़ा देना होगा। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से यह भी कहा कि दोषी अधिकारियों पर आपराधिक कार्यवाही शुरू की जाए। कोर्ट ने यूपी सरकार की पुनर्विचार की मांग को ठुकराते हुए कहा कि मामले में सभी दस्तावेज पहले ही प्रस्तुत किए जा चुके हैं और अब इसमें विलंब की आवश्यकता नहीं है।

नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन (NHRC) की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि अतिक्रमण का दायरा जितना बताया गया था, तोड़फोड़ उससे कहीं ज्यादा व्यापक स्तर पर की गई थी। इस रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट ने राज्य सरकार को याद दिलाया कि सड़क चौड़ीकरण में यदि अतिक्रमण पाया जाता है, तो नोटिस जारी कर संबंधित लोगों को आपत्ति दर्ज कराने का अवसर देना चाहिए।

राज्य सरकारों के लिए कोर्ट का निर्देश

कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि भविष्य में किसी भी सड़क चौड़ीकरण के काम में निम्नलिखित कदमों का पालन किया जाए:

1)सड़क की मौजूदा चौड़ाई का निर्धारण किया जाए,

2)यदि अतिक्रमण पाया जाता है तो नोटिस देकर उसे हटाने की सूचना दी जाए,

3)यदि कोई आपत्ति उठाई जाती है, तो निर्णय एक स्पष्ट आदेश के माध्यम से दिया जाए,

4)और यदि आपत्ति अस्वीकार की जाती है, तो अतिक्रमण हटाने के लिए पर्याप्त समय दिया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले की एक प्रति सभी राज्यों को भेजने का आदेश दिया ताकि सभी जगह इस प्रक्रिया का पालन हो सके।


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