बीकानेर में बंगाल की छटा: 8 जगहों पर भव्य दुर्गा पूजा पंडाल, विसर्जन के साथ होगी विदाई
के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा 2024-10-09 06:34:15
बीकानेर में बंगाल की छटा: 8 जगहों पर भव्य दुर्गा पूजा पंडाल, विसर्जन के साथ होगी विदाई
नवरात्रि का पर्व पूरे देश में भक्तिभाव और उल्लास के साथ मनाया जाता है, लेकिन पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा का विशेष महत्व है। इस वर्ष, बीकानेर के औद्योगिक क्षेत्रों में भी पश्चिम बंगाल की इस परंपरा की झलक देखने को मिल रही है। बंगाली श्रमिकों ने दुर्गा अष्टमी का त्योहार धूमधाम से मनाने के लिए बड़े-बड़े पंडाल सजाए हैं, जिससे बीकानेर में भी दुर्गा पूजा की धूम है।
बीकानेर में दुर्गा पूजा: बंगाल की संस्कृति की छटा
नवरात्रि के पावन पर्व को लेकर पूरे देश में उत्साह है। इसी बीच, पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा की छटा बीकानेर के औद्योगिक क्षेत्रों में भी देखने को मिल रही है। बीकानेर के बीछवाल, करणी, खारा और मुरलीधर व्यास कॉलोनी जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में बंगाली श्रमिकों द्वारा बड़े-बड़े पंडाल लगाए गए हैं।
यहां रहने वाले बंगाली श्रमिक पिछले कई वर्षों से इस परंपरा को जीवंत रखते हुए, दुर्गा अष्टमी का त्योहार उसी भव्यता से मनाते हैं जैसे बंगाल में मनाया जाता है। इस आयोजन में मां दुर्गा की बड़ी-बड़ी प्रतिमाओं के साथ ही गणेश, लक्ष्मी, शिव, कार्तिकेय और सरस्वती माता की प्रतिमाएं भी स्थापित की जाती हैं।
32 वर्षों से बीकानेर में मूर्तियों का निर्माण
बीकानेर में दुर्गा पूजा की सजावट के पीछे मूर्तिकार बबलू मालाकार का महत्वपूर्ण योगदान है, जो पिछले 32 सालों से लगातार पश्चिम बंगाल से यहां आकर मूर्तियां बना रहे हैं। बबलू मालाकार ने इस साल भी बीकानेर के विभिन्न क्षेत्रों में 8 बड़े पंडालों के लिए मां दुर्गा की भव्य प्रतिमाओं के सेट तैयार किए हैं। ये मूर्तियां विशेष रूप से नदियों की मिट्टी, लकड़ी और घास से बनाई जाती हैं, जो पर्यावरण के अनुकूल होती हैं।
बबलू मालाकार का कहना है कि उनकी बनाई प्रतिमाएं दुर्गा पूजा के लिए 35,000 से 50,000 रुपये तक के सेट में बेची जाती हैं। उनका यह काम रक्षाबंधन के बाद से शुरू होता है, जब गणेश चतुर्थी के लिए गणेश प्रतिमाओं का निर्माण किया जाता है। इसके बाद वे दुर्गा अष्टमी के लिए मां दुर्गा की मूर्तियां और दीपावली के लिए काली माता की प्रतिमाएं भी बनाते हैं।
बंगाली समाज के सहयोग से सजाए गए पंडाल
बबलू मालाकार अकेले नहीं हैं, उनके साथ उनके सहयोगी कलाकार भी इस काम में उनका पूरा साथ देते हैं। बीकानेर के औद्योगिक क्षेत्रों में रहने वाले बंगाली श्रमिकों के साथ मिलकर, ये कलाकार मां दुर्गा के भव्य पंडाल सजाने में जुटे हुए हैं। इन पंडालों में बंगाल की पारंपरिक सजावट की छटा साफ देखी जा सकती है।
साथ ही, नौ दिन की दुर्गा पूजा के बाद नवमी के दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, जिसके बाद दशहरा के दिन मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन कर दिया जाता है। विसर्जन के समय भी बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं और मां दुर्गा को विदाई दी जाती है।
दुर्गा पूजा की धूमधाम से बीकानेर में बंगाल का अनुभव
बीकानेर में इस दुर्गा पूजा ने स्थानीय निवासियों को भी बंगाल की संस्कृति का अनुभव कराया है। यहां के औद्योगिक क्षेत्रों में रहने वाले बंगाली श्रमिकों ने अपनी संस्कृति और परंपराओं को बीकानेर में जीवंत बनाए रखा है। बीकानेर में बसे बंगाली समाज के लोग न केवल दुर्गा पूजा को धूमधाम से मनाते हैं, बल्कि इस त्योहार के माध्यम से वे अपनी संस्कृति को स्थानीय लोगों के साथ साझा भी करते हैं।
नदियों की मिट्टी से बनी प्रतिमाएं: पर्यावरण संरक्षण की दिशा में पहल
इस बार बीकानेर में जो प्रतिमाएं बनाई गई हैं, वे नदियों की मिट्टी और प्राकृतिक सामग्रियों से तैयार की गई हैं। यह एक महत्वपूर्ण पहल है, क्योंकि इससे पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचता। विसर्जन के बाद ये प्रतिमाएं पानी में आसानी से घुल जाती हैं और किसी भी प्रकार का प्रदूषण नहीं फैलता।
कला और संस्कृति का अद्भुत मेल
बीकानेर में दुर्गा पूजा केवल धार्मिक आयोजन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कला और संस्कृति का एक अद्भुत मेल है। मूर्तियों की भव्यता और पंडालों की सजावट दर्शाती है कि कैसे बंगाल की संस्कृति को राजस्थान में जीवंत रूप दिया जा रहा है। बंगाली समाज की यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था को प्रदर्शित करती है, बल्कि इसमें उनकी कला, मेहनत और लगन का भी योगदान है।
दशहरा के दिन विसर्जन: भावपूर्ण विदाई का आयोजन
दुर्गा पूजा के नौ दिनों के उत्सव के बाद दशहरा के दिन मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है। यह समय होता है भावनाओं से भरी विदाई का, जब लोग मां दुर्गा से अगले वर्ष फिर से आने का आह्वान करते हैं। विसर्जन के समय भक्ति और उल्लास का अद्भुत समागम देखने को मिलता है।
बीकानेर के औद्योगिक क्षेत्रों में बंगाली समुदाय द्वारा मनाया जा रहा दुर्गा पूजा उत्सव न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह कला, संस्कृति और परंपराओं का अद्भुत मेल भी है। इस आयोजन ने स्थानीय लोगों को बंगाल की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से रूबरू कराया है। नदियों की मिट्टी से बनी प्रतिमाएं पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम हैं।