सर्दियों में सांस की तकलीफ बढ़ने का असली कारण: जानिए बचाव के तरीके 


के कुमार आहूजा  2024-10-29 19:14:49



सर्दियों में सांस की तकलीफ बढ़ने का असली कारण: जानिए बचाव के तरीके 

ठंडी हवाओं में सांस लेने से क्यों बढ़ जाती है मुश्किल, क्या करें राहत पाने के लिए

सर्दियों के मौसम के आते ही घर के भीतर की गर्माहट तो अच्छी लगती है, लेकिन ठंडी हवाएं और बढ़ता प्रदूषण सांस की तकलीफ वाले लोगों के लिए बड़ी समस्या बन सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि ठंडी और शुष्क हवाओं के कारण सर्दियों में सांस की समस्याएं, खासकर अस्थमा और सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) से पीड़ित मरीजों के लिए, और भी खतरनाक हो जाती हैं। आइए, जानते हैं कैसे ठंडी हवा और प्रदूषण का यह संगम हमारे फेफड़ों को प्रभावित करता है और इससे राहत के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं।

ठंडी हवा से बढ़ जाती है म्यूकस की मात्रा

ठंडी हवा के संपर्क में आने पर शरीर अधिक मात्रा में म्यूकस (बलगम) उत्पन्न करता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ठंडा और शुष्क हवा फेफड़ों में जलन उत्पन्न कर सकती है, जिससे फेफड़े खुद को बचाने के लिए म्यूकस की मात्रा बढ़ा देते हैं। म्यूकस का काम तो फेफड़ों की सुरक्षा करना है, लेकिन अधिक मात्रा में यह जमकर रुकावट पैदा कर सकता है और सांस लेने में कठिनाई उत्पन्न कर सकता है।

शुष्क हवा का असर

सर्दियों में हवा अक्सर शुष्क होती है, जिससे फेफड़ों और श्वसन तंत्र की नमी छिन जाती है। यह नमी का छिन जाना अस्थमा और सीओपीडी के मरीजों के लिए गंभीर समस्या बन सकती है, क्योंकि उनके फेफड़े पहले ही कमजोर होते हैं। सूखी हवा से सांस की नलियों में सूजन और जलन उत्पन्न हो सकती है, जिससे सांस लेना कठिन हो जाता है और सीने में जकड़न महसूस होती है।

ठंड में प्रदूषण का बढ़ता स्तर

सर्दियों में न सिर्फ ठंड, बल्कि प्रदूषण का स्तर भी खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है। सर्दियों में प्रदूषण के बढ़ने का कारण ‘टेम्परेचर इन्वर्शन’ होता है, जिसमें ठंडी हवा ऊपर के गर्म हवा को नीचे धकेल देती है। इस स्थिति में धुआं और अन्य हानिकारक कण जमीन के नजदीक फंस जाते हैं। इसके कारण पीएम 2.5 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसों का स्तर बढ़ता है, जो फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है।

घर के अंदर की हवा की गुणवत्ता भी खराब होती है

सर्दियों में लोग अपने घरों को बंद कर रखते हैं ताकि ठंड न आए, लेकिन इससे घर के भीतर हवा की गुणवत्ता खराब हो सकती है। वेंटिलेशन न होने से घर के अंदर की हवा में धूल, धुआं, और वाष्पशील ऑर्गेनिक कंपाउंड (वीओसी) का स्तर बढ़ जाता है, जो फेफड़ों में जलन उत्पन्न कर सकता है। ऐसे में घर के भीतर भी हवा का सही से बाहर निकलना और वेंटिलेशन बहुत आवश्यक हो जाता है।

फेफड़ों की सुरक्षा के उपाय

ठंडी हवाओं और प्रदूषण से फेफड़ों को सुरक्षित रखने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:

1) गर्म कपड़े पहनें: जब भी बाहर जाएं, मुंह और नाक को एक स्कार्फ या मफलर से ढकें। इससे ठंडी हवा सीधे श्वसन तंत्र में नहीं जाती और हवा थोड़ी गर्म होकर अंदर जाती है।

2) भाप लें: भाप लेना एक बहुत अच्छा तरीका है जिससे श्वसन तंत्र को आराम मिलता है। यह हवा को नमी प्रदान कर फेफड़ों को सर्दी से बचाता है।

3) घर में ह्यूमिडिफायर का उपयोग करें: घर के भीतर हवा की नमी को बनाए रखने के लिए ह्यूमिडिफायर का उपयोग कर सकते हैं। शुष्क हवा से बचने के लिए ये सबसे प्रभावी तरीका है।

4) प्रदूषण वाले दिनों में घर पर रहें: जब बाहर का प्रदूषण स्तर बहुत अधिक हो, तब बाहर निकलने से बचें। अगर निकलना जरूरी हो तो एन95 मास्क का उपयोग करें।

5) संतुलित आहार लें: विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर आहार लें, जिससे इम्यूनिटी बढ़ती है और ठंड व प्रदूषण से बचने में मदद मिलती है।

सर्दियों में ठंडी हवा, शुष्क वातावरण और बढ़ता प्रदूषण श्वसन तंत्र के लिए गंभीर खतरा हो सकता है। अस्थमा और सीओपीडी से पीड़ित व्यक्तियों को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। नियमित रूप से भाप लेना, घर में हवा की नमी बनाए रखना और प्रदूषित दिनों में बाहर निकलने से बचना ऐसे कदम हैं जो सांस की समस्याओं को कम करने में मदद कर सकते हैं। इस मौसम में सावधानी बरतना और स्वास्थ्य पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है ताकि ठंड का मौसम आसानी से गुजारा जा सके।

Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी केवल सामान्य सूचना के उद्देश्यों के लिए है। यह चिकित्सा सलाह नहीं है। यदि आपको सांस की तकलीफ या अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं, तो कृपया अपने चिकित्सक या स्वास्थ्य सेवा प्रदाता से परामर्श करें। लेखक और प्रकाशक इस जानकारी के उपयोग से उत्पन्न किसी भी प्रकार के नुकसान या स्वास्थ्य समस्याओं के लिए उत्तरदायी नहीं होंगे। अपने स्वास्थ्य के संबंध में किसी भी निर्णय लेने से पहले हमेशा पेशेवर चिकित्सा सलाह प्राप्त करें।


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