रावण बनना इतना भी आसान नहीं होता, खुद को भुलाना पड़ता है किरदार निभाने के लिए -के कुमार आहूजा 


के कुमार आहूजा, अजय त्यागी   2024-10-11 18:01:00



रावण बनना इतना भी आसान नहीं होता, खुद को भुलाना पड़ता है किरदार निभाने के लिए -के कुमार आहूजा 

रावण बनना इतना भी आसान नहीं होता, खुद को भुलाना पड़ता है किरदार निभाने के लिए, यह कहना है अपने परिवार की तीसरी पीढी के किशन कुमार आहूजा का, जो लगातार पिछले 22 वर्षों से दशहरा महोत्सव पर रावण का किरदार अदा करते आ रहे हैं। (आज तबियत ठीक नहीं फिर भी) 

जी हां, बीकानेर का दशहरा महोत्सव केवल एक सांस्कृतिक उतसव ही नहीं है इसमें पीढीयों का इतिहास जुड़ा है। जहाँ एक तरफ रावण का किरदार निभाने वाले किशन कुमार आहूजा अपने परिवार की तीसरी पीढी हैं तो वहीं, दशहरा उत्सव के लिए रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के पुतलों को बनाने वाले कारीगर सलीम, अपने परिवार की पांचवी पीढी हैं, जो लगातार पिछले 68 वर्षों से इस एतिहासिक महोत्सव का हिस्सा बनते आ रहे हैं।

तीसरी पीढी के रावण यानि किशन कुमार आहूजा ने एक बातचीत के दौरान बताया कि मेरे परिवार से पहली पीढी के रूप में स्वर्गीय माधव दास आहूजा ने 20 वर्ष उसके बाद दूसरी पीढी में आयकर अधिकारी शिवाजी आहूजा ने 25 वर्षों तक इस किरदार को निभाया है। वर्तमान में तीसरी पीढी के रूप में मैं पिछले 22 वर्षों से इस परम्परा को निभाता आ रहा हूँ। उन्होंने कहा कि लोग पूरे साल इस किरदार को याद रखते हैं। कहीं मजाक में तो कहीं कटाक्ष के रूप में या कहीं जय लंकेश बोलकर लोग मुझे रावण बोलने से बाज नहीं आते। जहाँ मजाक की बात हो तो बहुत अच्छा लगता है। लेकिन, जहाँ लोग कटाक्ष के रूप में रावण बोलते हैं तो दिल को बड़ी तकलीफ भी होती है। 

अपनी पत्नी श्रीमती कान्ता आहूजा के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि पूरे मोहल्ले की औरतें उन्हें मंदोदरी भाभी कहकर बुलाती हैं। लेकिन, वो इस बात पर फक्र करती हैं। उनका कहना है कि इस बहाने हम कम से कम अपनी पुरातन संस्कृति, हमारी सभ्यता और हमारे इतिहास को याद रखने में एक सकारात्मक भूमिका निभा रहे हैं।

किशन कुमार आहूजा ने बातचीत के दौरान यह भी बताया कि पेशे से एक पत्रकार होने के नाते पूरे साल विभिन्न आयोजनों में कवरेज के लिए जाना पड़ता है, इस दौरान भी अनेकों बार लोग रावण का अट्टहास सुनाने की मांग करने लगते हैं। एक स्थाई किरदार होने के नाते तत्काल मुझे स्वयं को भुलाकर रावण को याद करना पड़ता है तभी वो अट्टहास मुख से निकलता है। उन्होंने कहा कि मुझे गर्व है कि मैं अपने परिवार की तीसरी पीढी तक इस परम्परा को कायम रखने में आपना योगदान दे रहा हूँ।        

दशहरा महोत्सव पर निकलने वाली झांकी के विषय में भी बात करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे बीकानेर दशहरा कमेटी के सभी कलाकार पूरी मेहनत से इस कार्यक्रम को सफल बनाने में अपनी भूमिका निभाते हैं। झांकी के दौरान चार से पांच घंटे एक ही पोज़ बनाकर खड़े या बैठे रहना भी बड़ा मुश्किल काम होता है। आम जनता के मनोरंजन के साथ-साथ अपने पौराणिक इतिहास से उन्हें रूबरू करवाने के लिए सभी कलाकार एक प्रकार से यह कठोर तपस्या करते हैं। 

इसमें भी रावण की भूमिका और भी बढ़ जाती है। उसे केवल चुपचाप बैठकर अपना किरदार नहीं निभाना होता बल्कि रानी बाजार से स्टेशन रोड, ठंठेरा बाजार, बड़ा बाजार, जोशिवाडा, कोटगेट, के ई एम रोड होते हुए स्टेडियम तक पूरे रास्ते लोगों का मनोरंजन करने के साथ-साथ अपनी गगन-भेदी हंसी और अट्टहास के जरिए रावण की क्रूरता को भी जनता के सामने लाना होता है। ऐसे में चार से पांच घटे के पूरे रास्ते के दौरान गला बैठ जाता है जो आगे तीन-चार दिन में जाकर वापस सही होता है। लेकिन यह एक जूनून है, जिसके चलते हर साल यह भूमिका निभा कर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता हूँ।


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