मदरसा बोर्ड्स पर NCPCR की सिफारिश: बच्चों की शिक्षा में सुधार की पहल या धार्मिक संस्थानों पर हमला
के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा 2024-10-19 21:49:25
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने एक बड़े फैसले के तहत सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को मदरसा बोर्ड्स की फंडिंग बंद करने और उन्हें धीरे-धीरे बंद करने की सिफारिश की है। इस सिफारिश के पीछे का मकसद, बच्चों को मुख्यधारा की शिक्षा से जोड़ना और सभी बच्चों को एक सुरक्षित, स्वस्थ और उत्पादक माहौल में शिक्षा प्राप्त कराने की दिशा में काम करना है। यह कदम विवाद का केंद्र बना हुआ है, क्योंकि कुछ इसे बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक मान रहे हैं, जबकि कुछ इसे धार्मिक संस्थानों पर हमला बता रहे हैं।
प्रारंभिक जानकारी और रिपोर्ट की पृष्ठभूमि
NCPCR के अध्यक्ष प्रियांक कन्नूंगो ने राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को एक पत्र लिखा है, जिसमें यह कहा गया है कि मदरसा बोर्ड्स का उद्देश्य पूरा नहीं हो रहा है और इसलिए उन्हें बंद किया जाना चाहिए। यह सिफारिश 9 वर्षों के अध्ययन और शोध के बाद आई है, जिसमें यह पाया गया कि मुस्लिम समुदाय के बच्चों को मदरसों में शिक्षा देने से उनके अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है और उन्हें मुख्यधारा की शिक्षा से दूर रखा जा रहा है।
कन्नूंगो के अनुसार, यह रिपोर्ट देश के सभी बच्चों को सुरक्षित और उत्पादक शिक्षा देने के उद्देश्य से तैयार की गई है। इसका उद्देश्य बच्चों को एक ऐसे वातावरण में बड़ा करना है जो उन्हें राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में सार्थक योगदान देने में सक्षम बनाए।
मदरसा बोर्ड्स पर NCPCR की आलोचना
कन्नूंगो ने IANS से बातचीत में कहा कि मदरसा बोर्ड्स को बंद करने की सिफारिश इसलिए की गई है क्योंकि ये बोर्ड्स उस उद्देश्य को पूरा नहीं कर पा रहे हैं, जिसके लिए इन्हें स्थापित किया गया था। उनके अनुसार, वर्तमान में 1.25 करोड़ से अधिक बच्चे मदरसों में हैं जिनका मदरसा बोर्ड्स से कोई सीधा संबंध नहीं है। यह सिर्फ सरकारी फंडिंग प्राप्त करने का माध्यम बन गए हैं। इस फंडिंग के बावजूद, केवल 19 से 20 लाख बच्चों को इन बोर्ड्स से शिक्षा मिल रही है, जिसमें कुछ गैर-मुस्लिम हिंदू बच्चे भी शामिल हैं।
अधिकारियों का तर्क और बचाव
NCPCR की इस सिफारिश को कुछ आलोचकों ने धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला बताया है। उनका कहना है कि मदरसों में बच्चों को न केवल धार्मिक शिक्षा दी जाती है, बल्कि यह उनके सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को मजबूत करता है। दूसरी ओर, NCPCR का दावा है कि बच्चों के अधिकारों और शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 के तहत सभी बच्चों को मुख्यधारा की शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए, और मदरसों में बच्चों को इस अधिकार से वंचित किया जा रहा है।
कन्नूंगो ने यह भी कहा कि यह सिफारिश खासकर उन गैर-मुस्लिम बच्चों के लिए है, जिन्हें मदरसों में भेजा जा रहा है। उन्होंने सलाह दी है कि गैर-मुस्लिम बच्चों को मदरसों से निकालकर मुख्यधारा के स्कूलों में दाखिला दिलाया जाए, ताकि उन्हें उचित शिक्षा मिल सके और वे देश के विकास में योगदान कर सकें।
विवादास्पद मुद्दे और आगे का रास्ता
NCPCR की यह सिफारिश न केवल मदरसा बोर्ड्स पर सवाल खड़े करती है, बल्कि मुस्लिम समुदाय में भी चिंता का विषय बनी हुई है। आलोचकों का कहना है कि यह सिफारिश धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक पहचान पर सीधा हमला है, जबकि समर्थकों का मानना है कि इससे बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए एक मजबूत आधार तैयार होगा। इस रिपोर्ट को लागू करने की स्थिति में यह देखना होगा कि सरकार किस प्रकार से इस विवादास्पद मुद्दे का समाधान करती है।
बहरहाल, मदरसा बोर्ड्स को बंद करने की सिफारिश ने एक बड़ी बहस को जन्म दिया है। जहां एक ओर यह कदम बच्चों की शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है, वहीं दूसरी ओर इससे धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा पर सवाल खड़े हो रहे हैं। आने वाले दिनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारें इस सिफारिश पर कैसे प्रतिक्रिया देती हैं।