सुप्रीम कोर्ट हुआ सख्त , देशव्यापी विध्वंस रोकने पर बड़ा आदेश: अवैध निर्माणों पर सख्त नियमों की तैयारी
के कुमार आहूजा कान्ता आहूजा 2024-10-02 10:53:51
सुप्रीम कोर्ट हुआ सख्त , देशव्यापी विध्वंस रोकने पर बड़ा आदेश: अवैध निर्माणों पर सख्त नियमों की तैयारी
देशभर में बिना पूर्व सूचना के की जा रही विध्वंस की कार्रवाइयों पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए एक बड़ा आदेश जारी किया है। कोर्ट ने सभी राज्यों को बिना शीर्ष अदालत की अनुमति के किसी भी अवैध ढांचे को गिराने से रोकने के निर्देश दिए हैं। यह आदेश उन कई याचिकाओं के बाद आया, जिसमें राज्य सरकारों पर विध्वंस के दौरान उचित प्रक्रिया का पालन न करने का आरोप लगाया गया था।
विस्तृत रिपोर्ट
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में पूरे देश में विध्वंस रोकने का अपना पहले का आदेश जारी रखा, जब तक कि शीर्ष अदालत की अनुमति नहीं मिल जाती। न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने अवैध निर्माणों के संबंध में पूरे देश के लिए समान दिशा-निर्देश जारी करने पर सुनवाई की।
यह याचिकाएं तब सामने आईं जब कई राज्यों में बिना उचित नोटिस के विध्वंस की कार्रवाइयां की गईं, जिनमें कहा गया कि कई बार एक खास समुदाय को निशाना बनाया गया। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि नोटिस की सेवा रजिस्टर्ड पोस्ट के माध्यम से की जानी चाहिए, और अगर रजिस्टर्ड पोस्ट स्वीकार नहीं की जाती, तो इसे अन्य तरीकों जैसे संपत्ति की दीवार पर नोटिस चिपकाकर किया जा सकता है।
धार्मिक स्थलों पर रुख
अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं और जो भी दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे, वे पूरे भारत में सभी धर्मों पर लागू होंगे। अदालत ने कहा कि सार्वजनिक सड़कों, फुटपाथों और रेलवे लाइनों पर किसी भी अवैध निर्माण को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, चाहे वह मंदिर हो, गुरुद्वारा हो, या दरगाह हो।
आवेदकों की दलीलें
वरिष्ठ अधिवक्ता सी.यू. सिंह ने अदालत में तर्क दिया कि नोटिस अवधि पूरे देश में समान होनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई व्यक्ति जेल में है, तो उस पर भी नोटिस की सेवा की जानी चाहिए ताकि उसके अधिकारों का उल्लंघन न हो। एक अन्य वकील, एम.आर. शमशाद ने कहा कि अगर किसी इलाके में एक घर को अवैध ठहराया जाता है, तो पूरे क्षेत्र का सर्वेक्षण किया जाना चाहिए, न कि सिर्फ एक घर को गिराने की कार्रवाई की जानी चाहिए ।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
कोर्ट ने यह भी कहा कि अवैध निर्माणों को कानून के अनुसार ही गिराया जाना चाहिए, और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि इस आदेश का उपयोग अतिक्रमणकर्ताओं द्वारा न किया जाए। इसके अलावा, न्यायालय ने यह भी संकेत दिया कि एक ऑनलाइन पोर्टल बनाया जाना चाहिए जो विध्वंस नोटिसों की जानकारी को रिकॉर्ड करे, ताकि पारदर्शिता बनी रहे।
सितंबर 17 को हुई पिछली सुनवाई में, अदालत ने "बुलडोजर एक्शन" के बढ़ते महिमामंडन पर चिंता व्यक्त की थी और अगले आदेश तक सभी विध्वंस कार्यों को रोकने का आदेश दिया था। अदालत ने यह भी साफ कर दिया था कि सार्वजनिक सड़कों, रेलवे लाइनों, फुटपाथों या सार्वजनिक स्थलों पर अवैध निर्माण को कोई संरक्षण नहीं मिलेगा ।
अपराधियों के मकानों पर विध्वंस का मुद्दा
सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर भी गंभीरता से विचार किया कि अपराधों में शामिल व्यक्तियों के मकानों को सजा के रूप में गिराया जा रहा है। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि किसी आरोपी या दोषी का घर कानून की प्रक्रिया के बिना गिराया नहीं जा सकता है। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि अवैध निर्माणों को सिर्फ कानून के तहत ही ध्वस्त किया जाए, और राज्य सरकारें इसे सजा के रूप में इस्तेमाल नहीं करेंगी ।
नोटिस प्रक्रिया में सुधार
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को सुझाव दिया कि नोटिस की सेवा रजिस्टर्ड पोस्ट या अन्य वैकल्पिक माध्यमों से की जानी चाहिए। अगर नोटिस अस्वीकार कर दी जाती है, तो इसे दीवार पर चिपकाया जा सकता है ताकि उचित प्रक्रिया का पालन किया जा सके। इसके साथ ही, अदालत ने यह भी कहा कि नोटिस मिलने के बाद किसी भी विध्वंस आदेश के खिलाफ अपील करने के लिए एक समय सीमा निर्धारित होनी चाहिए ।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों को सुना और निर्णय को सुरक्षित रखते हुए कहा कि उचित कानूनी प्रक्रिया के तहत ही अवैध निर्माणों को हटाया जाएगा।
यह मामला देशभर में विध्वंस की कार्रवाइयों पर पारदर्शिता और न्यायसंगत प्रक्रिया लागू करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से उम्मीद की जा रही है कि देशभर में बिना उचित नोटिस के विध्वंस की घटनाओं में कमी आएगी, और इससे सभी नागरिकों को न्याय की प्रक्रिया का सम्मान मिलेगा।