डॉक्टर के साथ 9.5 लाख रुपये की साइबर ठगी: डिजिटल गिरफ्तारी का चौथा मामला
के कुमार आहूजा 2024-10-12 09:34:06
डॉक्टर के साथ 9.5 लाख रुपये की साइबर ठगी: डिजिटल गिरफ्तारी का चौथा मामला
जोधपुर में एक बार फिर से साइबर अपराध का खौफनाक मामला सामने आया है, जहाँ एक डॉक्टर को 24 घंटे की 'डिजिटल गिरफ्तारी' में फंसाकर 9.5 लाख रुपये की ठगी कर ली गई। यह जोधपुर में अगस्त के बाद चौथा ऐसा मामला है। अपराधी फर्जी कस्टम अधिकारियों के रूप में पेश होकर डॉक्टर को धमकाते रहे, जिससे वह मानसिक दबाव में आकर बड़ी रकम गंवा बैठे।
विस्तृत रिपोर्ट:
सदर कोतवाली थाने के एसआई पुखराज ने बताया कि डॉ. मोहम्मद शाकिर गौरी, जो स्वास्थ्य विभाग में मेडिकल ऑफिसर हैं और जोधपुर के नागौरी गेट क्षेत्र में रहते हैं, को 6 अक्टूबर को एक फोन कॉल आया। कॉल करने वाले ने खुद को कस्टम अधिकारी बताया और दावा किया कि उनके नाम से एक पार्सल पकड़ा गया है, जिसमें नकली पासपोर्ट, क्रेडिट कार्ड, लैपटॉप और 1.4 ग्राम एमडीएमए (ड्रग्स) शामिल है। कॉल करने वाले ने डॉक्टर को '1' दबाने के लिए कहा ताकि अधिक जानकारी प्राप्त हो सके।
जब डॉ. गौरी ने कॉलर को बताया कि उन्होंने ऐसा कोई पार्सल बुक नहीं किया, तो कॉलर ने कहा कि यह पार्सल दिल्ली से थाईलैंड के लिए बुक किया गया था और इसे दिल्ली एयरपोर्ट पर पकड़ा गया। इसके बाद डॉक्टर को बताया गया कि पार्सल में पाँच पासपोर्ट, तीन क्रेडिट कार्ड, कपड़े और मादक पदार्थ मिले हैं, जिनमें तीन पासपोर्ट पाकिस्तान के हैं। इस फर्जी कस्टम अधिकारी ने उन्हें बताया कि मनी लॉन्ड्रिंग और मानव तस्करी के आरोपों में उन पर मामला दर्ज किया जा सकता है।
डॉक्टर को तुरंत दिल्ली क्राइम ब्रांच आने के लिए कहा गया। जब डॉक्टर ने कहा कि वह इतनी जल्दी यात्रा नहीं कर सकते, तो उन्हें वीडियो कॉल पर एक फर्जी IPS अधिकारी से जोड़ा गया, जिसने अपना नाम समधान पंवार बताया। उसने दावा किया कि डॉक्टर के नाम से पाकिस्तान से धनराशि प्राप्त हो रही है और उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा सकती है। इस मानसिक दबाव के बीच, डॉक्टर को 'डिजिटल गिरफ्तारी' के तहत रखा गया और उन्हें किसी से संपर्क करने की अनुमति नहीं दी गई।
इस दौरान, डॉक्टर से 9.5 लाख रुपये की राशि आरटीजीएस के माध्यम से ट्रांसफर करवा ली गई, यह कहते हुए कि यह राशि छह घंटे के भीतर उनके खाते में वापस आ जाएगी। जब डॉक्टर ने 6 बजे अपने व्हाट्सएप को चेक किया तो पाया कि स्कैमर्स संपर्क में नहीं थे और उन्होंने जवाब देना बंद कर दिया था। इस पर डॉक्टर को एहसास हुआ कि उनके साथ ठगी हुई है और उन्होंने तुरंत सदर कोतवाली पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई।
डिजिटल गिरफ्तारी का चौथा मामला:
यह जोधपुर में पिछले दो महीनों में 'डिजिटल गिरफ्तारी' का चौथा मामला है। अगस्त में, आईआईटी जोधपुर के एक प्रोफेसर से इसी तरह के साइबर अपराध में 23 लाख रुपये की ठगी की गई थी। इसके बाद, एक मेडिकल कॉलेज के पूर्व विभागाध्यक्ष से 87 लाख रुपये की ठगी हुई और फिर एक दंत चिकित्सक से 6 लाख रुपये की धोखाधड़ी की गई थी। इस प्रकार के अपराधों से यह साफ होता है कि साइबर अपराधी नए-नए तरीकों से लोगों को धोखा देकर मोटी रकम हड़प रहे हैं।
साइबर क्राइम का बढ़ता खतरा:
साइबर ठग अब डिजिटल तकनीकों का इस्तेमाल करके लोगों को मानसिक और आर्थिक रूप से निशाना बना रहे हैं। 'डिजिटल गिरफ्तारी' जैसे जाल लोगों को भ्रमित करने के लिए बनाया गया है। इस प्रकार के मामलों में लोग न केवल धनराशि गंवा बैठते हैं बल्कि मानसिक रूप से भी प्रताड़ित होते हैं। अपराधी पीड़ितों को कानूनी कार्रवाई के नाम पर डराते हैं और उनका मानसिक संतुलन बिगाड़कर उनसे पैसे निकलवाने का काम करते हैं।
पुलिस की कार्रवाई और सजगता की जरूरत:
पुलिस अब इन मामलों में सक्रियता से कार्रवाई कर रही है, लेकिन जनता को भी सजग रहने की आवश्यकता है। साइबर अपराधियों से बचने के लिए किसी भी अनजान कॉल पर अपनी निजी जानकारी साझा न करें और न ही किसी भी प्रकार का वित्तीय लेन-देन करें। पुलिस ने आम जनता से अपील की है कि यदि उन्हें कोई संदिग्ध कॉल आती है, तो वे तुरंत पुलिस को सूचित करें और साइबर क्राइम हेल्पलाइन का इस्तेमाल करें।
संदेश:
यह घटना इस बात का प्रमाण है कि डिजिटल युग के साथ-साथ साइबर सुरक्षा की भी जरूरत बढ़ गई है। जिस प्रकार अपराधी तकनीकों का दुरुपयोग कर लोगों को ठग रहे हैं, वह एक गंभीर चिंता का विषय है। हर नागरिक को साइबर अपराध से बचने के लिए जागरूक और सतर्क रहना चाहिए।