रणथंभौर में बाघ T-86 की मौत के कारणों पर संशय, कल हो सकता है पोस्टमार्टम  


के कुमार आहूजा  2024-11-04 15:37:51



 

राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान में बाघ T-86 की अचानक मृत्यु ने सभी को चौंका दिया है। 14 वर्षीय इस बाघ का शव रविवार को मिला, जिससे क्षेत्र में चिंताओं का दौर शुरू हो गया है। इस घटना ने न केवल वन्यजीवों के संरक्षण के मुद्दों को उजागर किया है, बल्कि स्थानीय निवासियों और अधिकारियों के बीच भी तनाव पैदा कर दिया है।

मौत की परिस्थितियाँ: 

ताजा जानकारी के अनुसार, बाघ T-86 की मौत की संभावित वजहों पर चर्चा हो रही है। अनधिकृत रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि बाघ पर पत्थर फेंकने के कारण उसकी मृत्यु हो सकती है, क्योंकि उसके शरीर के चारों ओर पत्थर बिखरे हुए पाए गए हैं। हालांकि, वन विभाग ने अभी तक आधिकारिक तौर पर मौत के कारण की पुष्टि नहीं की है। वहीं, इस घटना से पहले शनिवार रात एक ग्रामीण, भारतलाल, की बाघ के हमले में मौत हुई थी, जिससे स्थिति और भी गंभीर हो गई है।

स्थानीय प्रतिक्रिया: 

स्थानीय निवासियों ने इस घटना को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की है। वे बताते हैं कि बाघ T-86, जो कि बाघिन लाडली T-8 और बाघ T-34 का वंशज था, ने पर्यटन क्षेत्र से बाहर एक गैर-पर्यटन क्षेत्र में अपना क्षेत्र स्थापित किया था। इसकी मृत्यु ने पूरे क्षेत्र को हिलाकर रख दिया है और स्थानीय लोग इसकी जानकारी के लिए बेचैन हैं।

शव का परीक्षण: 

वन विभाग के अधिकारियों ने बाघ के शव को कब्जे में ले लिया है और इसकी मृत्यु के कारण की पुष्टि के लिए सोमवार को पोस्टमॉर्टम परीक्षा की उम्मीद की जा रही है। इस पोस्टमॉर्टम से संभावित कारणों का खुलासा हो सकता है। T-86 की मौत से न केवल वन्यजीवों का संरक्षण प्रभावित होगा, बल्कि स्थानीय समुदाय की सुरक्षा पर भी सवाल उठ सकते हैं।

संरक्षण संबंधी चिंताएँ: 

यह घटना वन्यजीवों के संरक्षण के लिए एक बड़ा चेतावनी संकेत है। जब तक इन बाघों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं होती, तब तक उनके क्षेत्र में स्थानीय निवासियों और वन्यजीवों के बीच संघर्ष की संभावनाएं बढ़ सकती हैं। वन विभाग को इस समस्या का समाधान करने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि ऐसी घटनाओं से बचा जा सके।

बाघ T-86 की अप्रत्याशित मृत्यु ने रणथंभौर में चिंता की लहर पैदा कर दी है। अधिकारियों को जल्द से जल्द स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए ताकि स्थानीय निवासियों और वन्यजीवों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। इससे न केवल बाघों के संरक्षण में मदद मिलेगी, बल्कि स्थानीय लोगों के साथ वन्यजीवों के सह-अस्तित्व को भी बनाए रख सकेगी।


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