भारत-कनाडा संबंधों में तनाव चरम पर: हाई कमिश्नर की वापसी, भारत ने उठाए कड़े कदम


के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा  2024-10-15 12:54:57



 

भारत और कनाडा के संबंध अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए हैं। सोमवार को भारत ने अपने हाई कमिश्नर और अन्य महत्वपूर्ण राजनयिकों को कनाडा से वापस बुलाने का फैसला किया, जो कि कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के भारत-विरोधी रुख और "बेबुनियाद आरोपों" का नतीजा है। यह घटनाक्रम दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों के भविष्य को लेकर कई सवाल खड़े कर रहा है। आखिरकार, ऐसा क्या हुआ कि भारत को यह कड़ा कदम उठाना पड़ा?

कूटनीतिक विवाद की जड़ें

इस कूटनीतिक संकट की शुरुआत तब हुई जब कनाडा की सरकार ने भारतीय उच्चायुक्त और अन्य राजनयिकों को अपने देश में किसी जांच के सिलसिले में "संदिग्ध" बताया। भारत ने इसे सिरे से खारिज करते हुए इसे "बेबुनियाद आरोप" करार दिया। भारतीय विदेश मंत्रालय (MEA) ने कनाडा सरकार की ओर से भारतीय राजनयिकों को निशाना बनाए जाने की कड़ी आलोचना की। विदेश मंत्रालय ने कनाडाई सरकार पर आरोप लगाया कि वह "चरमपंथियों और आतंकवादियों" को समर्थन देकर भारतीय अधिकारियों और सामुदायिक नेताओं को धमकाने और उन्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रही है।

MEA द्वारा जारी बयान में कहा गया कि "कनाडाई प्रधानमंत्री ट्रूडो की सरकार ने हिंसा और उग्रवाद के माहौल में हमारे राजनयिकों की सुरक्षा खतरे में डाल दी है। हमें कनाडा सरकार की सुरक्षा व्यवस्था पर भरोसा नहीं रहा, इसलिए हमने अपने हाई कमिश्नर और अन्य महत्वपूर्ण अधिकारियों को वापस बुलाने का फैसला किया है।"

भारत का कड़ा रुख

यह कदम उस समय उठाया गया जब कनाडा ने यह दावा किया कि भारतीय राजनयिक एक जांच में "रुचि के व्यक्ति" हैं। भारतीय अधिकारियों ने इसे "राजनीतिक उद्देश्यों के तहत" उठाया गया कदम बताया और कहा कि ट्रूडो सरकार का यह रुख उनके "वोट बैंक" की राजनीति से प्रेरित है।

भारत ने कनाडाई प्रधानमंत्री ट्रूडो पर आरोप लगाया कि वह भारतीय मामलों में "जबरन हस्तक्षेप" कर रहे हैं। यह भी कहा गया कि ट्रूडो का भारत दौरा, जो 2018 में हुआ था, वोट बैंक की राजनीति के लिए था, और तब से उनका भारत के प्रति रवैया नकारात्मक रहा है।

विदेश मंत्रालय ने आगे कहा कि कनाडाई सरकार लगातार "भारत-विरोधी अलगाववादियों" को समर्थन देती रही है, जो भारतीय समुदाय और राजनयिकों के लिए खतरा उत्पन्न कर रहे हैं।

कनाडा में हिंदू समुदाय पर हमले

भारत ने कनाडा में हिंदू मंदिरों पर हो रहे हमलों का भी हवाला दिया, जहां अक्सर खालिस्तानी समर्थकों द्वारा मंदिरों की दीवारों पर नफरत भरी ग्रैफिटी लिखी जा रही है। साथ ही, भारतीय समुदाय और खासकर हिंदू-कनाडाई नागरिकों को लगातार निशाना बनाया जा रहा है। MEA ने बार-बार कनाडा को इस मुद्दे पर चेतावनी दी है कि अगर द्विपक्षीय संबंध और बिगड़े, तो इसका बड़ा नुकसान कनाडा को उठाना पड़ेगा।

कनाडा के राजनीतिक परिदृश्य का असर

MEA के बयान में यह भी कहा गया कि ट्रूडो सरकार का यह भारत-विरोधी रुख उनके राजनीतिक दल की आंतरिक समस्याओं का परिणाम है। कनाडा में विदेशी हस्तक्षेप पर आलोचनाओं के बाद ट्रूडो ने भारत को निशाना बनाया है, ताकि उनके खिलाफ उठ रही आवाजों को दबाया जा सके। ट्रूडो सरकार पर यह आरोप भी लगाया गया कि वे एक ऐसे राजनीतिक दल पर निर्भर हैं, जिसका नेता भारत के खिलाफ अलगाववादी विचारधारा का समर्थन करता है।

भारतीय उच्चायुक्त पर लगाए गए आरोप

कनाडाई सरकार ने भारतीय उच्चायुक्त संजय कुमार वर्मा पर भी आरोप लगाए, जिन्हें भारत के सबसे वरिष्ठ और अनुभवी राजनयिकों में से एक माना जाता है। वर्मा ने जापान, सूडान, इटली, तुर्की, वियतनाम और चीन में भी महत्वपूर्ण राजनयिक सेवाएं दी हैं। भारत ने इन आरोपों को "लज्जास्पद" बताया और कहा कि इन्हें "पूरी तरह से नकारा जाना चाहिए"।

कनाडा के प्रभारी स्टीवर्ट व्हीलर को विदेश मंत्रालय बुलाया

इस से पूर्व कनाडा के प्रभारी को मसले पर बातचीत के लिए विदेश मंत्रालय बुलाया गया था। मंत्रालय में बातचीत के बाद बाहर निकलते हुए उन्होंने मीडिया से बताया कि, "कनाडा ने भारत सरकार के एजेंटों और कनाडा की धरती पर एक कनाडाई नागरिक की हत्या के बीच संबंधों के विश्वसनीय, अकाट्य सबूत दिए हैं। अब समय आ गया है कि भारत अपने वादे पर खरा उतरे और उन सभी आरोपों की जांच करे। इस मामले की तह तक जाना हमारे दोनों देशों और हमारे देशों के लोगों के हित में है। कनाडा भारत के साथ सहयोग करने के लिए तैयार है।"  

आगे की संभावनाएं

भारत ने कनाडा को साफ संदेश दिया है कि वह और कड़े कदम उठाने का अधिकार रखता है। भारत ने अपने राजनयिकों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता जताई है और कनाडा से स्पष्ट रूप से कहा है कि वह ऐसी गतिविधियों को बंद करे।

भारत-कनाडा संबंधों में यह कूटनीतिक टकराव एक गंभीर मोड़ ले चुका है, जहां दोनों देशों के बीच न केवल व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध, बल्कि राजनीतिक समीकरण भी प्रभावित हो सकते हैं। ट्रूडो सरकार की यह नीति उनके लिए कितना फायदेमंद साबित होगी, यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा, लेकिन इस कूटनीतिक टकराव का असर निश्चित रूप से कनाडा की वैश्विक छवि पर पड़ेगा।


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