शिक्षा के अधिकार पर विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने मदरसा छात्रों के स्थानांतरण पर रोक लगाई
के कुमार आहूजा 2024-10-22 10:34:33
भारत में शिक्षा और धार्मिक अधिकारों का विवाद एक नई मोड़ पर पहुँच गया है। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) के उन निर्देशों पर रोक लगा दी है, जिनमें अनाधिकृत मदरसों के छात्रों को सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित करने का आदेश दिया गया था। यह मामला न केवल बच्चों के अधिकारों से जुड़ा है, बल्कि धार्मिक अल्पसंख्यकों के शैक्षिक अधिकारों पर भी गंभीर प्रभाव डालता है।
विस्तृत रिपोर्ट:
21 अक्टूबर 2024 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने NCPCR द्वारा जारी उन संचारों पर रोक लगा दी, जिनमें उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा की सरकारों को निर्देश दिया गया था कि वे अनधिकृत मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित करें। यह मामला मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला तथा मनोज मिश्रा की पीठ के समक्ष आया, जिसमें वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने मुस्लिम संगठन जमियत उलेमा-ए-हिंद का प्रतिनिधित्व किया।
याचिका में यह दावा किया गया कि NCPCR और कुछ राज्यों के द्वारा किए गए ये निर्देश धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों का उल्लंघन हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत शिक्षा देने का अधिकार प्रदान करते हैं। याचिका में कहा गया कि मदरसों को बिना उचित प्रक्रिया के बंद करने का प्रयास किया जा रहा है, जिससे आर्थिक रूप से कमजोर समुदाय के बच्चों की शिक्षा प्रभावित होगी।
NCPCR ने 7 और 25 जून 2024 को पत्र जारी किए थे, जिनमें निर्देशित किया गया था कि जो मदरसे शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम के नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं, उनकी मान्यता वापस ले ली जाए। इसके बाद, उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा की सरकारों ने इसी आधार पर आदेश जारी किए थे, जिससे विभिन्न जिलों में अतिरिक्त नोटिस जारी किए गए थे, जिनमें मदरसों को बंद करने का दबाव डाला गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एक अंतरिम आदेश देते हुए कहा कि NCPCR के 7 जून और 25 जून के पत्रों को लागू नहीं किया जाना चाहिए, साथ ही उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा के प्रशासन के द्वारा जारी अन्य आदेश भी प्रभावी नहीं रहेंगे। अदालत ने मुस्लिम संगठन को अन्य राज्यों को भी याचिका में शामिल करने की अनुमति दी, जिससे ये मामला अधिक व्यापक रूप से सुना जा सके।
इस निर्णय का व्यापक स्वागत किया गया है, क्योंकि यह न केवल मदरसों में पढ़ाई करने वाले बच्चों के लिए एक राहत है, बल्कि धार्मिक संस्थानों के अधिकारों की रक्षा भी करता है। इसे शिक्षा के अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए एक महत्वपूर्ण जीत माना जा रहा है।