आप विधायक प्रकाश जरवाल के खिलाफ आत्महत्या मामले में नया मोड़: सह-आरोपी ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया


के कुमार आहूजा  2024-10-01 08:45:22



आप विधायक प्रकाश जरवाल के खिलाफ आत्महत्या मामले में नया मोड़: सह-आरोपी ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया

दिल्ली के राजनीति गलियारों में एक बार फिर हलचल मच गई है, जब आम आदमी पार्टी (आप) के विधायक प्रकाश जरवाल से जुड़े आत्महत्या मामले में एक और सह-आरोपी ने दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया। यह मामला एक डॉक्टर की आत्महत्या से जुड़ा है, जिसमें प्रकाश जरवाल समेत कई अन्य लोग आरोपित हैं। कोर्ट में चल रही इस सुनवाई ने न केवल दिल्ली की न्यायपालिका को झकझोर दिया है, बल्कि राजनीतिक माहौल को भी गरमा दिया है।

मामले का बैकग्राउंड: डॉक्टर राजेंद्र सिंह आत्महत्या मामला

इस मामले की जड़ें 2020 में हुई डॉक्टर राजेंद्र सिंह की आत्महत्या से जुड़ी हैं। डॉक्टर सिंह, जो एक वरिष्ठ चिकित्सक थे, ने आत्महत्या से पहले एक सुसाइड नोट छोड़ा था, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि आप विधायक प्रकाश जरवाल और उनके सहयोगी लगातार उन्हें परेशान कर रहे थे। उन्होंने विधायक पर जबरन वसूली और उत्पीड़न का आरोप लगाया था। इस सुसाइड नोट के आधार पर नेब सराय पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की गई थी, जिसमें प्रकाश जरवाल, कपिल नागर और हरिश जरवाल सहित कई अन्य आरोपियों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए थे।

मामले में कानूनी कार्यवाही

28 फरवरी 2024 को राउस एवेन्यू कोर्ट ने इस मामले में प्रकाश जरवाल, कपिल नागर और हरिश जरवाल को दोषी करार दिया था। कपिल नागर और हरिश जरवाल पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 506 के तहत आरोप लगाए गए थे, जो आपराधिक धमकी से संबंधित है। हालांकि, 30 अगस्त को दिल्ली हाई कोर्ट ने हरिश जरवाल की सजा को रद्द कर दिया, क्योंकि उन्होंने शिकायतकर्ता के साथ समझौता कर लिया था।

कपिल नागर का हाई कोर्ट में रुख

मामले की ताजा स्थिति तब आई जब सह-आरोपी कपिल नागर ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की, जिससे ट्रायल कोर्ट में सुनवाई को स्थगित कर दिया गया। कपिल नागर के वकील ने कोर्ट को जानकारी दी कि उन्होंने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की है, जिसके चलते मामले की सुनवाई 21 अक्टूबर 2024 तक टाल दी गई।

आगे की कानूनी कार्यवाही

दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस अमित महाजन ने 27 सितंबर 2024 को इस मामले की सुनवाई के दौरान ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड तलब किए। साथ ही कोर्ट ने आदेश दिया कि मामले की अगली सुनवाई 18 अक्टूबर को होगी, जहां कपिल नागर की याचिका पर सुनवाई की जाएगी।

समझौते और सजा में रद्दीकरण

इस मामले में हरिश जरवाल की सजा को पहले ही 30 अगस्त को हाई कोर्ट द्वारा रद्द कर दिया गया था। हरिश जरवाल के वकील ने अदालत को यह जानकारी दी थी कि शिकायतकर्ता के साथ 10 अगस्त को समझौता हो गया था। इस समझौते के आधार पर, न्यायालय ने हरिश की सजा को रद्द कर दिया। हालांकि, न्यायालय ने यह भी कहा कि राज्य की मशीनरी को चलाने में जो संसाधन लगे हैं, उसके चलते हरिश जरवाल पर 30,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया, जो दिल्ली पुलिस वेलफेयर सोसाइटी को आठ हफ्तों के भीतर जमा करना होगा।

राजनीतिक और कानूनी प्रभाव

यह मामला आम आदमी पार्टी और उसके नेताओं के लिए एक बड़ा झटका है। दिल्ली की राजनीति में आप पार्टी का प्रमुख स्थान है, और उसके नेताओं के खिलाफ इस तरह के गंभीर आरोप उसकी साख पर असर डाल सकते हैं। हालांकि, पार्टी के नेताओं ने अब तक इस मामले में किसी तरह का आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन पार्टी समर्थकों में चिंता बढ़ी है।

साथ ही, इस मामले में न्यायिक प्रक्रिया का लंबा खिंचना और समझौते का रास्ता दिखाना यह सवाल उठाता है कि क्या न्याय प्रणाली केवल दोषियों को सजा देने के लिए है या समझौते के माध्यम से मामलों को सुलझाने के लिए। यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जब मामला इतने संवेदनशील प्रकृति का हो, जिसमें एक डॉक्टर की आत्महत्या जैसी त्रासदी शामिल हो।

सवाल जो उठते हैं

न्याय की प्रक्रिया: क्या समझौते से सजा को रद्द करना पीड़ित के साथ न्याय करता है? क्या ऐसे मामलों में समझौते को अनुमति देना उचित है?

राजनीतिक प्रभाव: क्या इस मामले से आम आदमी पार्टी की छवि पर असर पड़ेगा? और क्या पार्टी के नेताओं के खिलाफ इस तरह के मामले उसे आगामी चुनावों में नुकसान पहुंचा सकते हैं?

विधायकों की जिम्मेदारी: क्या जनता के प्रतिनिधियों पर इस तरह के गंभीर आरोप लगने पर उनकी जवाबदेही अधिक नहीं होनी चाहिए?

अगली सुनवाई पर नजरें

अब सभी की नजरें 18 अक्टूबर 2024 को दिल्ली हाई कोर्ट में होने वाली अगली सुनवाई पर टिकी हैं, जहां कपिल नागर की याचिका पर सुनवाई की जाएगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि न्यायालय इस मामले में क्या रुख अपनाता है और क्या कपिल नागर को भी हरिश जरवाल की तरह सजा में रद्दीकरण मिल सकता है।

डॉ. राजेंद्र सिंह आत्महत्या मामला न केवल कानूनी प्रणाली की एक परीक्षा है, बल्कि यह राजनीतिक जिम्मेदारी और सामाजिक न्याय से जुड़े बड़े सवाल भी खड़े करता है। आने वाले समय में इस मामले का परिणाम न केवल न्यायिक प्रणाली बल्कि दिल्ली की राजनीति पर भी गहरा प्रभाव डालेगा।


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