एक पूरी पीढ़ी पर मंडराता संकट: Lead Poisoning देश में गंभीर खतरे का संकेत बन चुका है
के कुमार आहूजा 2024-10-29 19:08:00
सीसा प्रदूषण हमारे देश में गंभीर खतरे का संकेत बन चुका है। रोज़मर्रा की चीज़ों में सीसे के तत्व पाए जाते हैं, जो धीमे ज़हर की तरह हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं। बच्चों से लेकर बड़े-बूढ़ों तक, सीसा प्रदूषण के गंभीर प्रभावों से कोई अछूता नहीं है।
सीसा प्रदूषण का मुद्दा भारत में समय के साथ एक खामोश आपदा का रूप ले चुका है। नीति आयोग और काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक, देश के 23 राज्यों में औसतन सीसे का स्तर 5 μg/dL से ऊपर है, जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह जहरीली धातु हमारे शरीर में विभिन्न तरीकों से प्रवेश करती है, जैसे घरेलू उत्पाद, मसाले, खिलौने, और यहां तक कि मिट्टी के माध्यम से। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में औसत रक्त सीसा स्तर 4.9 μg/dL है, जबकि यू.एस. में बच्चों में यह केवल 0.6 μg/dL तक पाया जाता है।
सीसे का यह खामोश जहर हमारे देश के भविष्य पर गहरी चोट कर रहा है, जिससे ना सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव पड़ते हैं। बच्चों पर इसका असर अधिक घातक होता है क्योंकि इससे संज्ञानात्मक क्षमताओं में गिरावट, विकास में रुकावट, और मानसिक विकार हो सकते हैं। गर्भवती महिलाओं पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ता है। सीसा हड्डियों में जमा हो सकता है और खून के जरिए गर्भ में पल रहे बच्चे तक पहुंच सकता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, विश्व स्तर पर प्रतिवर्ष लगभग 1.5 से 5.5 मिलियन लोग सीसा प्रदूषण से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं के कारण अपनी जान गंवाते हैं।
पर्यावरण पर प्रभाव
सीसा प्रदूषण केवल मानव स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि पर्यावरण पर भी गहरा असर डालता है। दूषित मिट्टी, कचरा, और उद्योगों द्वारा निकले प्रदूषित तत्व हवा और पानी के माध्यम से पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करते हैं। प्रदूषित मिट्टी में उगाए गए फसलें इस प्रदूषण का हिस्सा बन जाती हैं, जिससे खाद्य शृंखला भी प्रभावित होती है। अध्ययनों में पाया गया है कि अनौपचारिक रीसाइक्लिंग केंद्रों के आसपास की मिट्टी में सीसे का स्तर अंतरराष्ट्रीय मानकों से कई गुना ज्यादा पाया गया है।
समाधान और नीति का आह्वान
सीसा प्रदूषण से निपटने के लिए भारत ने कुछ कदम उठाए हैं, जैसे कि पेंट में सीसा की मात्रा को कम करने के लिए भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के दिशा-निर्देश और खाद्य पदार्थों में सीसा की मात्रा को नियंत्रित करने के लिए खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) के नियम। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। वाइटल स्ट्रेटजीज के मैनेजिंग डायरेक्टर एल. एम. सिंह के अनुसार, “भारत में धातु विषाक्तता को रोकने के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम की ज़रूरत है, जो राज्यों को सीसे के स्रोतों की पहचान और रोकथाम में सहायता कर सके।”
विशेषज्ञों का मानना है कि जन जागरूकता के साथ-साथ, चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों को सीसा प्रदूषण की पहचान और इलाज के साधनों से लैस करना महत्वपूर्ण है। इस समस्या का सामना करने के लिए सरकार, गैर-सरकारी संगठनों (NGOs), और स्थानीय समुदायों को मिलकर काम करना होगा ताकि लोगों को शिक्षित किया जा सके और स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत बनाया जा सके।
भविष्य की ओर
तेजी से हो रहे औद्योगिकीकरण के साथ सीसा प्रदूषण की चुनौती और भी बढ़ जाती है। इस समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए स्कूलों, अस्पतालों और स्थानीय समुदायों को मिलकर जागरूकता फैलानी होगी। सख्त नीति-निर्माण, सामूहिक प्रयास, और प्रभावी समाधान से हम सीसा प्रदूषण की इस खामोश चुनौती से निपट सकते हैं। अगर सही समय पर कदम उठाए जाएं, तो हम आने वाली पीढ़ी को एक सुरक्षित, सीसा-मुक्त भविष्य दे सकते हैं।