दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकार को लगाई फटकार: तीन अस्पतालों का निर्माण जल्द पूरा करने का आदेश
के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा 2024-10-17 13:50:04
दिल्ली में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति को सुधारने के प्रयास में दिल्ली हाईकोर्ट ने सख्त कदम उठाए हैं। तीन बड़े सरकारी अस्पतालों का निर्माण, जो 96 प्रतिशत तक पूरा हो चुका है, समय पर न होने से लाखों की धनराशि व्यर्थ होने का खतरा पैदा हो गया है। कोर्ट ने दिल्ली सरकार को इन परियोजनाओं को मौजूदा वित्तीय वर्ष में ही पूरा करने का आदेश दिया है।
हाईकोर्ट का सख्त आदेश:
15 अक्टूबर को दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि गुरु गोबिंद सिंह अस्पताल, संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल और आचार्य श्री भिक्षु अस्पताल का निर्माण मौजूदा वित्तीय वर्ष के भीतर पूरा किया जाए। इसके साथ ही, अस्पतालों के लिए आवश्यक स्टाफ की नियुक्ति हेतु पद सृजन की प्रक्रिया 15 दिनों के भीतर पूरी करने के भी आदेश दिए गए हैं। चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत पी एस अरोड़ा की पीठ ने वित्त विभाग को सभी आवश्यक वित्तीय स्वीकृतियां जल्द से जल्द जारी करने का निर्देश दिया है।
प्रगति में देरी और धनराशि का नुकसान:
कोर्ट ने साफ कहा कि अगर ये परियोजनाएं समय पर पूरी नहीं होती हैं तो पहले से खर्च किए गए सरकारी धन का व्यर्थ जाना संभव है। सरकारी अस्पतालों के निर्माण कार्य में हो रही देरी को लेकर कोर्ट ने गहरी चिंता जताई। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि अन्य अधूरी अस्पताल परियोजनाओं, जैसे कि 'ब्राउन फील्ड' और 'ग्रीन फील्ड' परियोजनाओं को भी समय पर पूरा किया जाए, जो वर्तमान में 74 से 87 प्रतिशत तक पूरी हो चुकी हैं।
अस्पतालों की अधूरी परियोजनाएं:
दिल्ली सरकार के एक हलफनामे के अनुसार, राजधानी में 11 ग्रीन फील्ड और 13 ब्राउन फील्ड अस्पतालों का निर्माण हो रहा है। इन अस्पतालों को विभिन्न मॉडलों के तहत चलाया जाएगा, जिनमें से कुछ सरकारी होंगे और कुछ निजी-सरकारी साझेदारी (PPP) के माध्यम से संचालित किए जाएंगे। हालांकि, दिल्ली सरकार ने यह भी बताया कि मौजूदा बजट इन परियोजनाओं को पूरा करने के लिए अपर्याप्त है, लेकिन स्वास्थ्य मंत्री के वकील ने फंड जुटाने और आवंटन के लिए आवश्यक कदम उठाने का आश्वासन दिया है।
समाज के लिए स्वास्थ्य सेवाएं जरूरी:
यह पूरा मामला 2017 में शुरू हुए एक स्वप्रेरित (suo motu) मुकदमे से जुड़ा है, जो दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में क्रिटिकल केयर की कमी के आरोपों के तहत दाखिल हुआ था। कोर्ट ने पहले ही एम्स के निदेशक को एक विशेषज्ञ समिति, जिसे डॉ. एस के सरिन ने नेतृत्व दिया था, की सिफारिशों को लागू करने का आदेश दिया था। समिति ने सरकारी अस्पतालों में जरूरी सुधारों की बात कही थी, जिसमें स्टाफ की कमी, बुनियादी ढांचे की कमी और इमरजेंसी ऑपरेशन थिएटरों में सुधार शामिल थे।
एम्स निदेशक की जिम्मेदारी बढ़ी:
दिल्ली हाईकोर्ट ने एम्स के निदेशक को निर्देश दिया कि वह सरिन समिति की सिफारिशों को लागू करने की जिम्मेदारी लें। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में किसी भी अधिकारी या मंत्री की सिफारिशों पर गौर किया जाएगा, लेकिन अंतिम निर्णय एम्स निदेशक का होगा। अगली सुनवाई 13 नवंबर को होगी, जिसमें एम्स निदेशक से रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा गया है।
शहर की स्वास्थ्य सेवाओं पर राजनीति:
दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग में हो रही खींचतान पर अदालत ने पहले भी चिंता जताई थी। 2 सितंबर को कोर्ट ने कहा था कि "दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग में सब कुछ ठीक नहीं है," जो दर्शाता है कि आंतरिक विवादों के चलते स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की गति धीमी हो रही है।
बहरहाल, दिल्ली हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद यह साफ हो गया है कि स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए अदालत ने दिल्ली सरकार पर सख्त रुख अपनाया है। अगर सरकार समय पर अस्पतालों का निर्माण पूरा नहीं करती, तो न केवल धन का नुकसान होगा बल्कि जनता की स्वास्थ्य सेवाओं पर भी असर पड़ेगा। अब देखना यह होगा कि सरकार इन आदेशों का पालन कितनी जल्दी करती है और दिल्ली के नागरिकों को कब बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिल पाती हैं।