(अब कोई नहीं कहेगा कानून अंधा है )सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी की नई प्रतिमा का अनावरण: अब नहीं आँखों पर पट्टी
के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा 2024-10-19 06:33:10
सुप्रीम कोर्ट परिसर में हाल ही में स्थापित की गई 'न्याय की देवी' की नई प्रतिमा ने न्यायिक और सांस्कृतिक हलकों में बड़ी चर्चा को जन्म दिया है। छह फुट ऊंची इस प्रतिमा की खासियत यह है कि इसमें न्याय की देवी के हाथ में तलवार की जगह संविधान की पुस्तक दिखाई गई है, और उनकी आंखों पर पट्टी नहीं है, जो परंपरागत न्याय की देवी के रूप से अलग है।
परंपरागत छवि से हटकर भारतीयता का स्पर्श
इस नई प्रतिमा में देवी की पारंपरिक सफेद पोशाक और मुकुट के साथ भारतीयता का स्पर्श जोड़ा गया है। यह बदलाव प्रतीकात्मक रूप से न्याय की भारतीय अवधारणा को दर्शाने का प्रयास है। अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन के अनुसार, आंखों से पट्टी हटाने का विचार बेहद दिलचस्प है और यह न्यायाधीशों को अधिक सजग और सतर्क रहने की प्रेरणा देता है। शंकरनारायण ने कहा, 'पहले ऐसा कहा जाता रहा है कि कानून अंधा है क्योंकि मूर्ति पर पट्टी बंधी होती थी, जबकि पट्टी बांधे जाने का मतलब यह होता है कि बिना किसी का स्टेटस देखे न्याय निष्पक्ष तरीके से काम करता है।' परंतु अब इसे इस रूप में देखा जा रहा है कि न्याय को हर परिस्थिति का ध्यान रखना चाहिए, लेकिन किसी भी दबाव में नहीं आना चाहिए।
संविधान की पुस्तक और तलवार का अभाव: बदलाव का प्रतीक
न्याय की देवी की इस नई प्रतिमा के हाथ में संविधान की पुस्तक को दिखाना इस बात का संकेत है कि न्याय केवल कानून और संविधान पर आधारित होता है, न कि किसी दबाव या दंड पर। सीनियर एडवोकेट विकास पाहवा ने इस बदलाव को महत्वपूर्ण मानते हुए कहा कि तलवार की अनुपस्थिति यह दर्शाती है कि न्याय में कोई बल या हिंसा नहीं, बल्कि कानून का पालन सर्वोपरि है।
न्याय की देवी के रूप में बदलाव से न्यायिक दृष्टिकोण पर कोई असर नहीं
हालांकि, वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने यह भी स्पष्ट किया कि इस बदलाव से न्याय देने के तरीके में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं आया है। उन्होंने कहा, "आंखों पर पट्टी बंधी होने का मतलब यह नहीं था कि न्याय अंधा होता है। इसका अर्थ यह था कि न्याय निष्पक्ष और पूर्वाग्रहों से मुक्त होना चाहिए। अब जबकि देवी की आंखों पर पट्टी नहीं है, फिर भी न्याय की निष्पक्षता और बिना किसी भेदभाव के काम करने की प्राथमिकता बरकरार रहेगी।"
न्याय की देवी का नया स्वरूप: न्यायाधीशों के लिए मार्गदर्शन
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने भी इस प्रतिमा का अर्थ समझाते हुए कहा कि कानून अंधा नहीं होता। यह प्रतिमा न्यायाधीशों को यह याद दिलाने का कार्य करती है कि उन्हें अपने फैसलों में सजगता और संतुलन बनाए रखना चाहिए। न्याय का उद्देश्य निष्पक्षता और समानता के आधार पर काम करना है, चाहे परिस्थितियां कितनी भी जटिल क्यों न हों।
संविधान और न्याय की शक्ति
इस प्रतिमा में संविधान की पुस्तक का होना यह दर्शाता है कि भारतीय न्याय प्रणाली की नींव हमारे संविधान पर है। यह किताब न्याय की सर्वोच्चता और इसके मूल सिद्धांतों का प्रतीक है। यह बदलाव भारतीय न्याय व्यवस्था की आधुनिकता और इसके मूल्य को दर्शाने का एक कदम है।