वैवाहिक बलात्कार पर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र का बयान: सामाजिक और कानूनी परिणामों का सामना


के कुमार आहूजा  2024-10-04 05:54:51



वैवाहिक बलात्कार पर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र का बयान: सामाजिक और कानूनी परिणामों का सामना

वैवाहिक बलात्कार (marital rape) पर बहस एक संवेदनशील मुद्दा है, जिसने देश में कानूनी और सामाजिक स्तर पर बहस छेड़ दी है। हाल ही में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा कि इस मुद्दे के बहुत दूरगामी सामाजिक और कानूनी प्रभाव होंगे। इस मामले में केवल कानूनी दृष्टिकोण से हल निकालना पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि इसके लिए व्यापक और समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

केंद्र का हलफनामा और सामाजिक प्रभाव

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि वैवाहिक बलात्कार जैसे संवेदनशील मुद्दों पर विचार करते समय यह ध्यान में रखना चाहिए कि यह केवल एक संवैधानिक मुद्दा नहीं है, बल्कि मुख्य रूप से एक सामाजिक सवाल है। सरकार का कहना है कि संसद ने इस मुद्दे के विभिन्न पक्षों पर विचार करने के बाद फैसला किया था कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 में दी गई अपवाद 2 को 2013 के संशोधन के दौरान बनाए रखा जाएगा।

केंद्र का यह भी कहना है कि यदि इस अपवाद को हटा दिया गया, तो इसका विवाह संस्थान पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ेगा। केंद्र ने जोर देते हुए कहा कि यदि अपवाद 2 को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया, तो यह वैवाहिक संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है और विवाह के संस्थान में गंभीर गड़बड़ियों का कारण बन सकता है।

कानूनी प्रावधान और संभावित चुनौतियां

सरकार ने अपने हलफनामे में बताया कि IPC की धारा 375 में वैवाहिक बलात्कार को अपवाद के रूप में माना गया है। 2013 में जब इस धारा में संशोधन किया गया, तब भी इसे हटाया नहीं गया। केंद्र का तर्क है कि ऐसा निर्णय वैवाहिक संबंधों और पारिवारिक ढांचे को बाधित कर सकता है, खासकर जब पारंपरिक समाज में विवाह एक स्थिर संस्था मानी जाती है।

केंद्र ने इस मुद्दे पर न्यायिक समीक्षा करते समय न्यायपालिका से ध्यान देने का अनुरोध किया है कि ऐसा निर्णय जिससे वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित किया जाए, समाज में बड़ा बदलाव ला सकता है। साथ ही, केंद्र ने यह भी कहा कि कानून के इस प्रावधान का दुरुपयोग भी संभव है, जिससे वैवाहिक संबंधों में अधिक अस्थिरता आ सकती है।

सरकार का कहना है कि ऐसे मामले में यह साबित करना भी कठिन हो जाएगा कि सहमति थी या नहीं, क्योंकि यह बहुत ही निजी और संवेदनशील क्षेत्र है, जहां कानूनी और साक्ष्य की जटिलताएं अधिक होती हैं।

संसद का रुख और सामाजिक सुरक्षा

केंद्र ने यह भी कहा कि संसद ने इस मुद्दे पर सभी पक्षों की राय सुनने के बाद 2013 में फैसला लिया था। IPC की धारा 375 में अपवाद 2 बनाए रखने का निर्णय इसलिए लिया गया ताकि विवाह संस्था को किसी भी अनावश्यक कानूनी जटिलताओं से बचाया जा सके।

सरकार का कहना है कि कानून में कोई भी बदलाव विवाह संस्था को कमजोर कर सकता है और समाज में अस्थिरता का कारण बन सकता है। खासकर भारत जैसे देश में जहां पारिवारिक और वैवाहिक संबंधों को एक सामाजिक ढांचे का हिस्सा माना जाता है, वहां वैवाहिक बलात्कार कानून को सीधे तौर पर लागू करना समाज में गहरे बदलावों का कारण बन सकता है।

बहरहाल, केंद्र सरकार का हलफनामा यह स्पष्ट करता है कि वैवाहिक बलात्कार का मुद्दा सिर्फ कानूनी नहीं बल्कि एक गहन सामाजिक प्रश्न है। इस पर कोई भी निर्णय करने से पहले सरकार और न्यायपालिका को समाज, संस्कृति, और पारिवारिक संस्थाओं के व्यापक दृष्टिकोण पर ध्यान देने की जरूरत है। वैवाहिक बलात्कार के मुद्दे पर सरकार का रुख यह दिखाता है कि यह एक जटिल मामला है, जिस पर संतुलित और समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है।


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