बोतलबंद पानी से सेहत और पर्यावरण पर खतरा: वैज्ञानिकों ने किया सुरक्षित पाइपलाइन पानी में निवेश का आह्वान
के कुमार आहूजा 2024-10-19 17:10:50
♦ पर्यावरण और स्वास्थ्य को बचाने के लिए बोतलबंद पानी से दूरी क्यों जरूरी है?
आज की आधुनिक जीवनशैली में बोतलबंद पानी का इस्तेमाल आम हो गया है। लोग इसे शुद्ध और सुरक्षित मानते हैं, लेकिन हाल ही में प्रकाशित एक वैज्ञानिक रिपोर्ट ने इसके स्वास्थ्य और पर्यावरण पर गंभीर प्रभावों को उजागर किया है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि बोतलबंद पानी के उपयोग से न केवल बीमारियों का खतरा बढ़ता है, बल्कि प्लास्टिक प्रदूषण भी गहरा होता जा रहा है। सवाल यह है कि क्या बोतलबंद पानी सचमुच सुरक्षित है, या यह हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए नुकसानदायक है?
वैज्ञानिकों की चेतावनी: बोतलबंद पानी के स्वास्थ्य पर प्रभाव
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने चेताया है कि बोतलबंद पानी में पाए जाने वाले प्रदूषक, जैसे माइक्रोप्लास्टिक्स, बीपीए (Bisphenol A) और अन्य रसायन, शरीर में गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं। ये प्रदूषक अंतःस्रावी तंत्र (endocrine system) को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे प्रजनन हार्मोन, थायराइड और ग्लूकोकॉर्टिकोइड रिसेप्टर्स पर बुरा असर पड़ता है। इन प्रदूषकों के संपर्क में आने से भविष्य में उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह, और मोटापे जैसी बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है।
विशेषज्ञों ने बताया कि बोतलबंद पानी के भंडारण की स्थिति भी इन रसायनों के पानी में घुलने की संभावना बढ़ाती है, खासकर जब इसे उच्च तापमान या सूरज की रोशनी में रखा जाता है। यह स्थिति प्लास्टिक के बने बोतलों से हानिकारक रसायनों के रिसाव को बढ़ावा देती है, जो लंबे समय में स्वास्थ्य के लिए घातक हो सकता है।
पर्यावरण पर बोतलबंद पानी का प्रभाव
स्वास्थ्य प्रभावों के अलावा, बोतलबंद पानी से पर्यावरण को भी गहरा नुकसान हो रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार, प्लास्टिक की बोतलें महासागरों में दूसरी सबसे बड़ी प्रदूषक हैं, जो कुल प्लास्टिक कचरे का लगभग 12 प्रतिशत हिस्सा बनाती हैं। प्लास्टिक की बोतलों का निस्तारण सही तरीके से नहीं होने पर वे समुद्र और जलस्रोतों को प्रदूषित करती हैं, जिससे न केवल जलीय जीवन, बल्कि मानव स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है।
भारत में बोतलबंद पानी का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। Statista के अनुसार, इस वर्ष भारत में बोतलबंद पानी की खपत 24.91 बिलियन लीटर तक पहुंचने का अनुमान है। यह न केवल पर्यावरणीय संकट को बढ़ावा दे रहा है, बल्कि प्लास्टिक कचरे की समस्या को भी और जटिल बना रहा है।
पाइपलाइन पानी में निवेश की आवश्यकता
वैज्ञानिकों ने बोतलबंद पानी के विकल्प के रूप में सुरक्षित पाइपलाइन पानी में निवेश करने का सुझाव दिया है। उन्होंने कहा कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों को अपनी जल आपूर्ति प्रणाली को मजबूत करने की आवश्यकता है, ताकि स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल हर घर तक पहुंच सके। पाइपलाइन के माध्यम से पानी की उपलब्धता न केवल स्वास्थ्य को सुरक्षित करेगी, बल्कि बोतलबंद पानी पर निर्भरता भी कम करेगी, जिससे प्लास्टिक प्रदूषण में कमी आएगी।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि सरकारों को एक ठोस कदम उठाकर बोतलबंद पानी के उत्पादन और उपयोग पर कड़े नियम लागू करने चाहिए। साथ ही, जल प्रदाय प्रणाली में सुधार कर उसे स्वच्छ और सुलभ बनाना चाहिए, ताकि लोग बोतलबंद पानी की बजाय सुरक्षित नल के पानी का उपयोग कर सकें।
शोध का निचोड़: सामाजिक और पर्यावरणीय न्याय
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बोतलबंद पानी की समस्या केवल पर्यावरणीय ही नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय से भी जुड़ी हुई है। अक्सर विकसित देश अपने प्लास्टिक कचरे को विकासशील देशों में भेजते हैं, जिससे इन देशों पर अतिरिक्त पर्यावरणीय बोझ पड़ता है। इससे न केवल पर्यावरणीय संकट गहराता है, बल्कि सामाजिक असमानताएं भी बढ़ती हैं।
शिक्षा और जागरूकता अभियान की जरूरत
इन वैज्ञानिकों ने यह भी सुझाव दिया कि बोतलबंद पानी के खतरे को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए शैक्षिक अभियान चलाए जाने चाहिए। लोगों को यह बताया जाना चाहिए कि बोतलबंद पानी केवल एक मिथक है और इसके विकल्प, जैसे कि घरेलू जल फिल्टर, कहीं अधिक सुरक्षित और सस्ते हो सकते हैं।
यह स्पष्ट है कि बोतलबंद पानी की बढ़ती खपत स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए खतरनाक है। अगर हम एक स्थायी भविष्य की ओर बढ़ना चाहते हैं, तो सुरक्षित पाइपलाइन पानी की व्यवस्था में निवेश करना और प्लास्टिक कचरे को नियंत्रित करना बेहद जरूरी है। बोतलबंद पानी का त्याग करके हम न केवल अपने स्वास्थ्य की सुरक्षा कर सकते हैं, बल्कि हमारी धरती को प्लास्टिक प्रदूषण से बचाने में भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।