कालरात्रि दीपावली एक विशेष अवसर है, जिसे न केवल देवी लक्ष्मी के स्वागत के लिए बल्कि तांत्रिक अनुष्ठानों, ध्यान और उर्जा साधना के लिए एक शक्तिशाली रात्रि माना गया है


के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा  2024-10-31 07:07:58



मंत्र सिद्धि, लक्ष्य साधना एव समृद्धि का अद्भुत पर्व कालरात्रि दीपोत्सव

। इस रात्रि के दौरान दीप जलाने का महत्व है क्योंकि दीपक की लौ से उत्पन्न ऊर्जा तामसिक शक्तियों पर सकारात्मक प्रभाव डालती है। इसका जिक्र भारतीय वेदों और शास्त्रों में भी मिलता है, जहाँ गहन अमावस्या के अंधकार में दीप जलाना एक पवित्र और सशक्तिकरण का प्रतीक माना जाता है।

कालरात्रि का देवी माँ से संबंध और महत्व

कालरात्रि माँ का स्वरूप घोर अंधकार को समाप्त करने वाली देवी का रूप है, जो भक्तों के दुखों और भय का अंत करती हैं। देवी कालरात्रि को अमावस्या की अधिष्ठात्री माना जाता है और उनके पूजन का यह विशेष दिन होता है, जिसमें ऋग्वेद और अन्य वेदों में मंत्रों का उच्चारण कर देवी को प्रसन्न करने का विधान है। यह माना जाता है कि उनकी पूजा से न केवल भय का नाश होता है बल्कि जीवन में सुख और समृद्धि का संचार होता है​।

तिल्ली के तेल का प्रयोग और उसकी वैज्ञानिक व आध्यात्मिक मान्यता

धार्मिक मान्यता के अनुसार, दीपावली पर तिल्ली के तेल के दीप जलाना अत्यंत शुभ होता है। तिल्ली के तेल से उत्पन्न उष्मा और ऊर्जा तामसिक शक्तियों को हटाने में सहायक होती है, जिससे घर में सकारात्मकता का संचार होता है। इसे अंधकार से लड़ाई का प्रतीक माना जाता है, और माना जाता है कि इसके प्रभाव से वातावरण में सकारात्मकता फैलती है। आधुनिक समय में, हालांकि, बाजार में आसानी से उपलब्ध इलेक्ट्रिक लाइट्स का उपयोग बढ़ गया है, लेकिन यह परंपरागत दीप जलाने से उत्पन्न उष्मा और उर्जा की तुलना में प्रभावी नहीं मानी जाती।

धनतेरस, रूप चौदस, और अमावस्या के दिन का महत्व

धनतेरस पर भगवान धनवंतरि की पूजा, रूप चौदस के दिन विशेष स्नान और दीपावली पर देवी लक्ष्मी, भगवान गणेश, और कुबेर का पूजन एक साथ करने की प्राचीन परंपरा रही है। इस समय का सही रूप से पालन न करने के कारण, समाज में दीवाली का वास्तविक उद्देश्य कहीं खो सा गया है। ऋग्वेद और यजुर्वेद में उल्लिखित विधि के अनुसार इन पूजाओं का सही समय और प्रक्रिया से पालन करने पर व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और संपन्नता आती है​।

आधुनिक परिप्रेक्ष्य में परंपराओं का क्षीणता

आज के समय में दीपावली के कई पारंपरिक महत्व खो से गए हैं, विशेषकर शहरी जीवन में, जहाँ तिल्ली के तेल के दीप जलाने की परंपरा धीरे-धीरे समाप्त हो रही है। लोगों का रुझान कृत्रिम साधनों की ओर बढ़ता जा रहा है, जिससे धार्मिक ऊर्जा का स्तर भी कमजोर पड़ता जा रहा है। यह कालरात्रि अपने आप में चेतना, सकारात्मकता और देवी की कृपा पाने का विशेष अवसर है, जो साल में एक बार ही आता है।

इस प्रकार, कालरात्रि दीपावली हमें आध्यात्मिकता से जोड़ती है और जीवन में खुशियों और समृद्धि का स्वागत करने का अवसर देती है। ऐसे में इस दिवाली परंपराओं का पालन करके हम देवी लक्ष्मी के आशीर्वाद से अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं।

लेखक:

भवानी आचार्य [9413513305] 

एम एल ए हाउस, बंगला नगर

बीकानेर।

अस्वीकरण: इस आलेख में प्रस्तुत जानकारी लेखक के अपने विचार हैं। बीकानेर बुलेटिन ,बीकानेर फ्रंटियर आलेख में दिए गए तथ्यों और जानकारी की सत्यता प्रमाणित नहीं करता है। किसी भी उपाय या सुझाव का पालन करने से पहले व्यक्तिगत विवेक से निर्णय लें या किसी योग्य विशेषज्ञ से परामर्श लें।


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