इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: लिव-इन रिलेशनशिप को भी दहेज हत्या के दायरे में लाने का आदेश
के कुमार आहूजा 2024-10-09 07:38:11
इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: लिव-इन रिलेशनशिप को भी दहेज हत्या के दायरे में लाने का आदेश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि पति-पत्नी की तरह रहना दहेज हत्या के आरोप लगाने के लिए पर्याप्त आधार है। इस निर्णय ने लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों के लिए एक नया विवाद खड़ा कर दिया है, क्योंकि अब उन्हें भी दहेज उत्पीड़न और हत्या के मामले में अभियोजित किया जा सकता है। यह मामला आदर्श यादव से संबंधित है, जिसने कोर्ट में अपनी याचिका लगाई थी। आइए जानते हैं इस निर्णय के पीछे की पूरी कहानी और उसके संभावित प्रभाव।
मामले का परिचय
प्रयागराज के कोतवाली थाने में 2022 में आदर्श यादव के खिलाफ दहेज उत्पीड़न और हत्या का मामला दर्ज किया गया था। शिकायत में आरोप लगाया गया था कि यादव महिला से दहेज की मांग करता था और उसे प्रताड़ित करता था। इस मानसिक तनाव के चलते महिला ने आत्महत्या कर ली। पुलिस ने जांच के बाद कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की, जबकि यादव की डिस्चार्ज याचिका को ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया।
कोर्ट की सुनवाई और निर्णय
आदर्श यादव ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें उसने तर्क दिया कि वह महिला का कानूनी पति नहीं था, इसलिए उसके खिलाफ दहेज उत्पीड़न और हत्या का मामला नहीं चलाया जा सकता। इस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस राजबीर सिंह की अदालत ने कहा कि महिला की कोर्ट में शादी हुई थी, और यादव ने उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया।
अदालत ने कहा कि कानून का उद्देश्य स्पष्ट है कि केवल पति ही नहीं, बल्कि उसके रिश्तेदार भी दहेज मृत्यु कानून के दायरे में आते हैं। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि भले ही यह मान लिया जाए कि महिला कानूनी पत्नी नहीं थी, लेकिन रिकॉर्ड पर पर्याप्त साक्ष्य हैं कि यादव और महिला पति-पत्नी की तरह रह रहे थे। इसलिए, दहेज हत्या के प्रावधान लागू होंगे।
अवधारणा और सामाजिक प्रभाव
इस निर्णय का सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण प्रभाव है। यह स्पष्ट करता है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोग भी कानून के तहत उतने ही जिम्मेदार हैं जितने विवाहित जोड़े। यह एक महत्वपूर्ण संकेत है कि दहेज के मुद्दे पर समाज में व्याप्त पूर्वाग्रहों को समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के निर्णय से दहेज के खिलाफ लड़ाई में एक नई धार आ सकती है। यह युवाओं को यह संदेश देता है कि चाहे वह कानूनी शादी में हों या लिव-इन में, उनके अधिकार और कर्तव्य समान हैं।
कानूनी जटिलताएँ
हालांकि, यह निर्णय कुछ कानूनी जटिलताओं को भी जन्म दे सकता है। वकीलों का कहना है कि यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि ऐसे मामलों में सभी साक्ष्य और परिस्थितियों का सही मूल्यांकन किया जाए। यह आवश्यक है कि कानून का दुरुपयोग न हो और यह सुनिश्चित किया जाए कि सही मामलों में ही दंडात्मक कार्रवाई की जाए।
आगे की राह
अलाहाबाद हाईकोर्ट का यह आदेश दहेज हत्या के मामलों में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह देखना दिलचस्प होगा कि अन्य उच्च न्यायालय इस निर्णय पर कैसे प्रतिक्रिया देंगे और क्या यह भारत के अन्य हिस्सों में भी दहेज के खिलाफ और सख्त कानूनों की दिशा में एक कदम बढ़ाएगा।
बहरहाल, इस निर्णय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि दहेज हत्या के मामलों में लिव-इन रिलेशनशिप भी उतनी ही गंभीरता से लिए जाएंगे। यह न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज में महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा के लिए भी एक सकारात्मक कदम है।