गोबर से दाह-संस्कार: ओडिशा सरकार का अनूठा पर्यावरण-संरक्षक कदम
के कुमार आहूजा 2024-10-30 15:21:15
ओडिशा सरकार ने एक नई पर्यावरण-संरक्षक पहल शुरू की है, जिसके तहत पारंपरिक लकड़ी की चिताओं के स्थान पर गोबर के उपलों का उपयोग किया जाएगा। यह कदम न केवल वायु प्रदूषण को कम करने में सहायक होगा बल्कि वृक्षों की कटाई भी रोकने में सहायक साबित होगा। यह कदम हिंदू परंपराओं के अनुकूल माना जा रहा है, और इसे राज्य के धार्मिक नेताओं का समर्थन भी प्राप्त है।
पर्यावरण सुरक्षा और धार्मिक परंपरा का मिलन
ओडिशा राज्य के मत्स्य एवं पशु संसाधन मंत्री, गोकुला नंद मल्लिक, ने पुष्टि की कि यह पहल प्रारंभिक चर्चा के चरण में है और एक ठोस योजना जल्द ही बनाई जाएगी। मंत्री मल्लिक ने कहा, "गोबर को हिंदू परंपराओं में पवित्र माना जाता है, और इसे दाह-संस्कार में लकड़ी के विकल्प के रूप में अपनाना एक सकारात्मक कदम होगा।" इस पहल के अंतर्गत सामाजिक एवं धार्मिक समूहों के साथ परामर्श किया जाएगा ताकि इसे व्यापक रूप से स्वीकार्य बनाया जा सके।
एक समिति का गठन और विस्तारित गोशाला प्रबंधन
सरकार इस पहल की देखरेख के लिए एक समिति बनाएगी, जिसका नेतृत्व उपमुख्यमंत्री करेंगे। इस समिति में पांच मंत्री और पांच सचिव शामिल होंगे जो योजना के संचालन और क्रियान्वयन में भूमिका निभाएंगे। साथ ही, गोशालाओं का विस्तार और गायों के संरक्षण को बढ़ावा देने के साथ-साथ दूध उत्पादन में भी सुधार के प्रयास किए जाएंगे, जिससे राज्य में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में व्यापक सुधार हो सके।
धार्मिक नेताओं का समर्थन
ओडिशा के पुरी मठ के महंत नारायण रामानुज दास ने इस पहल का स्वागत करते हुए कहा कि दक्षिण भारत में गोबर से दाह-संस्कार की परंपरा पहले से ही प्रचलित है। उनके अनुसार, गाय हिंदू धर्म में पवित्र मानी जाती है और गोबर के उपयोग से धार्मिक एवं पर्यावरणीय संतुलन साधा जा सकता है। इसी प्रकार, ख्यात ज्योतिषी पंडित हरिशंकर मिश्रा ने इसे "पारंपरिक एवं पर्यावरण-अनुकूल कदम" बताते हुए इसे प्रशंसा के योग्य बताया और कहा कि इससे समाज में सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
पर्यावरण पर प्रभाव और संभावनाएं
गोबर से बने उपलों का उपयोग करने से न केवल वनों की कटाई में कमी आएगी बल्कि दाह-संस्कार के दौरान वायु प्रदूषण का स्तर भी घटेगा। गोबर के उपलों के उपयोग से कार्बन उत्सर्जन भी कम होगा और यह कदम राज्य के अन्य पर्यावरणीय संरक्षण कार्यक्रमों के साथ तालमेल बिठाएगा। विभिन्न गोशालाओं में उपलब्ध गोबर को उपले बनाने में इस्तेमाल कर इस पहल को सुचारू रूप से क्रियान्वित किया जाएगा। इस दिशा में गोपालकृष्ण गोशाला द्वारा कटक में किए गए प्रयोग एक उदाहरण के रूप में सामने आए हैं, जहां गोबर के उपले लकड़ी के विकल्प के रूप में उपयोग किए जा रहे हैं।
बहरहाल, ओडिशा सरकार की यह पहल न केवल एक क्रांतिकारी पर्यावरणीय कदम है, बल्कि धार्मिक आस्थाओं और परंपराओं के साथ तालमेल बिठाते हुए इसे स्वीकार्य बनाया गया है। उम्मीद है कि इस पहल को पूरे राज्य में एक व्यापक आंदोलन के रूप में अपनाया जाएगा, जिससे न केवल धार्मिक मान्यताओं को सुदृढ़ता मिलेगी बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान होगा।