भूले-बिसरे समुदाय सेन्टिनलीज़ के अस्तित्व पर मंडराता खतरा, अतीत के परदे हटाती सुजीत सराफ की नई पुस्तक आइस्लैंड
के कुमार आहूजा 2024-10-23 09:55:29
एक ऐसा समुदाय जो दुनिया से अलग-थलग रहकर अपने अस्तित्व को बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। लेकिन क्या बाहरी हस्तक्षेप इस समुदाय को पूरी तरह से मिटा देगा? यह सवाल तब उठ खड़ा हुआ जब 2018 में एक अमेरिकी मिशनरी, जॉन एलन चाऊ, इस अज्ञात भूमि पर धर्म प्रचार करने की कोशिश में अपनी जान गंवा बैठा।
नवंबर 2018 में दुनिया की नजरें अचानक उत्तरी सेन्टिनल द्वीप पर टिक गईं, जब जॉन एलन चाऊ नामक एक अमेरिकी मिशनरी की हत्या कर दी गई। चाऊ का उद्देश्य सेन्टिनलीज़ जनजाति को ईसाई धर्म से परिचित कराना था, लेकिन उनकी इस कोशिश का खतरनाक अंजाम हुआ। सेन्टिनलीज़, जो हजारों वर्षों से बाहरी दुनिया से कटे हुए हैं, ने उन्हें अपने द्वीप पर आने पर उनका स्वागत तीरों से किया। इस घटना ने दुनियाभर में हलचल मचा दी और इस समुदाय के अस्तित्व पर सवाल उठने लगे।
चाऊ, जो Joshua Project के तहत सेन्टिनल द्वीप पर गए थे, ने गैर-कानूनी तरीके से इस द्वीप पर कदम रखा था। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य उन जातीय समूहों की पहचान करना है, जिनके ईसाई अनुयायी बहुत कम हैं। लेकिन सेन्टिनलीज़ लोगों की सुरक्षा के लिए भारतीय सरकार ने उन्हें बाहरी संपर्क से बचाए रखा है। चाऊ के इस अवैध प्रयास ने सेन्टिनलीज़ के प्रति और बाहरी हस्तक्षेप को बढ़ा दिया है।
सेन्टिनलीज़ की अलग-थलग दुनिया:
सेन्टिनलीज़ लोग बेहद कम संख्या में हैं और भारतीय सरकार उनकी पहचान और परंपराओं को संरक्षित करने के लिए उन्हें बाहरी दुनिया से अलग रखती है। उनके अलग-थलग रहने का एक बड़ा कारण उनकी कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता है। वे सामान्य सर्दी जैसे सामान्य संक्रमण से भी अछूते नहीं हैं, जो उनके लिए घातक हो सकता है। सेन्टिनलीज़ की अनूठी जीवनशैली और उनके आक्रामक व्यवहार ने उन्हें दुनिया से दूर रखा है।
वरिष्ठ मानवविज्ञानी त्रिलोकनाथ पंडित, जिन्होंने 1967 में पहली बार इस द्वीप पर कदम रखा, का मानना है कि इन लोगों से संपर्क करना उनके अस्तित्व के लिए खतरा हो सकता है। 1991 में पंडित की टीम ने सेन्टिनलीज़ से "दोस्ताना संपर्क" स्थापित करने का प्रयास किया था, जब पंडित ने समुद्र के किनारे से उन्हें नारियल सौंपा था, लेकिन वह अब भी द्वीप पर सीधे संपर्क बनाने में असफल रहे थे। इस प्रयास को कई लोग इन जनजातियों को "भ्रष्ट" करने का प्रयास मानते हैं।
लेखक सुजीत सराफ का दृष्टिकोण:
लेखक सुजीत सराफ की नई पुस्तक 'Island' इसी घटना से प्रेरित है। उन्होंने इस घटना को अपनी कथा का आधार बनाया और जॉन एलन चाऊ के जीवन पर एक काल्पनिक मिशनरी चरित्र तैयार किया। सराफ का मानना है कि इन जनजातियों को छोड़ देना ही उनके अस्तित्व की रक्षा के लिए सबसे बेहतर विकल्प है। वह कहते हैं, "इनसे संपर्क करना ही इन्हें मिटाने की शुरुआत है।"
सराफ के अनुसार, सेन्टिनलीज़ जनजाति "भारतीय" केवल ब्रिटिश साम्राज्य की वजह से हैं, लेकिन वास्तव में वे खुद को न भारतीय मानते हैं और न ही भारत सरकार की कोशिशों में रुचि रखते हैं। ये लोग अपनी जमीन पर बाहरी हस्तक्षेप को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करते।
वर्तमान स्थिति:
सेन्टिनलीज़ जनजाति की सुरक्षा अब भारतीय सरकार और अंतर्राष्ट्रीय शोधकर्ताओं के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय बन गई है। किसी भी प्रकार का संपर्क न केवल उनके स्वास्थ्य के लिए खतरा है, बल्कि उनके अस्तित्व को भी संकट में डाल सकता है। जॉन एलन चाऊ की घटना ने इस मुद्दे को और अधिक जटिल बना दिया है और यह सवाल खड़ा किया है कि क्या इन जनजातियों को दुनिया से अलग-थलग रखना ही उनके अस्तित्व के लिए सही होगा?