महाराष्ट्र में आदिवासी विधायकों का अद्वितीय विरोध: सरकार के फैसले पर मचा हंगामा


  2024-10-05 23:12:32



महाराष्ट्र में आदिवासी विधायकों का अद्वितीय विरोध: सरकार के फैसले पर मचा हंगामा

क्या आपने कभी सोचा है कि विधायकों का विरोध इतना उग्र हो सकता है कि वे खुद को जोखिम में डाल दें? महाराष्ट्र के विधानसभा में आदिवासी विधायकों ने कुछ ऐसा ही किया। आदिवासी समुदाय के अधिकारों के लिए वे जिस तरह से लड़े, उसने न केवल राज्य सरकार को चौंका दिया, बल्कि पूरे राज्य की जनता का ध्यान भी आकर्षित किया। इस रिपोर्ट में हम आपको इस घटनाक्रम की पूरी जानकारी देंगे और बताएंगे कि कैसे आदिवासी विधायकों ने सरकार के एक फैसले के खिलाफ अनोखा प्रदर्शन किया।

घटना का विवरण:

महाराष्ट्र विधानसभा के उपाध्यक्ष नरहरी ज़िरवाल की अगुवाई में सात से आठ आदिवासी विधायकों ने शुक्रवार को मुंबई के मंत्रालय में तीसरी मंजिल से छलांग लगाकर सुरक्षा जाल में कूदते हुए अपना विरोध प्रदर्शन किया। यह विरोध राज्य सरकार द्वारा धनगर समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) श्रेणी में आरक्षण देने के प्रस्ताव के खिलाफ था।

विधायकों का कहना था कि सरकार द्वारा धनगर और धनगढ़ समुदाय को एक ही मानने की योजना न केवल आदिवासियों के अधिकारों का हनन है, बल्कि यह उनके भविष्य के साथ भी खिलवाड़ है। जब यह प्रदर्शन हुआ, तब मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक मंत्रालय के सातवें फ्लोर पर चल रही थी। नाराज विधायकों ने न केवल छलांग लगाई बल्कि कुछ कागज भी फेंके, जिससे विरोध और उग्र हो गया।

प्रदर्शन का कारण:

विधायकों का आरोप था कि मुख्यमंत्री शिंदे ने उन्हें इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा के लिए समय नहीं दिया। उन्होंने कहा कि उन्होंने गुरुवार को सात घंटे से अधिक समय तक मुख्यमंत्री से मिलने की प्रतीक्षा की, लेकिन कोई वार्ता नहीं हो सकी। आदिवासी विधायकों ने धनगर समुदाय को ST श्रेणी में आरक्षण देने के मुद्दे पर खुली चर्चा की मांग की, लेकिन उनकी मांग को नजरअंदाज किया गया।

विधायकों का बयान:

उपाध्यक्ष नरहरी ज़िरवाल ने कहा, "हम आदिवासी पहले हैं, और विधायक या सांसद बाद में। हमारा यह कदम हमारे समुदाय के बड़े हित में है, ताकि हमारे बच्चों का भविष्य बर्बाद न हो।" उन्होंने कहा कि PESA एक्ट के तहत भर्ती किए गए आदिवासी युवाओं को नौकरी से हटाने के प्रयास किए जा रहे हैं, और यह उनके भविष्य के साथ अन्याय है।

विरोध की गंभीरता:

प्रदर्शन के दौरान ज़िरवाल का रक्तचाप अचानक बढ़ गया, जिसके बाद डॉक्टरों की टीम को बुलाया गया। पुलिस ने विधायकों को शांत करने का प्रयास किया, लेकिन वे अपने फैसले पर अडिग रहे और जोरदार नारेबाजी करते हुए दूसरी मंजिल पर धरना शुरू कर दिया। पुलिस अधिकारियों और मंत्रालय के कर्मचारियों को स्थिति को नियंत्रित करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।

प्रदर्शन का राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव:

यह विरोध प्रदर्शन महाराष्ट्र में धनगर आरक्षण पर चल रही बहस को और भी अधिक उग्र बना गया है। धनगर समुदाय लंबे समय से ST श्रेणी में आरक्षण की मांग कर रहा है, जबकि आदिवासी विधायक इसका कड़ा विरोध कर रहे हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से अनुसूचित जनजातियों को मिलने वाले आरक्षण के अधिकारों का हनन होगा और वे अपने समुदाय के युवाओं के लिए सुरक्षित नौकरियों से वंचित रह जाएंगे।

इसके अलावा, विधायक इस बात से भी नाराज थे कि PESA एक्ट के तहत भर्ती किए गए आदिवासी युवाओं को घर भेजा जा रहा है। उनका कहना था कि इन युवाओं के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे।

मौजूदा स्थिति और आगे का रास्ता:

विधायकों का कहना था कि जब तक उन्हें न्याय नहीं मिलेगा, उनका विरोध जारी रहेगा। उन्होंने साफ कर दिया है कि आदिवासी समुदाय के अधिकारों के लिए वे कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हैं। इस घटनाक्रम के बाद मुख्यमंत्री शिंदे और उनकी सरकार पर दबाव और बढ़ गया है कि वे इस मुद्दे को सुलझाने के लिए ठोस कदम उठाएं।

इस बीच, धनगर आरक्षण पर राज्य सरकार के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए एक और बैठक बुलाई जा सकती है। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार इस मामले को किस तरह से संभालेगी, क्योंकि धनगर और आदिवासी समुदायों के बीच इस मुद्दे को लेकर तनाव बढ़ता जा रहा है।

महाराष्ट्र में आदिवासी विधायकों का यह विरोध न केवल एक असाधारण घटना थी, बल्कि इसने राज्य सरकार और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के सामने एक बड़ी चुनौती भी पेश की है। धनगर समुदाय को ST आरक्षण देने का मुद्दा आने वाले दिनों में राजनीतिक और सामाजिक चर्चाओं का मुख्य विषय बना रहेगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस संवेदनशील मुद्दे का समाधान कैसे करती है और क्या आदिवासी विधायक अपने विरोध को रोकते हैं या नहीं।


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