पांच भाषाओं को मिला क्लासिकल भाषा का दर्जा: भारत की सांस्कृतिक धरोहर को नई पहचान


के कुमार आहूजा  2024-10-04 08:59:54



पांच भाषाओं को मिला क्लासिकल भाषा का दर्जा: भारत की सांस्कृतिक धरोहर को नई पहचान

क्या आप जानते हैं कि अब मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली भाषाओं को क्लासिकल भाषा का दर्जा मिल गया है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को इस ऐतिहासिक निर्णय को मंजूरी दी। यह कदम भारत की सांस्कृतिक और भाषाई धरोहर को संरक्षित और समृद्ध करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। आइए जानते हैं इस ऐतिहासिक फैसले की खास बातें और इसके पीछे की वजहें।

ऐतिहासिक फैसला: पाँच भाषाओं को मिला क्लासिकल भाषा का दर्जा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली भाषाओं को क्लासिकल भाषा का दर्जा देने का निर्णय लिया। इस फैसले के साथ ये पाँच भाषाएं भारत की सांस्कृतिक और भाषाई धरोहर के एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में मान्यता प्राप्त कर गई हैं। इससे पहले तमिल, संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और ओडिया को यह प्रतिष्ठित दर्जा मिल चुका था।

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस बारे में जानकारी देते हुए कहा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमेशा से भारतीय भाषाओं को महत्व दिया है। आज मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को क्लासिकल भाषा का दर्जा दिया गया है।" इस फैसले से न केवल भाषाओं को सम्मान मिला है, बल्कि भारतीय भाषाओं के महत्व को भी एक बार फिर से विश्व स्तर पर प्रदर्शित किया गया है।

क्लासिकल भाषा का दर्जा मिलने के मानदंड

भारत सरकार ने अक्टूबर 2004 में एक नई श्रेणी के रूप में 'क्लासिकल भाषा' का गठन किया। इसके लिए कुछ प्रमुख मानदंड तय किए गए:

प्राचीनता: भाषा की प्राचीनता और उसके प्राचीन ग्रंथों का इतिहास कम से कम 1,500-2,000 साल पुराना होना चाहिए।

साहित्यिक धरोहर: भाषा का समृद्ध साहित्यिक परंपरा होनी चाहिए, जिसे पीढ़ियों तक उपयोग किया गया हो।

मूल साहित्यिक परंपरा: भाषा का साहित्यिक परंपरा मौलिक होनी चाहिए और किसी अन्य भाषाई समुदाय से उधार न लिया गया हो।

भाषाई निरंतरता: क्लासिकल भाषा और उसकी आधुनिक रूपों के बीच अंतर हो सकता है।

पाली, प्राकृत और मराठी की सांस्कृतिक धरोहर

पाली और प्राकृत जैसी भाषाएं भारत की प्राचीन बौद्ध और जैन परंपराओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। पाली भाषा में बौद्ध धर्मग्रंथ त्रिपिटक की रचना की गई है, जो आज भी बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए पवित्र ग्रंथ है। वहीं, प्राकृत भाषा जैन धर्म के साहित्य और संस्कृति का प्रमुख हिस्सा है।

मराठी भाषा ने भारत की साहित्यिक और सांस्कृतिक परंपराओं में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। मराठी साहित्य में संतों और कवियों की रचनाएँ जैसे संत ज्ञानेश्वर, तुकाराम और अन्य की कविताएँ भारतीय दर्शन और धार्मिक परंपराओं का गहन ज्ञान प्रदर्शित करती हैं।

असमिया और बंगाली की सांस्कृतिक पहचान

असमिया भाषा भारत के पूर्वोत्तर की प्रमुख भाषा है और असम की संस्कृति, साहित्य और परंपराओं का अभिन्न हिस्सा है। असमिया साहित्य और संस्कृति ने महापुरुष शंकरदेव और उनके धार्मिक-सांस्कृतिक योगदान के माध्यम से भारत के सांस्कृतिक इतिहास को समृद्ध किया है।

बंगाली भाषा न केवल भारत बल्कि बांग्लादेश में भी एक प्रमुख भाषा है। बंगाली साहित्य ने रवींद्रनाथ टैगोर जैसे साहित्यकारों के माध्यम से विश्व पटल पर अपनी पहचान बनाई है। टैगोर की रचनाएं और नोबेल पुरस्कार उनके साहित्यिक योगदान का एक प्रमाण है।

सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण

इस ऐतिहासिक फैसले का उद्देश्य केवल भाषाओं को सम्मानित करना नहीं है, बल्कि भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करना भी है। यह निर्णय भारतीय भाषाओं को वैश्विक पटल पर और अधिक पहचान दिलाएगा और आने वाली पीढ़ियों के लिए इन भाषाओं की प्राचीन धरोहर को संरक्षित करने में मदद करेगा।

भारत की भाषाई विविधता और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने के लिए यह कदम एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा। मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली भाषाओं को क्लासिकल भाषा का दर्जा मिलने से न केवल भारतीय भाषाओं का महत्व बढ़ेगा, बल्कि यह देश की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को भी विश्व स्तर पर मान्यता दिलाएगा।


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