रिमोट पेशेंट मॉनिटरिंग: भारत के ग्रामीण इलाकों में चिकित्सा का नया युग या चुनौतियों का पहाड़


के कुमार आहूजा  2024-10-09 19:32:13



रिमोट पेशेंट मॉनिटरिंग: भारत के ग्रामीण इलाकों में चिकित्सा का नया युग या चुनौतियों का पहाड़

जब भारत का हेल्थकेयर सिस्टम डिजिटल क्रांति की ओर तेजी से बढ़ रहा है, रिमोट पेशेंट मॉनिटरिंग (RPM) तकनीक एक महत्वपूर्ण नवाचार के रूप में उभर रही है। RPM से मरीजों की देखभाल का तरीका पूरी तरह बदल रहा है, खासकर इमरजेंसी और क्रिटिकल केयर सेटिंग्स में। लेकिन क्या ये तकनीक भारत के ग्रामीण इलाकों में प्रभावी रूप से काम कर रही है या बुनियादी ढांचे की कमी के कारण इसकी पहुंच सीमित हो गई है?

रिमोट पेशेंट मॉनिटरिंग: चिकित्सा क्षेत्र में बदलाव

रिमोट पेशेंट मॉनिटरिंग (RPM) तकनीक का उपयोग डिजिटल उपकरणों के माध्यम से मरीजों की स्वास्थ्य जानकारी एकत्र करने और उसे डॉक्टरों तक पहुंचाने के लिए किया जाता है। इसमें हृदय की धड़कन, ऑक्सीजन स्तर, रक्तचाप और तापमान जैसी जरूरी जानकारी शामिल होती है। इस प्रक्रिया के जरिए डॉक्टर रियल-टाइम में मरीज की स्थिति का आकलन कर सकते हैं और जरूरत पड़ने पर तत्काल निर्णय ले सकते हैं, बिना मरीज को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत पड़े।

इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) डिवाइसेस, क्लाउड कंप्यूटिंग और टेलीमेडिसिन के प्रसार के कारण RPM तकनीक ने काफी तेजी से प्रगति की है। इसका मुख्य लाभ यह है कि यह मरीजों और डॉक्टरों के लिए लागत प्रभावी साबित हो रही है, क्योंकि अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत कम हो जाती है और समस्याओं का जल्द पता लग जाता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के साथ RPM और भी सशक्त हो रहा है, जिससे संभावित स्वास्थ्य समस्याओं का पहले से ही अनुमान लगाया जा सकता है​।

ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सेवा की स्थिति और RPM की चुनौतियां

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में RPM को अपनाने में कई समस्याएं आ रही हैं। सबसे बड़ी चुनौती बुनियादी ढांचे की कमी है। कमजोर इंटरनेट कनेक्टिविटी, सीमित डिजिटल स्वास्थ्य साधन, और अपर्याप्त चिकित्सा संसाधन RPM को प्रभावी रूप से लागू करने में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। इसके अलावा, स्वास्थ्यकर्मियों को RPM तकनीक का उपयोग सिखाने के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है, जो अभी तक पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं है​।

डॉ. तमोरिश कोले, जो इंटरनेशनल फेडरेशन फॉर इमरजेंसी मेडिसिन के क्लिनिकल प्रैक्टिस कमेटी के अध्यक्ष हैं, बताते हैं कि RPM का सुरक्षित रूप से उपयोग सुनिश्चित करने के लिए डेटा सुरक्षा और साइबर सुरक्षा के मानकों का पालन करना बहुत जरूरी है। इसके साथ ही, RPM डेटा को अस्पताल की मौजूदा सूचना प्रणालियों के साथ समन्वयित करना भी चुनौतीपूर्ण है, ताकि मरीजों को लगातार और समग्र देखभाल मिल सके ।

क्रिटिकल केयर और इमरजेंसी में RPM की भूमिका

इमरजेंसी और क्रिटिकल केयर सेटिंग्स में RPM अत्यधिक महत्वपूर्ण साबित हो रहा है। इन परिस्थितियों में त्वरित निर्णय और वास्तविक समय में निगरानी जरूरी होती है, जो RPM के माध्यम से मुमकिन हो पाती है। गंभीर रोगियों के लिए, RPM प्रारंभिक संकेतों को पहचानने और समय पर उपचार प्रदान करने में मदद करता है। भारत में कुछ अस्पतालों ने इसे अपनाया है और RPM की मदद से हृदय दर और रक्तचाप की निगरानी करके हृदयाघात जैसी आपात स्थितियों से बचाया जा रहा है​।

विशेष रूप से इमरजेंसी डिपार्टमेंट में, जहां अधिक भीड़ होती है, RPM महत्वपूर्ण मामलों को प्राथमिकता देने में मदद कर सकता है। इससे चिकित्सा संसाधनों का बेहतर उपयोग होता है और गंभीर मामलों में विलंबित देखभाल की संभावना कम हो जाती है। मल्टी कैजुअल्टी इंसीडेंट्स (MCI) में भी RPM मददगार साबित हो सकता है, जिससे प्राथमिक चिकित्सा और देखभाल का स्तर बढ़ता है​।

ग्रामीण क्षेत्रों में हेल्थकेयर सुविधाओं की कमी

भारत के कई ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सीमित है। ऐसे में RPM एक वरदान साबित हो सकता है, क्योंकि यह दूर-दराज के क्षेत्रों में भी डॉक्टरों को मरीज की स्थिति की निगरानी की सुविधा प्रदान करता है। डॉक्टर, स्थानीय देखभालकर्ताओं या पैरामेडिक्स को आपातकालीन हस्तक्षेपों के लिए मार्गदर्शन कर सकते हैं, जिससे अधिक उन्नत चिकित्सा सुविधा मिलने तक मरीज को समय पर देखभाल मिल सके। यह भारत जैसे देश के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, जहां कई ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पतालों तक पहुंचने में घंटों लग सकते हैं ।

पोस्ट-डिस्चार्ज मॉनिटरिंग और लंबी अवधि की देखभाल

अस्पताल में उपचार के बाद भी मरीजों को निगरानी की जरूरत होती है, खासकर सर्जरी, हृदय संबंधी प्रक्रियाओं या अन्य गंभीर देखभाल के बाद। RPM इस चुनौती को आसान बना देता है, क्योंकि यह मरीजों को घर बैठे ही उनकी स्थिति की निगरानी की सुविधा देता है। इससे न केवल मरीजों की देखभाल सुनिश्चित होती है, बल्कि अस्पताल के बिस्तरों पर दबाव भी कम होता है​।

कोविड-19 और RPM का योगदान

कोविड-19 महामारी के दौरान RPM ने स्वास्थ्य सेवाओं में एक अहम भूमिका निभाई। विशेष रूप से सांस संबंधी समस्याओं वाले मरीजों के लिए यह तकनीक बेहद कारगर साबित हुई। डॉक्टरों ने ऑक्सीजन संतृप्ति स्तर, तापमान और अन्य महत्वपूर्ण संकेतकों को ट्रैक किया, जिससे मरीजों से सीधे संपर्क कम हुआ और संक्रमण फैलने का खतरा भी कम हुआ। RPM की मदद से अस्पताल उन मरीजों पर ध्यान केंद्रित कर सके, जिन्हें सबसे ज्यादा जरूरत थी। आगे चलकर, RPM उभरती हुई संक्रामक बीमारियों और महामारी जैसी स्थितियों से निपटने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा ।

हब एंड स्पोक मॉडल: ग्रामीण और शहरी अस्पतालों का समन्वय

भारत में RPM तकनीक के उपयोग के लिए "हब एंड स्पोक" मॉडल एक संभावित समाधान है, जिससे छोटे ग्रामीण अस्पतालों को शहरी अस्पतालों के साथ जोड़ा जा सके। वर्तमान में, टेली-आईसीयू सिस्टम का उपयोग RPM के साथ किया जा रहा है, जिससे विशेषज्ञ डॉक्टर दूर-दराज के इलाकों में कई मरीजों की निगरानी कर सकते हैं और स्थानीय मेडिकल टीमों को सही निर्णय लेने में सहायता कर सकते हैं ।

रिमोट पेशेंट मॉनिटरिंग तकनीक भारत के हेल्थकेयर सिस्टम के भविष्य में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। हालांकि, इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत करना, स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षित करना और डेटा सुरक्षा सुनिश्चित करना अनिवार्य है। यदि इन चुनौतियों को हल किया जा सके, तो RPM ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में मरीजों को बेहतर, तेज और अधिक किफायती स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कर सकता है।


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