4 महीने की उम्र में हुई बाल विवाह की शिकार, 20 साल बाद मिली आज़ादी - जोधपुर कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
के कुमार आहूजा 2024-10-04 17:28:08
4 महीने की उम्र में हुई बाल विवाह की शिकार, 20 साल बाद मिली आज़ादी - जोधपुर कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
अनीता, जो मात्र 4 महीने की उम्र में बाल विवाह का शिकार हुई थी, 20 साल के लंबे संघर्ष के बाद अब इस बंधन से मुक्त हो चुकी है। जोधपुर के पारिवारिक न्यायालय के न्यायाधीश वरुण तलवार ने इस मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए अनीता का बाल विवाह रद्द कर दिया। यह निर्णय न केवल अनीता के लिए बल्कि समाज के लिए भी एक नया उदाहरण पेश करता है।
बाल विवाह: समाज का एक पुराना जाल
भारत के कई हिस्सों में बाल विवाह एक पुरानी और गंभीर समस्या रही है। राजस्थान जैसे राज्यों में यह कुप्रथा आज भी देखने को मिलती है, जहां बच्चे अपनी मासूमियत के साथ इस सामाजिक बंधन में बांध दिए जाते हैं। ऐसा ही एक मामला था जोधपुर के ग्रामीण क्षेत्र से आने वाली अनीता का, जिसका बाल विवाह मात्र चार महीने की उम्र में हो गया था। बाल विवाह के इस बंधन में फंसी अनीता को अपने जीवन के 20 साल तक इस विवाह का बोझ उठाना पड़ा।
अनीता का संघर्ष और बाल विवाह से आज़ादी की कहानी
अनीता, जो एक किसान परिवार की बेटी है, अपने बचपन से ही बाल विवाह के बंधन में फंसी रही। समय के साथ, अनीता पर उसके ससुराल वालों का दबाव बढ़ने लगा कि उसका 'गौना' किया जाए और उसे ससुराल भेजा जाए। इस स्थिति से तंग आकर अनीता ने बाल विवाह के खिलाफ आवाज़ उठाने का साहस किया।
कृति भारती और सारथी ट्रस्ट का योगदान: अनीता की कहानी ने तब नया मोड़ लिया जब उसे जोधपुर के सारथी ट्रस्ट के कृति भारती के अभियान के बारे में पता चला, जो बाल विवाह को समाप्त करने के लिए काम कर रही थीं। अनीता ने कृति से संपर्क किया और अपनी तकलीफें बताईं। कृति ने तुरंत अनीता के बाल विवाह को निरस्त कराने के लिए कानूनी प्रक्रिया शुरू की। कृति ने अनीता की तरफ से जोधपुर के पारिवारिक न्यायालय में केस दाखिल किया और अदालत के सामने बाल विवाह से जुड़े तथ्यों और कानूनों को पेश किया।
न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला
पारिवारिक न्यायालय के न्यायाधीश वरुण तलवार ने इस मामले में ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए अनीता का 20 साल पुराना बाल विवाह रद्द कर दिया। यह फैसला बाल विवाह के खिलाफ संघर्ष करने वालों के लिए एक बड़ा प्रोत्साहन है। न्यायाधीश ने कहा कि बाल विवाह एक अपराध है जो बच्चों के भविष्य को बर्बाद करता है।
उन्होंने यह भी कहा कि अगर किसी भी बालिका या बालक को यह विवाह स्वीकार्य नहीं है, तो वे इसे रद्द कराने का अधिकार रखते हैं। इसके साथ ही न्यायाधीश ने समाज के स्तर पर भी बाल विवाह को समाप्त करने के लिए बड़े प्रयासों की आवश्यकता पर जोर दिया।
बाल विवाह निरस्तीकरण के साथ मुआवज़ा भी
कोर्ट ने न केवल अनीता का बाल विवाह रद्द किया, बल्कि उसके पति को यह आदेश भी दिया कि वह अनीता के कानूनी खर्चों का भुगतान करे। यह फैसला एक नई दिशा में समाज को ले जाने वाला है, जहां बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं का न केवल अंत होगा, बल्कि इससे प्रभावित लोगों को न्याय भी मिलेगा।
बाल विवाह उन्मूलन की दिशा में सार्थक प्रयास
अनीता का केस केवल एक उदाहरण है कि किस प्रकार कृति भारती और उनकी संस्था सारथी ट्रस्ट ने बाल विवाह उन्मूलन के लिए महत्वपूर्ण काम किया है। अनीता का विवाह रद्द करने के बाद अब कृति और उनकी टीम अनीता के पुनर्वास के लिए भी काम कर रही हैं। उनका लक्ष्य है कि बाल विवाह केवल इतिहास के पन्नों तक सीमित रह जाए और वर्तमान समाज इससे मुक्त हो।
अनीता की प्रतिक्रिया:
इस फैसले के बाद अनीता ने कहा, "कृति दीदी की मदद से मैं अब बाल विवाह के बंधन से मुक्त हो चुकी हूं। अब मैं अपने पैरों पर खड़ी होकर अपने सपनों को पूरा करूंगी।" यह बयान इस बात का प्रतीक है कि किस प्रकार बाल विवाह जैसी कुप्रथा से लड़ने वाले व्यक्ति भी नए आत्मविश्वास से भर जाते हैं।
बाल विवाह और समाज की जिम्मेदारी
इस ऐतिहासिक फैसले ने एक बार फिर से समाज को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि बाल विवाह जैसे अपराध को खत्म करने के लिए हमें सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है। यह सिर्फ एक कानून की लड़ाई नहीं है, बल्कि समाज की मानसिकता में बदलाव की भी आवश्यकता है।
न्यायाधीश का संदेश:
न्यायाधीश वरुण तलवार ने समाज से अपील की कि बाल विवाह को समाप्त करने के लिए सभी को मिलकर काम करना होगा। यदि किसी लड़की या लड़के को बाल विवाह स्वीकार्य नहीं है, तो उन्हें यह विवाह रद्द कराने का पूरा अधिकार है।
बाल विवाह से मुक्त समाज की ओर
अनीता की यह कहानी हमें यह संदेश देती है कि किस प्रकार कड़ी मेहनत, साहस और सही मार्गदर्शन से एक व्यक्ति बाल विवाह जैसे कुप्रथाओं से बाहर निकल सकता है। यह केवल अनीता की जीत नहीं है, बल्कि उन लाखों बच्चों की जीत है जो अभी भी बाल विवाह के बंधन में फंसे हुए हैं। यह फैसला उन परिवारों के लिए भी एक सख्त चेतावनी है जो अब भी अपने बच्चों को इस कुप्रथा में धकेलते हैं।