शिक्षा निदेशालय में मौन सत्याग्रह: मंत्रालयिक स्टाफ की मांगों पर शिक्षा विभागीय संघ का विरोध


के कुमार आहूजा  2024-10-05 11:15:41



शिक्षा निदेशालय में मौन सत्याग्रह: मंत्रालयिक स्टाफ की मांगों पर शिक्षा विभागीय संघ का विरोध

राजस्थान के शिक्षा विभाग में गहराते असंतोष की लहर सोमवार को एक नए चरण में पहुंच जाएगी, जब शिक्षा विभागीय कर्मचारी संघ बीकानेर स्थित शिक्षा निदेशालय में मौन सत्याग्रह करेंगे। ये विरोध प्रदर्शन कर्मचारियों के लिए सिर्फ कामकाजी व्यवस्था का मामला नहीं है, बल्कि यह उनके अधिकारों और गरिमा की लड़ाई बन गई है।

विस्तृत रिपोर्ट:

शिक्षा विभागीय कर्मचारी संघ ने 7 अक्टूबर 2024 को शिक्षा निदेशालय में एक शांतिपूर्ण लेकिन प्रभावशाली मौन सत्याग्रह करने की घोषणा की है। इस विरोध का प्रमुख उद्देश्य शिक्षा विभाग में कर्मचारियों की पदोन्नति, डीपीसी (विभागीय पदोन्नति समिति) और मंत्रालयिक संवर्ग के पदों पर हो रहे भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाना है।

संघ की प्रमुख मांगें:

शिक्षा विभागीय कर्मचारी संघ के प्रदेशाध्यक्ष कमल नारायण आचार्य के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने माननीय शिक्षा मंत्री मदन दिलावर से वार्ता कर अपनी मांगों का ज्ञापन सौंपा। यह ज्ञापन शिक्षा विभाग में लंबे समय से चले आ रहे कई मुद्दों पर आधारित था, जिनमें प्रमुख थे:

मंत्रालयिक संवर्ग के साथ दोहरा व्यवहार: संघ का आरोप है कि शिक्षा विभाग के मंत्रालयिक कर्मचारियों के साथ लगातार भेदभाव हो रहा है। डीपीसी की प्रक्रिया में अन्य विभागों में नियमितता है, जबकि शिक्षा विभाग के मंत्रालयिक संवर्ग के लिए डीपीसी नहीं की जा रही है।

शैक्षिक स्टाफ की प्रतिनियुक्ति: राज्य सरकार के निर्देश पर राजस्थान पाठ्य पुस्तक मंडल में मंत्रालयिक संवर्ग के पदों पर शैक्षिक स्टाफ की प्रतिनियुक्ति की गई है। संघ का कहना है कि यह प्रक्रिया न केवल अनुचित है, बल्कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE) का उल्लंघन भी है। इस फैसले से कार्यालयों की कार्य पद्धति और शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।

कार्यालय बचाओ अभियान: संघ ने इस अभियान के तहत यह मांग की है कि शैक्षिक स्टाफ को मंत्रालयिक पदों से हटाकर उनके मूल कार्य पर लौटाया जाए और मंत्रालयिक स्टाफ को उनके संबंधित पदों पर नियुक्त किया जाए।

प्रारंभिक वार्ता और ज्ञापन:

30 सितंबर 2024 को संघ ने एक ज्ञापन शिक्षा निदेशालय को सौंपा, जिसमें उन्होंने इन सभी मुद्दों पर ध्यान आकर्षित किया। इसके बाद 1 अक्टूबर 2024 को एक और नोटिस जारी किया गया, जिसमें मंत्रालयिक संवर्ग की नियमित डीपीसी और समीक्षा डीपीसी कराने की मांग की गई। हालांकि, संघ का कहना है कि इन मुद्दों पर कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया गया है, जिसके कारण उन्हें मौन सत्याग्रह का रास्ता अपनाना पड़ा है।

मौन सत्याग्रह की योजना:

इस मौन सत्याग्रह का आयोजन 7 अक्टूबर 2024 को शिक्षा निदेशालय, बीकानेर के परिसर में भोजनावकाश के दौरान किया जाएगा। इस सत्याग्रह के जरिए कर्मचारियों ने स्पष्ट किया है कि वे अपने मुद्दों को शांतिपूर्ण ढंग से राज्य सरकार के समक्ष रखना चाहते हैं, लेकिन अगर उनकी मांगें पूरी नहीं होती हैं, तो इसका परिणाम गंभीर हो सकता है। संघ ने यह भी चेतावनी दी है कि अगर उनकी समस्याओं का समाधान नहीं किया गया, तो इसकी पूरी जिम्मेदारी राज्य सरकार और शिक्षा प्रशासन की होगी।

प्रतिनिधिमंडल और प्रमुख नेता:

इस विरोध के लिए शिक्षा विभागीय कर्मचारी संघ के प्रदेशाध्यक्ष कमल नारायण आचार्य के नेतृत्व में एक सशक्त प्रतिनिधिमंडल ने शिक्षा मंत्री से मुलाकात की थी। इस प्रतिनिधिमंडल में कई अन्य प्रमुख नेता भी शामिल थे:

मदनमोहन व्यास: प्रदेश संस्थापक

गिरजा शंकर आचार्य: कार्यकारी प्रदेशाध्यक्ष

नवरतन जोशी: प्रदेश कोषाध्यक्ष

समस्याओं का सार:

शिक्षा विभाग के मंत्रालयिक संवर्ग के कर्मचारियों का कहना है कि राज्य सरकार और शिक्षा प्रशासन जानबूझकर उनके हितों को नजरअंदाज कर रहा है। डीपीसी की प्रक्रिया का न होना और शैक्षिक स्टाफ की प्रतिनियुक्ति उनके अधिकारों का हनन है। संघ का कहना है कि शिक्षा विभाग में मंत्रालयिक संवर्ग की उचित भूमिका सुनिश्चित किए बिना कामकाज सुचारू रूप से नहीं चल सकता।

संघ के नेताओं ने यह भी स्पष्ट किया है कि वे अपने कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, लेकिन इसके लिए उन्होंने मौन सत्याग्रह जैसे शांतिपूर्ण और संवैधानिक तरीके को चुना है।

विरोध के पीछे का उद्देश्य:

संघ के इस मौन सत्याग्रह का उद्देश्य न केवल अपनी मांगों को राज्य सरकार तक पहुंचाना है, बल्कि यह यह भी संदेश देना है कि अगर कर्मचारियों के साथ अन्याय किया जाएगा, तो वे चुप नहीं बैठेंगे। हालांकि, विरोध शांतिपूर्ण रहेगा, लेकिन संघ ने यह भी संकेत दिया है कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं होती हैं, तो आगे चलकर और बड़े कदम उठाए जा सकते हैं।

संघ ने यह भी कहा है कि शिक्षा विभाग में फैली अव्यवस्थाओं को ठीक करने का यही सही समय है। अगर सरकार और प्रशासन ने इस मौके पर ध्यान नहीं दिया, तो शिक्षा विभाग की कार्य प्रणाली और अधिक प्रभावित हो सकती है।

राजस्थान के शिक्षा विभागीय कर्मचारी संघ द्वारा उठाई गई मांगें मंत्रालयिक कर्मचारियों के हक और अधिकारों से जुड़ी हैं। मौन सत्याग्रह का यह कदम न केवल उनके असंतोष को दिखाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कर्मचारी अपने अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से लड़ाई लड़ रहे हैं। सरकार और प्रशासन को अब ध्यान देना होगा कि इस विरोध को अनदेखा करना शिक्षा प्रणाली के लिए भी घातक साबित हो सकता है।

शिक्षा निदेशालय में होने वाला यह मौन सत्याग्रह राज्य के शिक्षा कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है, जो उनके भविष्य की दशा और दिशा तय करेगा।


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