।सेना और आतंकवादियों के बीच मुठभेड़, एक अधिकारी समेत चार जवान बलिदान
के कुमार आहूजा 2024-10-29 05:13:23
जब युद्धग्रस्त गाज़ा पट्टी और इजरायल के बीच हिंसा अपने चरम पर है, मिस्र ने एक अनोखा प्रस्ताव रखा है जो शांति की नई किरण लाने का वादा करता है। आइए जानते हैं कि इस संघर्षविराम प्रस्ताव में क्या है खास।
विस्तृत रिपोर्ट:
मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी ने गाज़ा और इजरायल के बीच दो-दिवसीय संघर्षविराम का प्रस्ताव दिया है। इस प्रस्ताव के अनुसार, गाज़ा में चार इजरायली बंधकों की रिहाई के बदले में इजरायल में बंद कुछ फिलिस्तीनी कैदियों की अदला-बदली की जा सकती है। इस संघर्षविराम की शुरुआत अगर सफल रहती है, तो अगले दस दिनों तक दोनों पक्षों के बीच स्थायी समझौते के लिए वार्ता जारी रखने की योजना है, जिसमें मानवीय सहायता भी शामिल होगी।
इस पहल का मुख्य उद्देश्य गाज़ा के प्रभावित इलाकों में राहत सामग्री पहुंचाना है, जो कि इस समय अत्यंत आवश्यक है। गाज़ा के अधिकारियों का दावा है कि इजरायली सेना ने उत्तरी गाज़ा में सहायता सामग्री पहुंचने में बाधा उत्पन्न की है, जहाँ बड़े स्तर पर सैन्य ऑपरेशन चल रहे हैं। मिस्र पिछले कुछ महीनों से संघर्षविराम वार्ताओं में मध्यस्थता करता आ रहा है और इस पहल में अमेरिका और क़तर जैसे देशों का भी समर्थन है।
पिछले हफ्ते, इजरायल ने ईरान पर जवाबी हवाई हमले किए थे, जिससे तनाव और बढ़ गया। ईरान ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से इस हमले की निंदा की अपील की है। इस मामले में सोमवार को यूएन की आपातकालीन बैठक भी प्रस्तावित है। इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि यह हमला ईरान की ओर से की गई 1 अक्टूबर की मिसाइल हमले के जवाब में किया गया था। नेतन्याहू ने दावा किया कि इस हमले से उनके सभी उद्देश्यों की पूर्ति हो गई है।
इस प्रस्ताव को स्वीकारने के लिए हमास ने कुछ शर्तें रखी हैं। उनका कहना है कि इजरायल को संपूर्ण समझौते का पालन करना होगा और इसके तहत गाज़ा से अपने सैनिकों को हटाना होगा। हमास ने पहले भी 7 अक्टूबर को हुए हमले के बाद इजरायल के खिलाफ जवाबी कार्रवाई में अपनी शर्तें रखी थीं, जिसमें सभी बंधकों की रिहाई की मांग शामिल थी।
गौरतलब है कि वर्तमान में इजरायल की जेलों में 9,500 से अधिक फिलिस्तीनी बंदी हैं, जिनमें से करीब 3,500 बिना किसी आरोप के ही कैद में हैं। इस तरह के प्रस्ताव से दोनों देशों के बीच शांति की संभावना फिर से जीवित हो सकती है, बशर्ते सभी पक्ष इस समझौते का ईमानदारी से पालन करें।