रिश्वत के चेक पर नहीं बनता कानूनी दावा- पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का अहम फैसला


के कुमार आहूजा  2024-10-23 12:25:24



 

क्या रिश्वत से जुड़े लेन-देन को कानूनी रूप से वसूला जा सकता है? पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने इस प्रश्न का उत्तर हाल ही में स्पष्ट रूप से "नहीं" दिया है। कोर्ट ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि रिश्वत के चेक से उपजी देनदारी को कानूनी रूप से लागू नहीं किया जा सकता। आइए जानते हैं इस मामले की पूरी कहानी।

विस्तृत रिपोर्ट:

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में सुरिंदर सिंह बनाम राम देव के मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया। जस्टिस मंजरी नेहरू कौल की बेंच ने कहा कि अगर किसी चेक का इस्तेमाल एक अवैध और अनैतिक लेन-देन के लिए किया गया है, तो इसे नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स (NI) एक्ट की धारा 138 के तहत वैध देनदारी के रूप में नहीं माना जा सकता​।

मामले का विवरण:

यह मामला राम देव के खिलाफ चेक बाउंस के मामले से जुड़ा था। शिकायतकर्ता सुरिंदर सिंह का आरोप था कि राम देव और उनके साले अमनदीप ने धोखाधड़ी के तहत उनसे 12 लाख रुपये की रिश्वत ली थी। यह रकम पंजाब पुलिस में कुछ लोगों को नौकरी दिलवाने के झूठे वादे पर ली गई थी। लेकिन, जब कोई नियुक्ति नहीं हुई, तो सुरिंदर सिंह ने अमनदीप और अन्य के खिलाफ 2016 में धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश का मामला दर्ज कराया​।

इसके बाद राम देव ने मामला सुलझाने के लिए सुरिंदर सिंह को 1 लाख रुपये का चेक दिया, जो बाद में बैंक द्वारा अस्वीकार कर दिया गया क्योंकि राम देव का खाता बंद हो चुका था। चेक बाउंस होने के बाद, सुरिंदर सिंह ने NI एक्ट के तहत शिकायत दर्ज कराई। हालाँकि, निचली अदालत ने इसे खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि चेक एक रिश्वत की राशि का प्रतिनिधित्व करता था, जो अवैध थी और इस पर कोई कानूनी दावा नहीं किया जा सकता​।

हाईकोर्ट का फैसला:

अपील में सुरिंदर सिंह के वकील ने तर्क दिया कि राम देव ने रिश्वत स्वीकार की थी, और जब उन्होंने इस मामले में समझौता किया, तो इसे कानूनी देनदारी माना जाना चाहिए। लेकिन हाईकोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि किसी भी अवैध और अनैतिक अनुबंध से उत्पन्न देनदारी को NI एक्ट के तहत लागू नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने कहा, "रिश्वत की राशि का भुगतान एक अवैध और अनैतिक लेन-देन है और इसे कानूनी रूप से लागू होने वाली देनदारी के रूप में नहीं माना जा सकता"। कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि इस मामले में कोई कानूनी देनदारी मौजूद नहीं थी और रिश्वत के लिए जारी किया गया चेक अपराध का आधार नहीं हो सकता​।

न्यायाधीश का फैसला:

जस्टिस मंजरी नेहरू कौल ने कहा, "धारा 138 के तहत अपराध तभी बनता है जब चेक किसी वैध कानूनी दायित्व या देनदारी को पूरा करने के लिए जारी किया गया हो। रिश्वत के चेक को वैध देनदारी नहीं माना जा सकता।" इस प्रकार, कोर्ट ने राम देव की बरी करने के फैसले को बरकरार रखा और अपील को खारिज कर दिया।

यह निर्णय न केवल रिश्वत के मामलों में कानूनी सीमा को स्पष्ट करता है, बल्कि यह भी बताता है कि अवैध और अनैतिक अनुबंधों से उपजी देनदारियों को कानून मान्यता नहीं देता। कोर्ट ने रिश्वत को अवैध और अनैतिक बताते हुए इसे वैध देनदारी के रूप में खारिज कर दिया।


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