मानसिक स्वास्थ्य संकट और प्राचीन वेदों की समाधान की राह: एक गहरी नजर
के कुमार आहूजा 2024-10-12 09:25:50
मानसिक स्वास्थ्य संकट और प्राचीन वेदों की समाधान की राह: एक गहरी नजर
जबकि प्रौद्योगिकी ने हमारे जीवन को आरामदायक बनाया है, मानसिक स्वास्थ्य संकट तेजी से बढ़ रहा है। WHO के अनुसार, 370 मिलियन से अधिक लोग मानसिक विकारों से पीड़ित हैं, जिनमें से 280 मिलियन लोग अवसाद का सामना कर रहे हैं। इसका मतलब है कि तमाम चिकित्सा उन्नतियों के बावजूद मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लिए प्रभावी समाधान अब भी कम हैं। आइए एक नजर डालते हैं इस गंभीर स्थिति पर और प्राचीन भारतीय ग्रंथों से मिलने वाली शिक्षाओं पर।
वर्तमान मानसिक स्वास्थ्य संकट:
मानसिक स्वास्थ्य आज की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक बन गया है। अवसाद, तनाव, और चिंता जैसे विकार न केवल हमारे मानसिक जीवन को प्रभावित करते हैं, बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य को भी गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं। WHO की रिपोर्ट बताती है कि हर पांच में से एक व्यक्ति मानसिक विकारों का सामना कर रहा है, और सबसे बड़ी समस्या अवसाद है, जिससे 280 मिलियन लोग प्रभावित हैं। इसके बावजूद, चिकित्सा और तकनीकी प्रगति के बावजूद इन समस्याओं का पूर्ण समाधान अभी तक प्राप्त नहीं हो पाया है।
रामायण से मानसिक स्वास्थ्य पर दृष्टिकोण:
प्राचीन भारतीय महाकाव्य रामायण में मानसिक स्वास्थ्य के गहरे सवालों का जवाब मिलता है। एक प्रसंग में, भगवान राम अपने गुरु, महर्षि वशिष्ठ से पूछते हैं कि उनके राज्य के नागरिक विभिन्न रोगों से क्यों पीड़ित हैं। महर्षि वशिष्ठ बताते हैं कि इन रोगों की जड़ मानसिक तनाव में है। जब हमारा मानसिक संतुलन बिगड़ता है, तब हमारी प्राण शक्ति अस्थिर हो जाती है, जिसका परिणाम शारीरिक बीमारियों में होता है।
महर्षि वशिष्ठ का यह दृष्टिकोण आधुनिक चिकित्सा विज्ञान से मेल खाता है, जो अब मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के बीच के गहरे संबंध को समझने की दिशा में बढ़ रहा है। वेदों में इस बात पर जोर दिया गया है कि हमारे नकारात्मक विचार और भावनाएं हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। यह दृष्टिकोण मानसिक विकारों के उपचार के लिए योग, ध्यान और प्राणायाम जैसी तकनीकों के महत्व को भी रेखांकित करता है।
'मानस रोग' और उनके समाधान:
वेदों के अनुसार, क्रोध, ईर्ष्या, लालच, और वासना जैसे भावनाएं 'मानस रोग' मानी जाती हैं। ये समस्याएं मानव जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन हम अक्सर इन्हें समझने और उनका समाधान ढूंढ़ने में असफल रहते हैं। आधुनिक समाज में इन्हें 'स्वाभाविक' मान लिया जाता है, जिसके कारण हम इनका उपचार करने की आवश्यकता को नहीं पहचान पाते।
वेदों के अनुसार, मानसिक विकारों से निपटने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कदम है ज्ञान का सही उपयोग। सही ज्ञान हमें हमारे विश्वासों को सही दिशा में मोड़ने में मदद करता है। ये विश्वास हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार, सकारात्मक विश्वासों का निर्माण मानसिक स्वास्थ्य सुधार के लिए महत्वपूर्ण है।
योग और मानसिक स्वास्थ्य का संबंध:
वेदों और उपनिषदों में योग को मानसिक शांति और आत्म-साक्षात्कार का प्रमुख माध्यम बताया गया है। योग के बारे में कहा गया है: "योग: चित्त वृत्ति निरोधः" यानी योग मन की चंचलता को नियंत्रित करता है। योग और ध्यान के अभ्यास से हम अपने मानसिक तनाव को शांत कर सकते हैं और अपनी आंतरिक शांति को प्राप्त कर सकते हैं। आधुनिक मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी योग और ध्यान को तनाव और अवसाद जैसे विकारों के उपचार में प्रभावी मानते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य के लिए कानूनी उपाय:
भारत सरकार द्वारा 2017 में लागू किया गया नया मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम भी मानसिक स्वास्थ्य को शारीरिक स्वास्थ्य के समान महत्व देता है। यह अधिनियम मानसिक रोगियों को 5 लाख रुपये तक की चिकित्सा बीमा और उपचार की गारंटी देता है। इस अधिनियम के अनुसार, मानसिक बीमारियों को अब उसी गंभीरता से लिया जा रहा है जैसे किसी शारीरिक बीमारी को लिया जाता है। इससे मानसिक स्वास्थ्य के प्रति समाज में जागरूकता और उपचार में सुधार हो रहा है।
मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं आज के समय की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक हैं। प्राचीन भारतीय ग्रंथों और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान दोनों ही इस बात पर सहमत हैं कि मानसिक स्वास्थ्य का शारीरिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। योग, ध्यान, और सकारात्मक सोच जैसी विधियां इन समस्याओं से निपटने में महत्वपूर्ण हो सकती हैं। इस दिशा में सही ज्ञान और सही दृष्टिकोण से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों में सुधार किया जा सकता है।
स्रोत:
[World Health Organization (WHO)]
[Forbes Mental Health Report]
[रामायण और वेदिक साहित्य]