जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक बहाली पर उमर अब्दुल्ला की प्रतिक्रिया: आखिरकार, लोकतंत्र की वापसी


के कुमार आहूजा  2024-10-09 08:15:09



जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक बहाली पर उमर अब्दुल्ला की प्रतिक्रिया: आखिरकार, लोकतंत्र की वापसी

जम्मू-कश्मीर में वर्ष 2018 के बाद से ठप पड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को फिर से बहाल होते देखना एक बड़ी राहत है। नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने हाल ही में चुनावी परिणामों पर खुशी जताते हुए, राज्य में लोकतांत्रिक व्यवस्था की वापसी पर अपने विचार साझा किए। उमर का यह बयान न केवल जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक स्थिति की झलक देता है, बल्कि इस नई शुरुआत में क्षेत्रीय संतुलन और राज्य का दर्जा बहाल होने की उम्मीद भी दिखाता है।

विस्तृत रिपोर्ट:

जम्मू-कश्मीर में साल 2018 के बाद से लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में आई रुकावट के बाद, हालिया चुनाव परिणामों ने राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में नई उम्मीदें जगाई हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने राज्य में लोकतांत्रिक व्यवस्था की वापसी पर अपनी खुशी जताते हुए कहा कि यह एक महत्वपूर्ण मोड़ है।

लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली:

उमर अब्दुल्ला ने जनता के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा, "मैं जम्मू-कश्मीर के लोगों को दिल की गहराइयों से मुबारकबाद पेश करूंगा। आखिरकार 2018 के बाद जम्मू-कश्मीर में एक बार फिर जम्हूरी निज़ाम (लोकतांत्रिक व्यवस्था) कायम होगा।" उन्होंने विशेष रूप से उन मतदाताओं का धन्यवाद किया जिन्होंने अपने मताधिकार का प्रयोग किया और गठबंधन के प्रत्याशियों को विजय दिलाई। उमर अब्दुल्ला का यह बयान लोकतांत्रिक व्यवस्था की वापसी की ओर इशारा करता है, जो अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से अवरुद्ध थी।

संतुलित सरकार की आवश्यकता:

हालांकि उमर अब्दुल्ला ने चुनावी जीत पर खुशी जताई, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि इस जनादेश को संभालने में सावधानी बरतने की जरूरत है। उन्होंने कहा, "इस जनादेश में हमें बहुत सावधानी बरतनी होगी। जम्मू के लोगों को यह नहीं लगना चाहिए कि इस सरकार में उनकी कोई आवाज़ नहीं है।"

यह बयान दर्शाता है कि उमर अब्दुल्ला सरकार में जम्मू और कश्मीर दोनों क्षेत्रों के लोगों को प्रतिनिधित्व देने के पक्ष में हैं। उनका मानना है कि सरकार को क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखने पर ध्यान देना चाहिए ताकि सभी समुदायों को न्याय मिले और उनकी आवाज सुनी जा सके।

राज्य का दर्जा और विधान परिषद की बहाली की मांग:

उमर अब्दुल्ला ने अपने बयान में यह भी कहा कि अगर राज्य का दर्जा बहाल होता है, तो सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विधान परिषद (लेजिस्लेटिव काउंसिल) को फिर से स्थापित किया जाए। उन्होंने कहा, "मैं मानता हूं कि अगर राज्य का दर्जा हमें वापस मिलता है तो सरकार को कोशिश करनी चाहिए कि लेजिस्लेटिव काउंसिल दोबारा कायम हो।"

यह मांग उस दौर की याद दिलाती है जब जम्मू-कश्मीर एक पूर्ण राज्य था और उसकी अपनी विधान परिषद थी। विधान परिषद एक द्विसदनीय विधायिका का हिस्सा थी, जो अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के बाद समाप्त कर दी गई थी। उमर अब्दुल्ला का मानना है कि राज्य का दर्जा बहाल होने के बाद, इस लोकतांत्रिक ढांचे को फिर से स्थापित करना महत्वपूर्ण होगा।

राजनीतिक संदर्भ और चुनौतियाँ:

जम्मू-कश्मीर में हालिया चुनावों को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि जनता ने फिर से लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भाग लेना शुरू कर दिया है। 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद, राज्य के विशेष दर्जे को खत्म कर दिया गया था और इसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था। इसके बाद से, राज्य में राजनीतिक अस्थिरता बनी रही, लेकिन अब धीरे-धीरे चुनावी प्रक्रिया को फिर से बहाल किया जा रहा है।

हालांकि, उमर अब्दुल्ला के बयान से यह भी पता चलता है कि सरकार और प्रशासनिक तंत्र को इस बात का ध्यान रखना होगा कि जम्मू-कश्मीर के लोगों की लोकतांत्रिक आवाज़ को फिर से सम्मान और महत्व दिया जाए। चुनावों के बाद नए नेतृत्व के सामने यह चुनौती होगी कि वे राज्य के सभी क्षेत्रों के लिए समान रूप से काम करें और लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करें।

राजनीतिक भविष्य की दिशा:

उमर अब्दुल्ला ने राज्य के भविष्य को लेकर भी आशा व्यक्त की है। उनका मानना है कि राज्य का दर्जा वापस मिलना एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जिसे जल्द ही हल किया जाना चाहिए। राज्य का दर्जा बहाल करना और विधान परिषद की पुनर्स्थापना से न केवल राज्य की पहचान को मजबूती मिलेगी, बल्कि यह स्थानीय जनता की भावनाओं और उनके अधिकारों को भी पुनःस्थापित करेगा। उमर अब्दुल्ला का यह बयान संकेत देता है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस राज्य की स्वायत्तता और लोकतांत्रिक मूल्यों की बहाली के लिए काम करती रहेगी।

उमर अब्दुल्ला का बयान एक महत्वपूर्ण समय पर आया है, जब जम्मू-कश्मीर धीरे-धीरे अपनी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में लौट रहा है। उनके द्वारा उठाए गए मुद्दे—जम्मू के लोगों की आवाज़, राज्य का दर्जा, और विधान परिषद की बहाली—इन सभी विषयों ने जनता और सरकार के सामने कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े कर दिए हैं।

यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्य की नई सरकार किस तरह इन चुनौतियों से निपटेगी और क्या राज्य का दर्जा और विधान परिषद की बहाली जैसे मुद्दे हल होंगे। उमर अब्दुल्ला का यह बयान जम्मू-कश्मीर की राजनीति के लिए एक दिशा सूचक है, जो आने वाले समय में राज्य की स्थिति को स्पष्ट करेगा।


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