56 साल बाद रोहतांग पास से मिला भारतीय वायुसेना के जवान का शव, सहारनपुर में दी अंतिम विदाई


के कुमार आहूजा  2024-10-03 09:32:15



56 साल बाद रोहतांग पास से मिला भारतीय वायुसेना के जवान का शव, सहारनपुर में दी अंतिम विदाई

इतिहास के पन्नों में दबी एक दर्दनाक घटना 56 साल बाद फिर से उजागर हुई है। हिमाचल प्रदेश के रोहतांग पास में 7 फरवरी, 1968 को भारतीय वायुसेना का विमान AN-12 क्रैश हो गया था। उस हादसे में कई जवानों की जान चली गई, लेकिन उनका अंतिम संस्कार नहीं हो सका था। इतने सालों बाद एक जवान मलखान सिंह के अवशेष बरामद हुए हैं, जो उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में उनके पैतृक गांव लाए गए हैं। यह खोज भारतीय सेना की सबसे लंबी चलने वाली तलाशी अभियानों में से एक मानी जा रही है।

घटना की पृष्ठभूमि

1968 में, भारतीय वायुसेना का एक AN-12 विमान लद्दाख के लेह से उड़ान भरते हुए हिमाचल प्रदेश के रोहतांग पास के ऊपर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। विमान में 102 सैनिक और क्रू सदस्य सवार थे। भीषण बर्फीली परिस्थितियों और ऊंचाई के कारण तुरंत राहत और बचाव कार्य असंभव हो गया था। हादसे के बाद वर्षों तक तलाशी अभियान चलता रहा, लेकिन अधिकांश शव और मलबा नहीं मिल सका था।

मलखान सिंह और अन्य जवानों के अवशेष मिलने की घटना

56 सालों बाद, भारतीय सेना के एक सर्च ऑपरेशन के दौरान रोहतांग पास के ऊंचाई वाले इलाकों में कुछ अवशेष मिले, जिनमें सिपाही मलखान सिंह के अवशेष भी शामिल थे। मलखान सिंह भारतीय सेना के उन सैनिकों में से एक थे, जो इस दुखद हादसे में शहीद हो गए थे। इसके अलावा, चार और शहीदों के अवशेष मिले हैं, जिन्हें भारतीय सेना की ओर से सम्मानजनक विदाई दी जा रही है।

सहारनपुर के मलखान सिंह के पार्थिव अवशेषों को आज उनके गांव में लाया गया। पूरा गांव उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए उमड़ पड़ा। वर्षों बाद उनका शव गांव पहुंचने पर लोगों की आंखों में आंसू थे, लेकिन दिलों में गर्व भी था कि उनके गांव का वीर जवान देश की सेवा करते हुए शहीद हुआ था।

सर्च ऑपरेशन का महत्व

AN-12 विमान के क्रैश के बाद भारतीय सेना द्वारा चलाया गया तलाशी अभियान भारत का सबसे लंबा और कठिन सर्च ऑपरेशन माना जाता है। पहाड़ों की कठोर जलवायु और खराब परिस्थितियों के कारण सालों तक यह अभियान रुका रहा। लेकिन 2003 में भारतीय सेना ने इसे फिर से शुरू किया, और धीरे-धीरे विमान के कुछ हिस्से और कुछ अवशेष मिलते गए।

सिपाही मलखान सिंह के अवशेष मिलना इस अभियान का महत्वपूर्ण पड़ाव है। सेना के अधिकारीयों का मानना है कि इतने सालों बाद भी इन शहीदों को खोज निकालना न केवल तकनीकी उपलब्धि है बल्कि उनके परिवारों के लिए एक सच्ची श्रद्धांजलि भी है।

परिवार और ग्रामीणों की प्रतिक्रिया

मलखान सिंह के परिवार और गांव वालों के लिए यह क्षण गर्व और शोक का मिश्रण था। परिवार के सदस्यों ने बताया कि इतने सालों बाद भी उन्हें अपने बेटे की यादें ताजा हैं, और वह इस बात से गर्वित हैं कि वह देश की रक्षा करते हुए शहीद हुआ। गांव में पूरे सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया।

सेना की प्रतिक्रिया और भविष्य की योजना

सेना के अधिकारियों ने इस खोज को बड़ी सफलता माना है। उनके अनुसार, यह घटना यह साबित करती है कि सेना अपने शहीदों को कभी नहीं भूलती, और वह हर संभव प्रयास करती है कि उन्हें और उनके परिवारों को न्याय मिले।

सेना ने आगे भी इस क्षेत्र में तलाशी अभियान जारी रखने का निर्णय लिया है, ताकि और भी लापता जवानों के अवशेष खोजे जा सकें और उन्हें उचित सम्मान के साथ विदाई दी जा सके।

मलखान सिंह और उनके साथियों की कहानी भारतीय सेना के शौर्य और बलिदान की प्रतीक है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि देश की रक्षा में हमारे सैनिक कितनी बड़ी कुर्बानियां देते हैं। यह घटना सेना के उन जवानों के प्रति श्रद्धांजलि है, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी, और साथ ही यह उस अपार धैर्य और संघर्ष की भी मिसाल है, जो उनके परिवारों ने इतने सालों तक झेला।


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