सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना पर पुनर्विचार याचिका की खारिज, व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं


के कुमार आहूजा  2024-10-06 08:08:20



सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना पर पुनर्विचार याचिका की खारिज, व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं

चुनावी वित्त पोषण में पारदर्शिता और गुप्त दान के विवाद के बीच, सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को चुनौती देने वाली पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया। यह निर्णय 15 फरवरी के उस फैसले की पुष्टि करता है जिसमें कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार दिया था। आइए जानते हैं कि इस योजना के खात्मे का क्या अर्थ है और किसने इस फैसले को चुनौती दी थी।

पृष्ठभूमि:

चुनावी बॉन्ड योजना, जिसे 2017 में वित्त अधिनियम के माध्यम से पेश किया गया था, का उद्देश्य राजनीतिक दलों को धन संग्रह के लिए एक वैध और पारदर्शी साधन प्रदान करना था। इस योजना के तहत, नागरिक और संगठन स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से बॉन्ड खरीद सकते थे और इसे अपने पसंदीदा राजनीतिक दलों को दान कर सकते थे। इन दानों की प्रकृति गुप्त रखी जाती थी, जिससे दाता की पहचान सार्वजनिक नहीं होती थी।

चुनावी बॉन्ड योजना के तहत किए गए दान को आम तौर पर राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी फंडिंग के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। हालांकि, इस योजना की गुप्त दान वाली प्रकृति को कई समूहों द्वारा लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताया गया था।

फरवरी 2024 का सुप्रीम कोर्ट का फैसला:

15 फरवरी 2024 को, सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित कर दिया और इसकी गुप्त प्रकृति को अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन बताया। कोर्ट ने कहा कि यह योजना राजनीतिक दान में पारदर्शिता की कमी को बढ़ावा देती है, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था में खतरनाक है। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को सभी राजनीतिक दलों द्वारा 2019 से अब तक प्राप्त दानों की जानकारी चुनाव आयोग को प्रस्तुत करनी होगी।

पुनर्विचार याचिका और सुप्रीम कोर्ट का ताजा निर्णय:

इस फैसले के खिलाफ एडवोकेट मैथ्यूज जे नेदुम्पारा ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। उनका तर्क था कि सुप्रीम कोर्ट ने संसद की विधायी शक्तियों का उल्लंघन किया है और चुनावी बॉन्ड योजना के सकारात्मक पहलुओं को नजरअंदाज किया गया। याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना था कि योजना ने काले धन पर नियंत्रण लगाने और राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने की कोशिश की थी। उन्होंने अदालत से पुनर्विचार की मांग की।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ, जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और अन्य चार न्यायाधीश शामिल थे, ने इस पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि याचिका में कोई "स्पष्ट त्रुटि" नहीं है जो पुनर्विचार का कारण बने। इसके साथ ही, अदालत ने पुनर्विचार याचिका को खुली अदालत में सुनने की याचिका को भी खारिज कर दिया।

चुनावी बॉन्ड योजना की असंवैधानिकता: 

सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि चुनावी बॉन्ड योजना के तहत गुप्त दान लोकतंत्र में पारदर्शिता के सिद्धांत के खिलाफ है। इससे जनता को यह जानने का अधिकार नहीं मिलता कि राजनीतिक दलों को कौन फंड कर रहा है।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश: 

कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को आदेश दिया कि वे 2019 से अब तक राजनीतिक दलों को दिए गए सभी दानों का विवरण चुनाव आयोग को सौंपे। इससे चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ने की संभावना है।

योजना के समर्थन में तर्क: 

पुनर्विचार याचिका में तर्क दिया गया कि योजना ने काले धन के प्रभाव को कम करने की कोशिश की थी और इसकी गुप्तता ने दाताओं को कुछ सुरक्षा दी थी। इसके अलावा, याचिका में यह दावा भी किया गया कि संसद की विधायी और कार्यकारी शक्तियों का सम्मान किया जाना चाहिए।

आगे की राह: 

इस फैसले के बाद चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता की मांग और बढ़ सकती है, और राजनीतिक दलों के वित्त पोषण के तरीकों पर अधिक निगरानी हो सकती है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि राजनीतिक दान में गुप्तता की कोई जगह नहीं होनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला चुनावी वित्त पोषण में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। जबकि चुनावी बॉन्ड योजना के समर्थकों का मानना था कि यह काले धन पर नियंत्रण लगाने का एक तरीका था, अदालत ने इसे लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ माना। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राजनीतिक दल इस फैसले का पालन कैसे करते हैं और क्या यह निर्णय भविष्य में चुनावी सुधारों का मार्ग प्रशस्त करेगा।


global news ADglobal news ADglobal news AD