गया में विदेशी श्रद्धालुओं ने की पिंडदान पूजा, रूस से आए भक्तों ने किया अपने पूर्वजों का तर्पण


के कुमार आहूजा  2024-11-04 09:18:08



 

बिहार के गया स्थित प्रसिद्ध विष्णुपद मंदिर में इस बार का पिंडदान आयोजन बेहद खास रहा, क्योंकि इसमें रूस से आए लगभग 50 विदेशी श्रद्धालुओं ने भाग लिया। श्रद्धालु अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और तर्पण जैसे हिंदू संस्कार करने के उद्देश्य से पहुंचे थे। उनके साथ आए पुरोहितों के मार्गदर्शन में इन भक्तों ने सभी रस्में विधिवत पूरी कीं। मुख्य पंडित ने बताया कि विदेशी भक्त भारतीय परिधान पहन कर परंपराओं का पालन कर रहे थे, जिससे उनके प्रति स्थानीय लोगों की श्रद्धा और बढ़ी।

प्रसिद्ध विष्णुपद मंदिर में विदेशी श्रद्धा का अद्भुत दृश्य 

गया का विष्णुपद मंदिर पितृपक्ष के दौरान पिंडदान के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। श्रद्धालुओं का कहना था कि उन्हें यहां आकर आंतरिक शांति और आत्मिक संतोष की अनुभूति हुई। रूस की निवासी एलेना काशिट्सिना ने बताया, "भारत की भूमि पर आकर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करना मेरे लिए बहुत ही खास है।" यहां मौजूद भक्तों का मानना है कि इन रस्मों से उनके पूर्वजों को मुक्ति मिलती है और यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है।

पिंडदान की महत्ता और धार्मिक रस्में 

इस आयोजन में लोकनाथ गौड़ जैसे प्रमुख पुजारियों ने विदेशी श्रद्धालुओं का सहयोग किया। श्रद्धालुओं ने फल्गु नदी के तट पर अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान किया, जो हिंदू धर्म में आत्मा की मुक्ति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। बताया गया कि ये श्रद्धालु रूस के विभिन्न हिस्सों से विशेष रूप से गया की यात्रा पर आए थे। पंडित लोकनाथ ने यह भी बताया कि हर साल पितृपक्ष के दौरान इसी तरह विदेशी भक्त यहां आते हैं और अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए ये रस्में निभाते हैं।

गया की धार्मिक यात्रा का अनुभव 

इस साल पितृपक्ष के अवसर पर करीब आठ लाख श्रद्धालु पिंडदान के लिए गया आने की संभावना है। विदेशी पर्यटकों के यहां आने से भारत के धार्मिक पर्यटन को भी बढ़ावा मिलता है और इस यात्रा के माध्यम से वे भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं के करीब आते हैं। परंपराओं का पालन करते हुए श्रद्धालुओं ने अपने पूर्वजों के प्रति आस्था का प्रदर्शन किया और इस पावन स्थल पर जाकर अपने भावनात्मक संबंधों को और मजबूत किया।

विदेशी भक्तों की ऐसी आस्था ने स्थानीय श्रद्धालुओं के साथ-साथ भारत के धार्मिक समुदाय को भी प्रभावित किया। इस आयोजन ने न केवल धार्मिक एकता को बढ़ावा दिया बल्कि भारत की आध्यात्मिकता और धार्मिक पर्यटन की बढ़ती लोकप्रियता का भी प्रमाण पेश किया।


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