भीड़ से गूंजते ढोल और गोवर्धन पूजा पर दौड़ती गायों के बीच अपनी आस्था का अनोखा प्रदर्शन
के कुमार आहूजा 2024-11-04 11:09:18
♦ उज्जैन जिले के बड़नगर के भिड़ावद गांव में अनोखी परंपरा
♦ मन्नत के लिए गौधूलि तले लेटते ग्रामीण
उज्जैन जिले के बड़नगर तहसील के भिड़ावद गांव में हर साल दिवाली के बाद गोवर्धन पूजा पर एक प्राचीन परंपरा निभाई जाती है, जो न केवल लोगों को रोमांचित करती है बल्कि देखनें वालों की सांसें रोक देती है। यहां भक्तगण अपने शरीर को जमीन पर लिटाकर उनके ऊपर से दौड़ती गायों को गुजरने देते हैं, जिससे उनका विश्वास है कि उनकी मन्नतें पूरी होंगी। इसे स्थानीय श्रद्धा और आस्था के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, जिसमें ग्रामीणों का कहना है कि ऐसा करने से उन्हें देवी-देवताओं का आशीर्वाद मिलता है।
क्यों निभाई जाती है यह परंपरा?
ग्रामीणों का मानना है कि गायों में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है। उनके पैरों के नीचे आकर भक्त यह मानते हैं कि उन्हें देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त हो रहा है। ग्रामीणों के अनुसार यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसे निभाने वाले लोगों का विश्वास है कि इसके जरिए उनकी मुरादें पूरी होती हैं। इस अनोखी मान्यता को निभाने के लिए लोग पांच दिनों तक उपवास रखते हैं, और अपनी श्रद्धा को गोवर्धन पूजा के दिन इस रीति से प्रकट करते हैं।
कैसे होता है आयोजन?
दिवाली के एक दिन बाद आयोजित होने वाले इस मेले में भिड़ावद गांव के साथ-साथ आस-पास के गांवों से भी लोग आते हैं। दिवाली से पहले ही मन्नत मांगने वाले अपने घर छोड़कर गांव के मंदिर में जाकर रहते हैं और वहां पूरे पांच दिन का उपवास करते हैं। गोवर्धन पूजा के दिन ढोल-नगाड़ों के बीच ये श्रद्धालु अपने गांव की परिक्रमा करते हैं। परिक्रमा के बाद भक्तगण खुली जगह पर लेट जाते हैं, और तब उनके ऊपर से गायों का झुंड दौड़ाया जाता है। इस दौरान वहां हजारों लोग इसे देखने के लिए जमा होते हैं।
आस्था और परंपरा का अनोखा मेल
इस परंपरा में बुजुर्ग और युवा समान रूप से भाग लेते हैं, और यह गांव के हर एक व्यक्ति के लिए गर्व का विषय है। ग्रामीणों के अनुसार, परंपरा कब शुरू हुई यह किसी को नहीं मालूम, लेकिन सभी इसे उत्साह और विश्वास के साथ निभाते आ रहे हैं। मन्नत मांगने वाले लोगों को विश्वास होता है कि उनके पूर्वजों के समय से चल रही इस परंपरा को निभाने से उनकी इच्छाएं जरूर पूरी होंगी।
इस आयोजन के जरिए न केवल ग्रामीण अपनी श्रद्धा को दर्शाते हैं, बल्कि यह परंपरा स्थानीय संस्कृति और धार्मिक आस्था का प्रतीक बन गई है। ग्रामीणों का मानना है कि ऐसा करके वे अपने देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त करते हैं और खुद को सुरक्षित भी महसूस करते हैं।