गुजरात में धार्मिक स्थल ध्वस्तीकरण: राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दी सफाई
के कुमार आहूजा 2024-10-17 15:31:40
गुजरात के गिर सोमनाथ जिले में एक प्रमुख धार्मिक स्थल सहित अन्य संरचनाओं के ध्वस्तीकरण ने विवाद खड़ा कर दिया है। सरकार के इस कदम पर सुप्रीम कोर्ट में सवाल उठाए गए, जहां गुजरात सरकार ने जवाब में अपना पक्ष रखा। राज्य सरकार ने इसे सार्वजनिक और सरकारी भूमि से अतिक्रमण हटाने की निरंतर प्रक्रिया का हिस्सा बताया, लेकिन याचिकाकर्ता ने इसे धार्मिक रंग देने का आरोप लगाया है। आखिर, इस पूरे मामले का क्या सच है?
मामले की पृष्ठभूमि:
गुजरात सरकार ने गिर सोमनाथ जिले के प्रभास पाटन गांव में मंगरोली शाह बाबा दरगाह, ईदगाह और कई अन्य संरचनाओं को ध्वस्त करने की कार्रवाई की। यह कार्रवाई 28 सितंबर, 2024 को पांचवे चरण के रूप में हुई, जहां सरकार ने सरकारी भूमि से अतिक्रमण हटाने का दावा किया। सरकार का कहना है कि ये संरचनाएं अरब सागर के किनारे स्थित सरकारी भूमि पर अवैध रूप से बनाई गई थीं। सरकार ने यह भी कहा कि इससे पहले के चार चरणों में भी अतिक्रमण हटाए गए थे, जिनमें हिन्दू समुदाय के 40 घर भी शामिल थे।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप:
यह मामला तब और गंभीर हो गया जब सुम्मस्त पटनी मुस्लिम जमात ने सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल की। याचिका में आरोप लगाया गया कि सरकार ने 17 सितंबर, 2024 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन किया है। उस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा था कि देशभर में किसी भी संपत्ति का ध्वस्तीकरण बिना अनुमति के नहीं किया जा सकता, चाहे वह किसी अपराधी की संपत्ति हो या अन्य।
सरकार का पक्ष:
गुजरात सरकार ने अपने जवाब में कहा कि जो अतिक्रमण हटाए गए हैं, वे सरकारी जमीन और सार्वजनिक स्थानों पर थे, और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, ऐसी जगहों पर ध्वस्तीकरण पर कोई रोक नहीं है। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि यह कार्रवाई किसी समुदाय विशेष के खिलाफ नहीं थी, बल्कि कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए अतिक्रमण हटाया गया। इसके पहले भी, 6 अगस्त, 2024 को हुए चौथे चरण में हिन्दू समुदाय के 40 अवैध घरों को हटाया गया था, जिससे 20,000 वर्ग मीटर सरकारी जमीन खाली कराई गई थी।
धार्मिक मुद्दे का खंडन:
गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा इस कार्यवाही को धार्मिक रंग देना दुर्भाग्यपूर्ण है और सच्चाई से कोसों दूर है। सरकार ने दावा किया कि यह कार्यवाही केवल सरकारी जमीन को अतिक्रमण से मुक्त करने के उद्देश्य से की गई थी और इसमें किसी भी समुदाय के प्रति भेदभाव का कोई स्थान नहीं था।
अदालत की आगामी सुनवाई:
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में याचिकाकर्ता को जवाब दाखिल करने के लिए समय दिया है। वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े, जो याचिकाकर्ता की ओर से पेश हो रहे थे, ने अदालत से समय मांगा और कहा कि राज्य सरकार का एकमात्र बचाव यह है कि ध्वस्त किए गए ढांचे अरब सागर के पास थे। तीन जजों की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति बी.आर. गवई भी शामिल हैं, ने तीन सप्ताह बाद मामले की अगली सुनवाई की तारीख तय की है। अदालत ने यह भी कहा कि यदि ध्वस्तीकरण अवैध पाया गया, तो संपत्तियों को पुनर्स्थापित करना होगा। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि वह भविष्य के लिए इस प्रकार के ध्वस्तीकरण से जुड़े दिशानिर्देश जारी करेगा, जो सभी नागरिकों पर लागू होंगे, न कि किसी विशेष समुदाय पर।
बहरहाल, यह मामला न केवल धार्मिक और कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसमें राज्य सरकार और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुपालन का मुद्दा भी उठाया गया है। सरकार जहां इसे अतिक्रमण विरोधी अभियान का हिस्सा बता रही है, वहीं याचिकाकर्ता इसे धार्मिक मुद्दे के रूप में देख रहे हैं। अदालत की आगामी सुनवाई से यह स्पष्ट होगा कि इस विवाद का अंतिम निष्कर्ष क्या होगा।