दिल्ली हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: कामकाजी पत्नियों को साझा घर में रहने का अधिकार नहीं


के कुमार आहूजा  2024-10-23 07:37:46



दिल्ली हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: कामकाजी पत्नियों को साझा घर में रहने का अधिकार नहीं

क्या एक कामकाजी पत्नी को अपने ससुराल में रहने का पूरा अधिकार है, चाहे घर किसी और के नाम क्यों न हो? दिल्ली हाईकोर्ट ने इस सवाल का जवाब हाल ही में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में दिया। अदालत ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत पत्नी का साझा घर में रहने का अधिकार पूर्णत: नहीं है, खासकर अगर वह खुद सक्षम और कामकाजी है। आइए, इस केस की बारीकियों और कोर्ट के फैसले पर एक नज़र डालते हैं।

मामले की पृष्ठभूमि:

यह मामला एक ऐसी पत्नी का था जिसने अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ घरेलू हिंसा का मुकदमा दायर किया था। उसकी शादी के एक साल बाद ही पति और ससुराल वालों के साथ मतभेद उत्पन्न हो गए, जिसके बाद वे उसे छोड़कर एक अन्य घर में रहने चले गए। पत्नी ने अपने ससुराल के घर में बने रहने की मांग करते हुए सुरक्षा के तहत साझा घर में रहने की अपील की थी। वहीं, पति और ससुराल वालों ने पत्नी को उस घर से बेदखल करने के लिए एक सिविल केस दाखिल किया था​।

पहले कोर्ट के फैसले:

शुरुआत में मजिस्ट्रेट कोर्ट ने पत्नी की अपील स्वीकार की और पति तथा ससुराल वालों को उसे घर से बेदखल करने से रोका। साथ ही, अदालत ने पति को हर महीने ₹5,000 का अंतरिम भत्ता भी देने का आदेश दिया था।

लेकिन बाद में जब यह पता चला कि पत्नी Accenture Solutions Private Limited में काम कर रही है और उसने MBA की डिग्री हासिल की है, तो अदालत ने पाया कि वह आर्थिक रूप से सक्षम है और उसे साझा घर में रहने की ज़रूरत नहीं है। इस आधार पर, मजिस्ट्रेट ने अपने पहले के आदेश को वापस ले लिया।

हाईकोर्ट का फैसला:

पत्नी ने इस फैसले को सत्र न्यायालय में चुनौती दी, लेकिन सत्र न्यायालय ने भी उसकी अपील को खारिज कर दिया। अंततः, मामला दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचा, जहां जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने पत्नी की अपील पर सुनवाई की।

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत किसी पत्नी का साझा घर में रहने का अधिकार पूर्णत: नहीं है। विशेष रूप से अगर वह कामकाजी और आत्मनिर्भर हो, तो उसे कानून के तहत उस घर से निकाला जा सकता है। कोर्ट ने कहा, "यह मामला ऐसा नहीं है कि महिला असहाय हो या सड़क पर छोड़ दी गई हो। वह एक शिक्षित और सक्षम महिला है, इसलिए कोई पूर्ण अधिकार का दावा नहीं किया जा सकता।"​

साझा घर के अधिकार और नियम:

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि धारा 19 के तहत पत्नी को साझा घर में रहने का अधिकार तभी तक है, जब तक वह कानूनन बेदखल नहीं की जाती। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसी स्थिति में उसे वैकल्पिक आवास या उसके लिए किराए की व्यवस्था दी जानी चाहिए।

कोर्ट ने यह भी पाया कि इस मामले में मजिस्ट्रेट ने सही तरीके से पति को पत्नी के लिए उसी कॉलोनी में वैकल्पिक आवास की व्यवस्था करने का आदेश दिया था, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि पत्नी को बेघर न होना पड़े।

इस फैसले के बाद, यह स्पष्ट हो गया कि अगर पत्नी सक्षम है, तो उसे साझा घर में रहने का पूर्ण अधिकार नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि ससुराल वालों के घर को उनके आखिरी वर्षों में उनसे छीनना न्यायसंगत नहीं होगा। यह फैसला उन परिस्थितियों को स्पष्ट करता है जहां एक कामकाजी पत्नी को वैकल्पिक आवास मुहैया कराना ही सही रास्ता है।


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