OTT प्लेटफार्मों पर सेंसरशिप की मांग खारिज: सुप्रीम कोर्ट ने PIL को बताया नीतिगत मामला


के कुमार आहूजा  2024-10-24 11:40:16



 

डिजिटल मीडिया और ओटीटी प्लेटफार्मों पर नियंत्रण की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सुनवाई की। अदालत ने याचिका को खारिज कर इसे 'नीतिगत मामला' बताते हुए कहा कि यह मुद्दा अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। यह फैसला एक महत्वपूर्ण मोड़ है, क्योंकि ओटीटी कंटेंट को लेकर समाज में लंबे समय से बहस चल रही है। आइए जानते हैं, आखिर क्या है इस विवाद का पूरा मामला।

सुप्रीम कोर्ट का रुख:

मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने सार्वजनिक हित याचिका (PIL) को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह अदालत के लिए नीतिगत मुद्दा है और सुप्रीम कोर्ट इस पर संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत निर्णय नहीं दे सकता। अनुच्छेद 32 के तहत नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए अदालत को शक्तियां दी गई हैं, परंतु न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस प्रकार की याचिकाओं पर अदालत का हस्तक्षेप संभव नहीं है।

न्यायाधीश जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा भी इस बेंच का हिस्सा थे। अदालत ने कहा, “समस्या यह है कि हमें अब ऐसे PIL मिल रहे हैं कि हमारे पास असली PIL पढ़ने का समय नहीं बचता।” इस टिपण्णी ने अदालत के इस रुख को स्पष्ट किया कि नीतिगत मामलों में कोर्ट का हस्तक्षेप उचित नहीं है।

PIL का उद्देश्य:

यह याचिका अधिवक्ता शशांक शेखर झा द्वारा दायर की गई थी। याचिका में तर्क दिया गया कि ओटीटी और डिजिटल मीडिया प्लेटफार्मों पर बिना किसी सेंसरशिप के सामग्री प्रसारित की जा रही है, जो आगे चलकर समाज में कई समस्याओं को जन्म दे सकती है। याचिका में कहा गया कि भारत सरकार और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (MIB) ने आईटी नियम 2021 लागू किए थे, जिनके तहत ओटीटी प्लेटफार्मों को स्व-नियमन की अनुमति दी गई थी, लेकिन यह प्रणाली अप्रभावी साबित हो रही है।

केंद्र द्वारा उठाए गए कदम:

नवंबर 2022 में केंद्र सरकार ने "ब्रॉडकास्टिंग सर्विसेस (रेगुलेशन) बिल, 2023" पर सुझाव मांगे थे। इस विधेयक का उद्देश्य केबल टीवी नेटवर्क (रेगुलेशन) अधिनियम 1995 और अन्य प्रसारण सेवाओं को नियंत्रित करने वाली नीतियों को बदलना था। इस ड्राफ्ट बिल में ओटीटी कंटेंट और डिजिटल न्यूज़ प्लेटफार्मों को भी शामिल किया गया था।

सरकार का मानना है कि इस प्रकार के प्लेटफार्मों के नियमन के लिए एक एकीकृत कानूनी ढांचे की आवश्यकता है। इस बिल का उद्देश्य विभिन्न प्रसारण सेवाओं के लिए नियामक प्रावधानों को एकीकृत करना और उभरती हुई तकनीकों के लिए समकालीन परिभाषाओं को शामिल करना है।

याचिका की प्रमुख मांगें:

PIL में यह भी अनुरोध किया गया था कि एक केंद्रीय बोर्ड का गठन किया जाए, जिसका नाम "सेंट्रल बोर्ड फॉर रेगुलेशन एंड मॉनिटरिंग ऑफ ऑनलाइन वीडियो कंटेंट" (CBRMOVC) हो। यह बोर्ड ओटीटी प्लेटफार्मों की सामग्री की निगरानी और संयमित करने का काम करेगा।

याचिका में यह भी प्रस्तावित किया गया था कि इस बोर्ड का नेतृत्व सचिव स्तर के एक आईएएस अधिकारी द्वारा किया जाए, और इसमें सिनेमा, मीडिया, रक्षा, कानूनी क्षेत्र और शिक्षा के विशेषज्ञ शामिल हों।

सुप्रीम कोर्ट का निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए इसे एक 'नीतिगत मामला' बताया और कहा कि यह न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। अदालत ने यह भी कहा कि इस प्रकार की याचिकाओं के चलते वास्तविक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना कठिन हो जाता है।

ओटीटी प्लेटफार्मों पर सामग्री नियंत्रण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला नीतिगत और कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। इस फैसले ने स्पष्ट किया है कि ऐसी नीतिगत मुद्दों पर न्यायालय का हस्तक्षेप संभव नहीं है, और यह सरकार के कार्यक्षेत्र में आता है।


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