स्वदेशी हर्बल ज्ञान को पेटेंट के माध्यम से मिली अंतरराष्ट्रीय पहचान, जम्मू-कश्मीर और गुजरात के विद्वानों को मिला सम्मान 


के कुमार आहूजा  2024-10-29 16:26:10



 

प्राकृतिक हर्बल ज्ञान की समृद्ध परंपरा को विज्ञान की दुनिया में एक नई पहचान मिली है। भारत के पारंपरिक हर्बल ज्ञान के रखवालों को राष्ट्रीय नवाचार फाउंडेशन द्वारा सम्मानित किया गया, जिसने इस क्षेत्र में भारत की अग्रणी स्थिति को मजबूत किया है।

सम्मान समारोह और पेटेंट

जम्मू-कश्मीर और गुजरात के हर्बल विशेषज्ञों को हर्बल ज्ञान में उनकी अद्वितीय योगदान के लिए पेटेंट प्रदान किया गया। प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) की रिपोर्ट के अनुसार, पहला समारोह कश्मीर विश्वविद्यालय में आयोजित हुआ, जिसके बाद 22 अक्टूबर 2024 को दूसरा समारोह गुजरात के गांधीनगर में हुआ, जहां राष्ट्रीय नवाचार फाउंडेशन (एनआईएफ) ने 26 विद्वानों को उनकी परंपरागत हर्बल तकनीकों के लिए सम्मानित किया। इस पहल का उद्देश्य इन पारंपरिक प्रथाओं को वैज्ञानिक स्तर पर पहचान देना और उनकी व्यापक प्रभाव को बढ़ाना है।

हर्बल ज्ञान और समाजिक लाभ

भारत अपने पारंपरिक हर्बल ज्ञान के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। स्थानीय विशेषज्ञों के प्रयासों ने इन हर्बल प्रथाओं को संजोए रखा है, जो विभिन्न बीमारियों के इलाज और पर्यावरण के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। एनआईएफ ने इन प्रथाओं को संरक्षण और विकास का मौका देने के लिए बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) के तहत पेटेंट का अनुदान दिया है, जिससे समाज के स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को पूरा करने के साथ ही आर्थिक स्थिरता और सामुदायिक सहयोग को बढ़ावा मिलेगा।

एनआईएफ और विज्ञान प्रौद्योगिकी विभाग की भूमिका

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के अंतर्गत कार्यरत एनआईएफ ने कई पारंपरिक प्रथाओं को पेटेंट के माध्यम से संरक्षित किया है। पेटेंट के माध्यम से हर्बल प्रथाओं को पहचान और सम्मान मिलने से भारत की हर्बल विरासत को और बल मिलेगा। इस पहल के माध्यम से वैज्ञानिक प्रमाणों के साथ पारंपरिक हर्बल ज्ञान को स्वस्थ्य सेवाओं में उपयोग करने के लिए बढ़ावा दिया जा सकता है, जिससे यह पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के बीच एक सेतु का कार्य करेगा।

भविष्य की संभावनाएँ और भारतीय हर्बल ज्ञान का महत्व

इन हर्बल तकनीकों को पेटेंट कर, भारत ने अपने पारंपरिक ज्ञान को अंतरराष्ट्रीय मान्यता दी है। इससे न केवल स्थानीय समुदायों को सहयोग मिलेगा, बल्कि यह पर्यावरणीय स्थिरता के क्षेत्र में भी मील का पत्थर साबित होगा। पारंपरिक ज्ञान और उद्योग के बीच यह सहकारी संबंध स्वस्थ्य प्रणाली में नए, किफायती और प्रभावी समाधानों की दिशा में अग्रसर करेगा।


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