स्वामी रामभद्राचार्य के खिलाफ FIR की मांग खारिज, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दी राहत


के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा  2024-10-09 05:32:16



स्वामी रामभद्राचार्य के खिलाफ FIR की मांग खारिज, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दी राहत

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में प्रसिद्ध हिंदू संत और पद्म विभूषण से सम्मानित स्वामी रामभद्राचार्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की याचिका को खारिज कर दिया है। याचिका में उनके द्वारा कथित तौर पर अनुसूचित जाति समुदायों के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियां करने का आरोप लगाया गया था। यह मामला सोशल मीडिया पर वायरल हुई उनकी टिप्पणियों से जुड़ा था, जिसे लेकर काफी विवाद हुआ था।

विस्तृत रिपोर्ट:

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में स्वामी रामभद्राचार्य के खिलाफ एक प्राथमिकी (FIR) दर्ज करने की मांग को खारिज कर दिया। याचिका में स्वामी पर अनुसूचित जाति और जनजाति समुदायों के खिलाफ कथित आपत्तिजनक टिप्पणियां करने का आरोप लगाया गया था। अदालत ने पाया कि आरोपों के तहत भारतीय दंड संहिता (IPC), अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 के तहत कोई मामला नहीं बनता है।

मामले का इतिहास:

यह मामला जनवरी 2024 का है जब स्वामी रामभद्राचार्य की कुछ टिप्पणियां सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थीं। उनके बयान को लेकर विवाद खड़ा हुआ और कई वर्गों ने इसे जातिगत आधार पर आपत्तिजनक बताया। स्वामी के बयान के बाद उनकी आलोचना शुरू हुई, जिसके बाद उन्होंने सफाई दी कि उनके बयान को गलत संदर्भ में लिया गया है और उनका इरादा किसी जाति या वर्ग का अपमान करने का नहीं था।

प्रयागराज कोर्ट में याचिका:

फरवरी 2024 में प्रयागराज की एक ट्रायल कोर्ट में प्रकाश चंद्र नामक याचिकाकर्ता ने स्वामी रामभद्राचार्य के खिलाफ एक आपराधिक शिकायत दर्ज करने की मांग की। याचिका के अनुसार, स्वामी ने ऐसे बयान दिए थे जो आपराधिक षड्यंत्र, वर्गों के बीच दुश्मनी पैदा करने, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने, और धमकी देने जैसे गंभीर आरोपों के तहत आते हैं। याचिका में भारतीय दंड संहिता (IPC), SC/ST एक्ट और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत कार्रवाई की मांग की गई थी।

ट्रायल कोर्ट का फैसला:

प्रयागराज की अदालत ने इस याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया था कि यह न्यायालय में सुनवाई योग्य नहीं है। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा धारा 156(3) CrPC के तहत एफआईआर दर्ज करने की मांग समुदाय की ओर से नहीं की जा सकती, क्योंकि SC/ST एक्ट के तहत सुरक्षा व्यक्तिगत रूप से होती है, न कि पूरी समुदाय के लिए।

इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील:

इसके बाद प्रकाश चंद्र ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की। उन्होंने अपने आरोपों को दोहराते हुए कहा कि स्वामी के बयान अनुसूचित जाति समुदाय के खिलाफ थे और उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज होने चाहिए। इस पर, स्वामी रामभद्राचार्य और उत्तर प्रदेश सरकार (प्रतिवादी) ने विरोध किया और कहा कि स्वामी द्वारा दिए गए बयान को कई तरीकों से व्याख्या किया जा सकता है, लेकिन इसका आपराधिक मामला बनना संभव नहीं है।

हाईकोर्ट का फैसला:

अक्टूबर 2024 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में ट्रायल कोर्ट के निर्णय को सही ठहराते हुए याचिका को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव ने कहा कि याचिका में लगाए गए आरोपों के तहत भारतीय दंड संहिता (IPC), अनुसूचित जाति और जनजाति अधिनियम, और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की कोई धारा लागू नहीं होती। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 156(3) CrPC के तहत कोई भी व्यक्ति समुदाय की ओर से याचिका दाखिल नहीं कर सकता, जब तक कि यह व्यक्तिगत सुरक्षा से जुड़ा मामला न हो।

कानूनी प्रावधान और उनकी व्याख्या:

अदालत ने अपने फैसले में यह भी कहा कि अनुसूचित जाति और जनजाति अधिनियम, 1989 के तहत जो सुरक्षा दी जाती है, वह व्यक्तिगत होती है, न कि पूरे समुदाय के लिए। इसलिए, इस मामले में एफआईआर दर्ज करने की मांग गैर-व्यावहारिक थी। अदालत ने यह भी कहा कि स्वामी रामभद्राचार्य द्वारा दिए गए बयान धार्मिक कार्यक्रम के दौरान दिए गए थे और उनके विभिन्न व्याख्याएं हो सकती हैं, लेकिन इन्हें आपराधिक मानना उचित नहीं है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले से स्वामी रामभद्राचार्य को बड़ी राहत मिली है। यह मामला यह दिखाता है कि कानून और अदालतें केवल आरोपों के आधार पर कार्रवाई नहीं करतीं, बल्कि ठोस कानूनी आधारों पर फैसले लेती हैं। अदालत ने यह भी सुनिश्चित किया कि जातिगत और धार्मिक विवादों में कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो।


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