पिता के संघर्षों को सजीव करती जीवनी: कपिला पालीवाल की विश्राम-एक जीवनी पर सफल चर्चा


के कुमार आहूजा  2024-10-01 15:38:02



पिता के संघर्षों को सजीव करती जीवनी: कपिला पालीवाल की विश्राम-एक जीवनी पर सफल चर्चा

पिता और पुत्री के बीच का संबंध बेहद खास और भावनात्मक होता है। जब यह रिश्ता एक लेखिका की कलम से जीवंत होता है, तो वह न केवल एक परिवार की कहानी बयां करता है, बल्कि समाज और जीवन के गहरे मूल्य भी उजागर करता है। ऐसी ही एक प्रेरणादायक जीवनी 'विश्राम-एक जीवनी', जिसे कपिला पालीवाल ने अपने पिता शिवप्रसाद पालीवाल के जीवन पर लिखा है, साहित्य जगत में चर्चा का विषय बनी हुई है। हाल ही में अजित फाउंडेशन सभागार में इस पुस्तक पर विशेष चर्चा का आयोजन किया गया, जहां शहर के प्रबुद्धजनों और साहित्य प्रेमियों ने इस पुस्तक की सराहना की।

पुस्तक की अद्वितीयता और संदेश

डॉ. उमाकांत गुप्त, जो एम.एस. कॉलेज के पूर्व प्राचार्य और वरिष्ठ आलोचक हैं, ने इस चर्चा की अध्यक्षता की। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि जीवनी लेखन इतिहास को सजीव देखने का माध्यम है। किसी व्यक्ति के जीवन संघर्षों और अनुभवों को एक कलम से उकेरना आसान नहीं होता, लेकिन कपिला पालीवाल ने इसे अपनी पुस्तक 'विश्राम-एक जीवनी' में बखूबी निभाया है। उन्होंने विशेष रूप से पिता-पुत्री के रिश्ते की गहराई को रेखांकित किया और इस जीवनी को एक नए संघर्ष का पहला पायदान बताया।

डॉ. गुप्त ने कहा, "एक पिता अपनी संतान के लिए बहुत कुछ करता है, लेकिन कहता नहीं। यह पुस्तक उस मौन संघर्ष की आवाज है, जिसे कपिला ने बहुत संवेदनशीलता से प्रस्तुत किया है।" उन्होंने यह भी कहा कि यह पुस्तक पाठकों को जीवन के उन मूल्यों की याद दिलाती है, जिन्हें समय के साथ हम भूलते जा रहे हैं, जैसे त्याग, सहनशीलता और अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठा।

पुस्तक का विश्लेषण

मुख्य समीक्षक के रूप में पूर्व प्रिंसिपल और लेखक डॉ. नरसिंह बिन्नानी ने इस पुस्तक की गहन समीक्षा की। उन्होंने इसे मात्र एक पुस्तक नहीं, बल्कि ईश्वर का साक्षात स्वरूप बताया। डॉ. बिन्नानी ने कहा कि यह पुस्तक पिता के बचपन, शिक्षा, और जीवन संघर्षों को पाठकों के सामने बहुत ही सरल और बोधगम्य भाषा में प्रस्तुत करती है। कपिला पालीवाल ने अपने पिता के जीवन के हर पहलू को न केवल विस्तार से बताया, बल्कि उन्हें प्रेरणा के रूप में प्रस्तुत किया है।

डॉ. बिन्नानी के अनुसार, "यह पुस्तक एक भावनात्मक यात्रा है, जो न केवल कपिला के अपने पिता के प्रति श्रद्धा को दिखाती है, बल्कि यह एक साधारण व्यक्ति के असाधारण संघर्षों को भी उजागर करती है। इस पुस्तक की शैली और भाषा पाठकों को बांधे रखने में सक्षम है।"

कार्यक्रम का आयोजन

इस चर्चा का आयोजन अजित फाउंडेशन द्वारा किया गया, जो साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में निरंतर सक्रिय भूमिका निभा रही है। कार्यक्रम के समन्वयक संजय श्रीमाली ने बताया कि फाउंडेशन का मासिक पुस्तक चर्चा कार्यक्रम साहित्य प्रेमियों के बीच बेहद लोकप्रिय है। उन्होंने यह भी बताया कि यह संस्था भविष्य में भी इस तरह के और आयोजन करती रहेगी, ताकि नई पीढ़ी के रचनाकारों को मंच और मार्गदर्शन मिल सके।

लेखिका के प्रति सम्मान

कार्यक्रम के संचालन का जिम्मा वरिष्ठ शायर और कहानीकार क़ासिम बीकानेरी ने संभाला। उन्होंने इस पुस्तक को भावनाओं का समुद्र बताया और कहा कि "विश्राम-एक जीवनी" एक ऐसी कृति है, जिसे पढ़कर पाठकों की आंखें नम हो जाती हैं। यह पुस्तक पिता के जीवन संघर्षों को बहुत ही संवेदनशील और मार्मिक तरीके से प्रस्तुत करती है। बीकानेरी ने आगे कहा कि इस पुस्तक के माध्यम से कपिला पालीवाल ने साहित्य के क्षेत्र में अपनी पहचान को और भी मजबूत किया है और आने वाले समय में उनकी और भी कृतियां साहित्य जगत में अपनी छाप छोड़ेंगी।

अन्य वक्ताओं के विचार

इस अवसर पर नगर के कई प्रमुख रचनाकारों ने इस अवसर पर "विश्राम एक जीवनी" पुस्तक के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किए। जिनमें वरिष्ठ कवि कथाकार कमल रंगा, एडवोकेट इसरार हसन क़ादरी, डॉ. मोहम्मद फ़ारुक़ चौहान, विप्लव व्यास, जुगल किशोर पुरोहित, डॉ.शंकर लाल स्वामी, चित्रकार योगेंद्र पुरोहित, अब्दुल शकूर सिसोदिया, गिरिराज पारीक, कवि कथाकार राजाराम स्वर्णकार, डॉ. जगदीश दान बारहठ, गोविंद जोशी, मुक्ता तैलंग मुक्त, शिव दाधीच, शमीम अहमद शमीम एवं उद्योगपति जुगल राठी शामिल थे। इन सभी वक्ताओं ने कपिला पालीवाल की लेखनी और उनकी कृति की भूरि-भूरि प्रशंसा की।

कवि कथाकार राजाराम स्वर्णकार ने उपस्थित जनों का आभार प्रकट करते हुए कहा कि यह कार्यक्रम न केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, बल्कि इसने समाज के लिए एक उदाहरण भी प्रस्तुत किया है कि कैसे पारिवारिक संघर्षों और संबंधों को कलात्मक रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। पुस्तक चर्चा कार्यक्रम में अनेक प्रबुद्ध जन मौजूद थे जिनमें शिवप्रसाद पालीवाल, डॉ. राकेश बिन्नानी, डॉ. कृष्णा गहलोत, प्रियंका मूंधड़ा, व्यवसायी कमल कुमार राठी, जयश्री बिन्नानी, रामकुमार व्यास एवं गौरी शंकर उपस्थित रहे।

समाज पर पुस्तक का प्रभाव

यह पुस्तक न केवल एक व्यक्ति विशेष की जीवनी है, बल्कि समाज के लिए एक प्रेरणा है। इसमें न केवल पिता के जीवन संघर्षों को दिखाया गया है, बल्कि यह समाज को यह संदेश देती है कि हर संघर्ष का सामना धैर्य और सहनशीलता के साथ करना चाहिए। कपिला पालीवाल ने अपने पिता के जीवन के हर छोटे-बड़े अनुभव को इतनी बारीकी से उकेरा है कि पाठक स्वयं को उस परिस्थिति में महसूस करता है।

विश्राम-एक जीवनी न केवल एक पिता के संघर्षों की कहानी है, बल्कि यह समाज और जीवन के गहरे मूल्यों का प्रतिबिंब भी है। कपिला पालीवाल की यह कृति समाज में परिवार और संघर्षों के महत्व को उजागर करती है। इस पुस्तक पर चर्चा कार्यक्रम ने इस बात को सिद्ध किया कि साहित्य में नए रचनाकारों का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है और इस तरह के आयोजन उन्हें प्रोत्साहित करने का सशक्त माध्यम हैं।


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