मखमल में टाट के पैबंद: बीकानेर में स्वच्छता अभियान के दस साल, फिर भी गंदगी का आलम


के कुमार आहूजा, अजय त्यागी   2024-10-02 18:40:13



मखमल में टाट के पैबंद: बीकानेर में स्वच्छता अभियान के दस साल, फिर भी गंदगी का आलम

♦ स्वच्छता अभियान के दस साल, नहीं बदले जमीनी हालात 

 

स्वच्छ भारत अभियान के दस साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन जमीनी हकीकत क्या है? क्या हमने वाकई स्वच्छता के लक्ष्यों को हासिल किया है, या यह अब भी एक अधूरा सपना है? यह रिपोर्ट आपको बताएगी कि इस ऐतिहासिक पहल के बावजूद धरातल पर क्या बदलाव हुए हैं।

अभियान की शुरुआत और उद्देश्य:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2014 को महात्मा गांधी की जयंती पर स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की। इसका उद्देश्य था 2019 तक भारत को खुले में शौच मुक्त (ODF) बनाना और स्वच्छता के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाना। अभियान के तहत लाखों शौचालय बनाए गए, और सफाई कर्मचारियों की जिम्मेदारी बढ़ाई गई। इस पहल को जन आंदोलन का रूप देने की कोशिश की गई, जिसमें आम जनता से लेकर सिलेब्रिटी तक को जोड़ा गया।

सरकारी आँकड़े और सफलता:

सरकारी रिपोर्टों के अनुसार, स्वच्छ भारत मिशन ने कई उपलब्धियाँ हासिल की हैं। 2019 में सरकार ने घोषणा की कि भारत 100% खुले में शौच से मुक्त हो गया है। इसके तहत 60 करोड़ लोगों के लिए शौचालय की सुविधाएं प्रदान की गईं और ग्रामीण क्षेत्रों में सफाई और स्वच्छता में सुधार हुआ।

जमीनी सच्चाई:

बीकानेर जैसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध शहर में स्वच्छता के लिए किए गए सरकारी और गैर सरकारी प्रयासों के बावजूद, जमीनी हकीकत अभी भी बेहद चिंताजनक है। गली-गली में फैली गंदगी, कचरे के ढेर, और बदतर होती स्वास्थ्य स्थितियाँ यह सवाल उठाती हैं कि क्या वाकई में स्वच्छता अभियान ने कुछ बदल दिया है?

पीबीएम अस्पताल का स्वच्छता हाल

बीकानेर संभाग के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल पीबीएम अस्पताल का हाल यह है कि यहाँ के परिसर में ही गंदगी के ढेर देखे जा सकते हैं। अस्पताल के पीछे मेडिकल कॉलेज जाने वाले रास्ते पर एक डंपिंग यार्ड बना दिया गया है। इस डंपिंग यार्ड में अस्पताल की गंदगी और कचरा डाला जा रहा है। आश्चर्य की बात यह है कि इसी इलाके में पास पानी की प्याऊ भी है, जहाँ से मरीज और उनके रिश्तेदार पानी भरते हैं। कचरे के इस ढेर से उठती बदबू लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गई है।

स्वच्छता अभियान के तहत अस्पताल की साफ-सफाई के लिए बड़े-बड़े ठेके होते हैं, लेकिन सफाई की स्थिति वही है, जैसी पहले थी। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर अस्पताल ही स्वच्छता का मानक नहीं हो सकता तो बाकी शहर से क्या उम्मीद की जा सकती है?

कोठारी हॉस्पिटल: स्वच्छता की अनदेखी

बीकानेर का एक प्रमुख प्राइवेट हॉस्पिटल, कोठारी हॉस्पिटल, जहाँ रोजाना सैकड़ों मरीज इलाज के लिए आते हैं, स्वच्छता के मापदंडों पर खरा नहीं उतरता। हॉस्पिटल के बाहर की स्थिति बेहद खराब है। अस्पताल की चारदीवारी के साथ बहने वाला नाला पूरी तरह गंदगी से भरा हुआ है, जो बीमारियों का प्रसार कर रहा है।

अस्पताल के अंदर तो एयर-कंडीशन और साफ-सफाई का ध्यान रखा गया है, लेकिन बाहरी इलाके में गंदगी के ढेर और गंदे नाले की समस्या पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। अस्पताल प्रशासन द्वारा कोई कदम नहीं उठाया गया, जिससे आने वाले मरीज और उनके रिश्तेदार स्वस्थ्य माहौल में रह सकें।

सेटेलाइट हॉस्पिटल: एक और गंदगी का केंद्र

गजनेर रोड स्थित सेटेलाइट हॉस्पिटल भी साफ-सफाई की समस्या से जूझ रहा है। हॉस्पिटल परिसर को देखने पर बेशक साफ़-सफाई दिखाई देती हो लेकिन मुख्य रोड पर स्थित दुकानों के पीछे गैलरी में कचरे का ढेर लगा हुआ है, जिसे साफ करने के लिए कोई पहल नहीं की गई है। ऐसे में जब स्वच्छता की बात की जाती है, तो यह उदाहरण साबित करता है कि बीकानेर में स्वच्छता अभियान पूरी तरह से लागू नहीं हो पाया है।

मुख्य मार्गों पर फैली गंदगी

स्वच्छता का अभाव सिर्फ अस्पतालों तक सीमित नहीं है। बीकानेर के प्रमुख मुख्य मार्ग, जैसे कोठारी हॉस्पिटल से पहले का क्षेत्र, जस्सूसर गेट से पहले का इलाका, और डूडी-अमन धर्मकांटे के पास मुख्य मार्ग पर भी गंदगी के ढेर देखने को मिलते हैं। यह गंदगी न केवल बीमारियों का स्रोत है, बल्कि आवारा पशुओं के लिए भी खतरनाक है। कचरे में पड़ी पोलिथीन खाने से गाय और अन्य पशु बीमार हो रहे हैं।

इन मार्गों से हजारों लोग रोजाना गुजरते हैं, लेकिन किसी का ध्यान इन गंदगी के ढेरों पर नहीं जाता। प्रशासन की निष्क्रियता और जनता की उदासीनता के कारण यह समस्या और बढ़ती जा रही है।

चौखूंटी पुलिया और अन्य इलाकों की स्थिति

बीकानेर की चौखूंटी पुलिया के नीचे बसे हुए इलाके भी स्वच्छता की कमी से जूझ रहे हैं। यहाँ लगे हुए ट्रांसफार्मर के पास एक डंपिंग यार्ड बनता जा रहा है, जहाँ से कचरा उठाया नहीं जाता बल्कि और भी डाला जाता है।

पवनपुरी क्षेत्र में पी एंड टी क्वाटर्स के आसपास भी ऐसी ही स्थिति देखने को मिलती है। यहाँ भी मुख्य और व्यस्ततम मार्ग पर बारिश का पानी सड़ रहा है और कचरे के ढेर लगे हुए हैं।

स्वच्छता के प्रयासों में जनता की भूमिका

बीकानेर की स्वच्छता की समस्या सिर्फ सरकारी तंत्र की विफलता नहीं है, बल्कि जनता की लापरवाही भी इसका एक बड़ा कारण है। लोग खुद सफाई का ध्यान नहीं रखते और कचरा सड़कों पर फेंक देते हैं। जब तक लोग खुद जागरूक नहीं होंगे और अपने कर्तव्यों को नहीं समझेंगे, तब तक स्वच्छता के ये प्रयास असफल ही रहेंगे।

सरकार और प्रशासन ने कई कदम उठाए हैं, लेकिन आम जनता की भागीदारी के बिना ये कदम अधूरे रह जाते हैं।

स्वच्छता का महत्व

स्वच्छता केवल स्वास्थ्य और सफाई तक सीमित नहीं है, यह हमारे समाज और व्यक्तिगत स्वास्थ्य से गहरे जुड़ी हुई है। जहाँ गंदगी होती है, वहाँ बीमारियाँ भी जन्म लेती हैं। बीकानेर में स्वच्छता को लेकर किए गए तमाम प्रयासों के बावजूद, जमीनी हालात वैसे नहीं हैं, जैसे कि होने चाहिए थे।

स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत के साथ, बीकानेर शहर में भी कई स्वच्छता कार्यक्रमों की शुरुआत की गई, लेकिन 10 वर्षों बाद भी शहर के प्रमुख हिस्सों में गंदगी का साम्राज्य कायम है।

स्वच्छता के भविष्य के लिए समाधान

बीकानेर की स्वच्छता की समस्या को दूर करने के लिए सरकारी और गैर सरकारी संगठनों के बीच समन्वय आवश्यक है। इसके साथ ही आम जनता को भी स्वच्छता के महत्व को समझना होगा। प्रशासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि सफाई ठेकेदार अपना काम ईमानदारी से करें और गंदगी वाले क्षेत्रों की नियमित रूप से सफाई हो।

जनता को भी अपनी जिम्मेदारी समझते हुए स्वच्छता के प्रति जागरूक होना होगा। उन्हें अपने आस-पास के इलाकों में फैली गंदगी के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए और प्रशासन को सूचित करना चाहिए।

स्वच्छ भारत मिशन के 10 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन बीकानेर जैसे ऐतिहासिक शहर में अभी भी गंदगी की समस्या जस की तस बनी हुई है। सरकार और प्रशासन ने प्रयास तो किए हैं, लेकिन जनता की भागीदारी के बिना ये प्रयास सफल नहीं हो सकते। अब समय आ गया है कि सभी लोग मिलकर इस समस्या का समाधान खोजें और एक स्वच्छ और स्वस्थ बीकानेर का निर्माण करें।

ग्राउंड रिपोर्ट: अजय त्यागी, के कुमार आहूजा


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