मंदिर में चूहों का साम्राज्य: मूक-बधिर बच्चों के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव
के कुमार आहूजा 2024-10-01 19:09:17
मंदिर में चूहों का साम्राज्य: मूक-बधिर बच्चों के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव
देशनोक के करणी माता मंदिर में हाल ही में एक अनोखा दृश्य देखने को मिला, जब देश भर से आए 1000 मूक-बधिर बच्चों का समूह मंदिर के दर्शन के लिए पहुँचा। यह धार्मिक स्थल अपने अद्वितीय चूहों के साम्राज्य के लिए जाना जाता है, और बच्चों के लिए यह यात्रा एक अद्वितीय और अविस्मरणीय अनुभव साबित हुई। यहां 20,000 से अधिक चूहे रहते हैं, जो माता के पुत्र के रूप में पूजे जाते हैं। इन बच्चों ने करणी माता के दर्शन के साथ-साथ इस अद्भुत स्थान की महिमा और इतिहास के बारे में जाना।
करणी माता मंदिर की महिमा और चूहों का रहस्य
देशनोक का करणी माता मंदिर राजस्थान के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है, और इसकी सबसे अनोखी विशेषता यहां हजारों चूहों की उपस्थिति है। चूहों को यहां ‘काबा’ कहा जाता है, जो करणी माता के वफादार अनुयायी माने जाते हैं। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, करणी माता ने अपने सौतेले पुत्र लक्ष्मण को मृत्यु के देवता यमराज से वापस मांगा, जिसके बाद यमराज ने उसे चूहे के रूप में पुनर्जीवित कर दिया। तब से इस मंदिर में चूहे करणी माता की संतान माने जाते हैं। यह दृश्य मूक-बधिर बच्चों के लिए काफी असामान्य था, और वे मंदिर में इस अद्वितीय परंपरा से बहुत प्रभावित हुए।
इसके अलावा, लोक कथाओं के अनुसार, एक बार देशनोक पर हमला करने आए 20,000 सैनिकों को माता करणी ने अपनी दिव्य शक्ति से चूहे बना दिया था, जो आज भी यहां निवास करते हैं। भक्तों का मानना है कि चूहों द्वारा खाया हुआ प्रसाद सौभाग्य और स्वास्थ्य का प्रतीक होता है, और इसलिए यहां आने वाले भक्त चूहों का झूठा प्रसाद ग्रहण करते हैं। सफेद चूहों को यहां विशेष रूप से पवित्र माना जाता है, और इन्हें देखना शुभ माना जाता है।
मूक-बधिर बच्चों का स्वागत और यात्रा
मूक-बधिर बच्चों के इस समूह का आयोजन महावीर इंटरनेशनल सर्विस ऑर्गनाइजेशन और अनाम प्रेम मुंबई द्वारा किया गया था। बीकानेर के डागा गेस्ट हाउस में रात्रि विश्राम के बाद, सुबह 7 बजे 26 बसों में सवार होकर यह समूह देशनोक पहुंचा। यहां इन बच्चों का गर्मजोशी से स्वागत किया गया। मंदिर प्रन्यास के अध्यक्ष बादल सिंह ने बच्चों को मंदिर की कथा और चूहों की उपस्थिति के पीछे का कारण बताया, जिसे सुनकर बच्चे चकित रह गए। इस यात्रा के दौरान बच्चों के शिक्षक भी उनके साथ थे, जिन्होंने उन्हें मंदिर की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महिमा से परिचित कराया।
इसके अलावा, कार्यक्रम संयोजक वीर विजय सिंह डागा ने बताया कि इस यात्रा के दौरान बच्चों ने न केवल करणी माता मंदिर के दर्शन किए, बल्कि बीकानेर के अश्व अनुसंधान केंद्र और कैमल फार्म की भी यात्रा की। वहां के निदेशक ने घोड़ों की देखभाल, ब्रीडिंग और ट्रेनिंग के बारे में जानकारी दी। खास बात यह थी कि यहां बोलने-सुनने की ज्यादा आवश्यकता नहीं होती क्योंकि जानवर भी इंसानी भावनाओं को समझते हैं। यह जानकारी बच्चों के लिए बेहद रोचक और प्रेरणादायक साबित हुई, क्योंकि इसे वे रोजगार के रूप में भी अपना सकते हैं।
बीकानेर का भ्रमण और दिव्यांग बच्चों का उत्साह
बच्चों के लिए बीकानेर का दौरा भी बेहद खास रहा। उन्होंने लक्ष्मी निवास महल का भ्रमण किया, जहां उनके स्वागत के दौरान उन्हें तिलक लगाकर अभिनंदन किया गया और भव्य नाश्ता कराया गया। महल की भव्यता और इतिहास ने बच्चों को मोहित कर लिया। इसके बाद उन्होंने जूनागढ़ किला भी देखा, जहां बीकानेर पूर्व की विधायक सिद्धि कुमारी ने उनका स्वागत किया और शीतल पेय पदार्थों से उनकी सेवा की। किले में स्थित स्वर्ण महल, बादल महल, और अन्य ऐतिहासिक धरोहरों को देखकर बच्चे अभिभूत हो गए।
विधायक सिद्धि कुमारी ने इस आयोजन की सराहना की और दिव्यांग बच्चों के प्रशिक्षण और उनके दैनिक जीवन की चुनौतियों के बारे में भी जानकारी प्राप्त की। उन्होंने इस तरह के आयोजनों को बीकानेर की संस्कृति और समाज के लिए गर्व की बात बताया।
सांस्कृतिक संध्या और बच्चों की सहभागिता
शाम को जब बच्चे वापस अपने गेस्ट हाउस लौटे, तब उन्होंने प्रशिक्षण कार्यशाला में भाग लिया। इसके बाद एक सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया, जिसमें दिव्यांग बच्चों के मनोरंजन के लिए विशेष कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए। रात 9 बजे भोजन के बाद इस कार्यक्रम ने बच्चों के चेहरे पर मुस्कान ला दी, और यह यात्रा उनके लिए एक यादगार अनुभव बन गई।
देशनोक का करणी माता मंदिर जहां एक ओर आस्था का प्रतीक है, वहीं दूसरी ओर अपनी अनोखी परंपराओं के लिए भी प्रसिद्ध है। 1000 मूक-बधिर बच्चों का यह अनुभव न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, बल्कि यह उनके लिए सांस्कृतिक और ऐतिहासिक ज्ञान का भी एक अनोखा स्रोत बना। इस यात्रा के माध्यम से उन्होंने न केवल भारतीय धार्मिक स्थलों की महिमा को समझा, बल्कि अपने भविष्य के लिए प्रेरणा भी प्राप्त की।